हिन्द महासागर में वो छोटा सा द्वीप, जहां भारत-चीन-अमेरिका के बीच दबदबे की जंग

हिंद महासागर के द्वीप पर इन्फ्रास्ट्रक्चर की बूम की खबरें रहीं.
भले ही आकार और आबादी के लिहाज़ से यह टापू एशिया का सबसे छोटा देश (Smallest Asian Country) हो, लेकिन इसकी रणनीतिक अहमियत इतनी है कि इस क्षेत्र में वर्चस्व के लिए एशियाई ताकतों (Asian Powers) के साथ ही अमेरिका भी नज़र गाड़े है.
- News18India
- Last Updated: November 27, 2020, 7:57 AM IST
एशिया की दो सबसे बड़ी ताकतों (Asian Superpowers) की बात की जाए तो चीन और भारत का ज़िक्र होगा ही, जो पिछले कुछ महीनों से सीमा पर तनाव (India-China Border Tension) के चलते आपस में उलझे हुए हैं. दूसरी तरफ, एशिया में हिंद महासागर की गोद में एक छोटा सी द्वीप है मालदीव (Maldives), जहां दोनों ही एशियाई ताकतें बड़े चाव से दोनों हाथ खोलकर मदद करने की पेशकश कर रही हैं. अस्ल में, यह मदद रणनीतिक लिहाज़ से काफी मायने रखती है. सवाल यह है कि यह किस तरह की और किस पैमाने पर मदद है और भारत और चीन (India-China Geo-Politics) आखिर ऐसा करने से क्या पाएंगे?
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इस साल जून महीने में लद्दाख बॉर्डर के पास हुई सैन्य हिंसा के बाद से ही परमाणु हथियार संपन्न शक्तियों भारत और चीन के बीच लगातार तनाव बरकरार है. सीमा पर शांति के लिए वार्ताओं के बीच दोनों ही देश अंतर्राष्ट्रीय राजनीति और रणनीति के तहत अपनी स्थिति मज़बूत करने के कदम लगातार उठा रहे हैं. इसी रणनीति का हिस्सा मालदीव है. देखिए कैसे इस टापू पर दोनों देश मुकाबले में हैं.
मालदीव में चीन की मौजूदगीचीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी योजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्टों के लिए चीन अब तक मालदीव को करोड़ों डॉलरों की मदद दे चुका है. इंटरनेशनल एयरपोर्ट वाले हुलहुले द्वीप से लेकर मालदीव की राजधानी माले तक समुद्र पर चीन मालदीव दोस्ती ब्रिज का काम पूरा हो चुका है. इस ब्रिज के लिए चीन ने 11.6 करोड़ डॉलर मदद के तौर पर दिए हैं जबकि 7.2 करोड़ डॉलर बतौर कर्ज़.

मालदीव में सत्ता परिवर्तन हुआ और अब्दुल्ला यमीन की सरकार गिरी तो चीनी कर्ज़ को लेकर चीन और मालदीव दोनों की नीतियां बदलीं. अब मालदीव कह रहा है कि उस पर चीन का कर्ज़ 3.1 अरब डॉलर का है, तो दूसरी तरफ इस कर्ज़ में प्राइवेट सेक्टर को दिए गए वो लोन भी शामिल हैं, जिनकी गारंटी मालदीव की रही.
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क्या यह चीन का 'कर्ज़ जाल' है?
चीन पर एशिया और दुनिया के छोटे देशों को अपने कर्ज़ के जाल में फंसाने की रणनीति के लिए जाना जाता है. मालदीव ने भी चिंता जताई है कि वो 'लोन ट्रैप' में फंस रहा है. दूसरी तरफ, चीन ने ऐसी साज़िश से इनकार करते हुए कहा कि उसने किसी देश को जबरन लोन नहीं दिए हैं. इस पूरे समीकरण में मालदीव में भारत की एंट्री बेहद खास और रोचक दृश्य पैदा करती है.
मालदीव में भारत की मौजूदगी
चीन के निवेश को चुनौती देने के मकसद से भारत ने माले को तीन द्वीपों विलिंगली, गुलहिफाहू और थिलाफुशी के साथ जोड़ने वाले 6.7 किलोमीटर लंबे समुद्री ब्रिज के निर्माण की पेशकश कर दी है. यह निर्माण औद्योगिक और रणनीतिक रूप से काफी अहम माना जा रहा है. रिसर्चरों के हवाले से कहा गया है चूंकि भारत का समुद्री व्यापार का 50 फीसदी और ऊर्जा संबंधी आयात का 80 फीसदी इंटरनेशनल शिपिंग लेन से गुज़रता है इसलिए समुद्र में मालदीव की अहमियत भारत के लिए बढ़ जाती है.
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सीएनएन की रिपोर्ट की मानें तो मालदीव के साथ अपने रिश्ते पहले की तरह मज़बूत करने और यहां अपनी स्थिति बेहतर करने के लिए भारत हर कीमत पर निवेश के लिए तैयार है. कोविड 19 से लड़ने के लिए भी भारत ने मालदीव को लंबे समय के कर्ज़ के तौर पर 2.5 करोड़ डॉलर की मदद देने का वादा किया.

