Corona Virus के कहर के बाद Economy को संभालने के लिए खाड़ी देशों में Employment को लेकर बहुत बड़ा बदलाव देखा जाने वाला है. जून में हज़ारों प्रवासी इन देशों से इसलिए अपने घरों को लौटे थे क्योंकि श्रम के बाज़ार (Labor Market) में रोज़गार के लिए स्वदेशियों को तरजीह दिए जाने वाले प्रावधान बनाए गए. ताज़ा घटनाक्रम में कुवैत ने प्रवासी कोटा बिल (Expat Quota Bill) मंज़ूर किया है, जिसके बाद संभावना है कि करीब 8 लाख भारतीयों (Migrant Indians) को वहां से लौटना होगा.
कुवैत, कतर, बहरीन, UAE और सऊदी अरब जैसे देशों में बाहरी आबादी अत्यधिक रही है. इंटरनेशनल लेबर संस्था ILO के मुताबिक सऊदी की कुल आबादी करीब साढ़े तीन करोड़ है जिसमें में साढ़े दस करोड़ विदेशी हैं. सऊदी अरब और यूएई में विदेशी प्रवासियों की आबादी दुनिया में तीसरी और पांचवी सबसे बड़ी प्रवासी आबादी है. और ये माइग्रेंट गल्फ देशों के साथ ही अपने देशों के लिए अर्थव्यवस्था के अहम हिस्से रहे हैं. जानें खाड़ी देशों में भारतीय समुदाय का सामाजिक और आर्थिक महत्व क्या रहा है.

1990 के बाद और बड़ी तादाद में कुवैत से भारतीयों की देश वापसी हो सकती है.
एक चौथाई प्रवासी भारतीय खाड़ी में
एक अनुमान के मुताबिक भारतीय समुदाय के तीन करोड़ दस लाख से ज़्यादा लोग दुनिया के 134 देशों में बसे हुए हैं. इनमें से 80 लाख से ज़्यादा भारतीय खाड़ी देशों में हैं. इतनी बड़ी संख्या में इस क्षेत्र में बसे भारतीयों के कारण भारत के खाड़ी देशों से बेहतर सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक रिश्ते ज़रूरत रहे हैं और समय के साथ मज़बूत होते गए हैं.
विदेश नीति में इन भारतीयों की ताकत
प्रवासी भारतीयों की खाड़ी में इतनी तादाद को भारत के राजनीतिक दर्शन में तो जगह हासिल है ही, भारत की विदेश नीति में भी इन प्रवासियों को सॉफ्ट पावर के तौर पर देखा जाता है. हालांकि 1950 और 1960 के दशक में ऐसा नहीं था, लेकिन 1970 के दशक से बदलाव शुरू हुआ. अब तो भारत नीतिगत तौर पर अपने मूल के लोगों के प्रवासियों को लेकर एक्टिव रहता है. इन प्रवासी भारतीयों को भारत में वोट करने तक के अधिकार दिए जा चुके हैं. इसका सबसे बड़ा कारण इस समुदाय से जुड़ी भारी अर्थव्यवस्था है.
यहीं से आता है विदेशी मुद्रा का खज़ाना
भारत सहित कई विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था में विदेशी मुद्रा का काफी महत्व है क्योंकि इससे जीडीपी विकास दर सीधे तौर पर जुड़ी हुई है. साल 2018 में दुनिया के जिस देश को विदेशों से भेजा गया धन सबसे ज़्यादा मिला, 79 अरब डॉलर के साथ वह देश भारत ही था. खाड़ी देशों से भारत को कितनी विदेशी मुद्रा मिली? सऊदी अरब से 11.2 अरब डॉलर, कुवैत से 4.6, कतर से 4.1, ओमान से 3.3 और यूएई से 13.8 अरब डॉलर भारत भेजे गए थे.
इसके अलावा और भी फायदे भारत को हुए. जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रोफेसर अनीसुर्रहमान के
लेख के मुताबिक धन के साथ ही ये प्रवासी नए आइडिया, वर्क कल्चर, अनुशासन, नॉलेज, वैज्ञानिक नज़रिये, नए कौशल आदि भी भारत भेजते हैं, जो देश की तरक्की से सीधे तौर पर जुड़ता है. इसलिए इन समुदायों के हितों को ध्यान में रखना भारत का फर्ज़ भी बन जाता है.

1990 में खाड़ी युद्ध के समय भारतीयों को एयरलिफ्ट के ज़रिये कुवैत से भारत लाया गया था.
कुछ कानून बने, कुछ की ज़रूरत
खाड़ी में प्रवासी भारतीयों के हितों की रक्षा के लिए भारत ने समय समय पर कई खाड़ी देशों के साथ कई तरह के एमओयू साइन किए और सुनिश्चित किया कि प्रवासी भारतीयों के मानवाधिकारों का हनन न हो. इसके बावजूद श्रम के क्षेत्र में वर्करों के शोषण, उत्पीड़न और अन्याय से जुड़े मामले सामने आने के बाद विशेषज्ञ अभी और मज़बूत व्यवस्थाओं की ज़रूरत बताते रहे हैं.
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खाड़ी देशों की अर्थव्यवस्था का क्या होगा?
अपने देश के लोगों को रोज़गार और बेहतर आर्थिक अवसर मुहैया कराने के लिए खाड़ी देशों में विदेशियों की संख्या कम किए जाने संबंधी कानूनों को लेकर कहा जा रहा है कि इससे इन देशों में रोज़गार में गिरावट आएगी. ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स की एक
रिसर्च में कहा गया कि प्रवासियों के इतनी बड़ी तादाद में खाड़ी देशों से जाने पर 13 फीसदी रोज़गार गिरावट होगी, इसका मतलब होगा कि सऊदी अरब में ही करीब 17 लाख रोज़गार कम होंगे.
अरब के खाड़ी देशों में बहुसंख्या में रहने वाले भारतीय, पाकिस्तानी, मिस्री और फिलीपीनी प्रवासी तेज़ी से अपने घरों को लौट रहे हैं. एक इन्वेस्टमेंट कंपनी का अनुमान है कि इस साल सऊदी अरब से ही करीब 12 लाख विदेशी वर्कर चले जाएंगे. अब हालात ये हैं कि कुवैत समेत खाड़ी देशों के कानूनी हालात पर भारतीय दूतावास
लगातार नज़र रखे हैं और बातचीत चल रही है. हालांकि इस स्थिति पर भारत की तरफ से अब तक कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं हुआ है.
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FIRST PUBLISHED : July 06, 2020, 17:57 IST