क्या हैं भारत-मालदीव समीकरण?
साल 2013 में जब मालदीव में अब्दुल्ला यमीन की सरकार बनी थी, उससे पहले तक भारत के साथ मालदीव के रिश्ते बेहद दोस्ताना रहे. लेकिन यमीन सरकार ने भारत के मुकाबले चीन को तरजीह दी और चीन के साथ नज़दीकी बढ़ाई. दो साल पहले यमीन सरकार के गिरने और इब्राहीम मोहम्मद सोलीह सरकार बनने के बाद मालदीव और भारत फिर एक दूसरे के करीबी साथी बनने की दिशा में बढ़ रहे हैं.
और क्या है अमेरिका का रुझान?
इस छोटे से द्वीप का महत्व अमेरिका ने भी समझा और पिछले महीने ही डोनाल्ड ट्रंप के प्रतिनिधि के तौर पर स्टेट सेक्रेट्री माइक पॉम्पियो मालदीव का दौरा किया. अमेरिका ने इस दौरे पर मालदीव को चीन के खिलाफ जाने और भारत व जापान के समर्थन में आने के लिए साफ तौर पर संकेत और नैरेटिव दिए. पॉम्पियो ने माले में अमेरिकी दूतावास खोलने की घोषणा भी की.
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यही नहीं, अमेरिका ने रक्षा समझौता भी किया, जो बिल्कुल साफ करता है कि हिंद महासागर में अमेरिका भी अपनी पैठ जमाने में पीछे नहीं है. बेशक यह चीन के मुकाबले की तैयारी का ही संकेत है. अब रही बात मालदीव की तो 1.5 से करीब 2.5 लाख आबादी को समेटने वाला द्वीप खुलकर चीन के खिलाफ जाने के मूड में नहीं है, लेकिन मौजूदा सरकार के कार्यकाल में मालदीव 'इंडिया फर्स्ट नीति' ज़रूर अपनाता दिख सकता है.
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इस साल जून महीने में लद्दाख बॉर्डर के पास हुई सैन्य हिंसा के बाद से ही परमाणु हथियार संपन्न शक्तियों भारत और चीन के बीच लगातार तनाव बरकरार है. सीमा पर शांति के लिए वार्ताओं के बीच दोनों ही देश अंतर्राष्ट्रीय राजनीति और रणनीति के तहत अपनी स्थिति मज़बूत करने के कदम लगातार उठा रहे हैं. इसी रणनीति का हिस्सा मालदीव है. देखिए कैसे इस टापू पर दोनों देश मुकाबले में हैं.
मालदीव में चीन की मौजूदगीचीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी योजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्टों के लिए चीन अब तक मालदीव को करोड़ों डॉलरों की मदद दे चुका है. इंटरनेशनल एयरपोर्ट वाले हुलहुले द्वीप से लेकर मालदीव की राजधानी माले तक समुद्र पर चीन मालदीव दोस्ती ब्रिज का काम पूरा हो चुका है. इस ब्रिज के लिए चीन ने 11.6 करोड़ डॉलर मदद के तौर पर दिए हैं जबकि 7.2 करोड़ डॉलर बतौर कर्ज़.

न्यूज़18 क्रिएटिव
मालदीव में सत्ता परिवर्तन हुआ और अब्दुल्ला यमीन की सरकार गिरी तो चीनी कर्ज़ को लेकर चीन और मालदीव दोनों की नीतियां बदलीं. अब मालदीव कह रहा है कि उस पर चीन का कर्ज़ 3.1 अरब डॉलर का है, तो दूसरी तरफ इस कर्ज़ में प्राइवेट सेक्टर को दिए गए वो लोन भी शामिल हैं, जिनकी गारंटी मालदीव की रही.
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क्या यह चीन का 'कर्ज़ जाल' है?
चीन पर एशिया और दुनिया के छोटे देशों को अपने कर्ज़ के जाल में फंसाने की रणनीति के लिए जाना जाता है. मालदीव ने भी चिंता जताई है कि वो 'लोन ट्रैप' में फंस रहा है. दूसरी तरफ, चीन ने ऐसी साज़िश से इनकार करते हुए कहा कि उसने किसी देश को जबरन लोन नहीं दिए हैं. इस पूरे समीकरण में मालदीव में भारत की एंट्री बेहद खास और रोचक दृश्य पैदा करती है.
मालदीव में भारत की मौजूदगी
चीन के निवेश को चुनौती देने के मकसद से भारत ने माले को तीन द्वीपों विलिंगली, गुलहिफाहू और थिलाफुशी के साथ जोड़ने वाले 6.7 किलोमीटर लंबे समुद्री ब्रिज के निर्माण की पेशकश कर दी है. यह निर्माण औद्योगिक और रणनीतिक रूप से काफी अहम माना जा रहा है. रिसर्चरों के हवाले से कहा गया है चूंकि भारत का समुद्री व्यापार का 50 फीसदी और ऊर्जा संबंधी आयात का 80 फीसदी इंटरनेशनल शिपिंग लेन से गुज़रता है इसलिए समुद्र में मालदीव की अहमियत भारत के लिए बढ़ जाती है.
ये भी पढ़ें :- 'कोविड पासपोर्ट' क्या है और कब तक लांच होगा?
सीएनएन की रिपोर्ट की मानें तो मालदीव के साथ अपने रिश्ते पहले की तरह मज़बूत करने और यहां अपनी स्थिति बेहतर करने के लिए भारत हर कीमत पर निवेश के लिए तैयार है. कोविड 19 से लड़ने के लिए भी भारत ने मालदीव को लंबे समय के कर्ज़ के तौर पर 2.5 करोड़ डॉलर की मदद देने का वादा किया.

भारत के पीएम नरेंद्र मोदी और मालदीव के पीएम इब्राहीम सोलीह.
क्या हैं भारत-मालदीव समीकरण?
साल 2013 में जब मालदीव में अब्दुल्ला यमीन की सरकार बनी थी, उससे पहले तक भारत के साथ मालदीव के रिश्ते बेहद दोस्ताना रहे. लेकिन यमीन सरकार ने भारत के मुकाबले चीन को तरजीह दी और चीन के साथ नज़दीकी बढ़ाई. दो साल पहले यमीन सरकार के गिरने और इब्राहीम मोहम्मद सोलीह सरकार बनने के बाद मालदीव और भारत फिर एक दूसरे के करीबी साथी बनने की दिशा में बढ़ रहे हैं.
और क्या है अमेरिका का रुझान?
इस छोटे से द्वीप का महत्व अमेरिका ने भी समझा और पिछले महीने ही डोनाल्ड ट्रंप के प्रतिनिधि के तौर पर स्टेट सेक्रेट्री माइक पॉम्पियो मालदीव का दौरा किया. अमेरिका ने इस दौरे पर मालदीव को चीन के खिलाफ जाने और भारत व जापान के समर्थन में आने के लिए साफ तौर पर संकेत और नैरेटिव दिए. पॉम्पियो ने माले में अमेरिकी दूतावास खोलने की घोषणा भी की.
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यही नहीं, अमेरिका ने रक्षा समझौता भी किया, जो बिल्कुल साफ करता है कि हिंद महासागर में अमेरिका भी अपनी पैठ जमाने में पीछे नहीं है. बेशक यह चीन के मुकाबले की तैयारी का ही संकेत है. अब रही बात मालदीव की तो 1.5 से करीब 2.5 लाख आबादी को समेटने वाला द्वीप खुलकर चीन के खिलाफ जाने के मूड में नहीं है, लेकिन मौजूदा सरकार के कार्यकाल में मालदीव 'इंडिया फर्स्ट नीति' ज़रूर अपनाता दिख सकता है.