नवरात्रि के दौरान क्यों मना किया जाता है प्याज़ और लहसुन खाना?

जानें प्याज़ और लहसुन पर क्या कहता है आयुर्वेद.
उपवास या व्रत (Fast) रखने वाले क्यों प्याज़ (Onions) और लहसुन (Garlic) नहीं खाते, इसके पीछे के कारण समझें. क्या ये सिर्फ धार्मिक कारण (Religion) है या कोई वैज्ञानिक आधार भी है?
- News18Hindi
- Last Updated: October 3, 2019, 6:29 PM IST
शारदीय नवरात्रि (Sharadiya Navaratri) के दौरान देश के हिंदू समुदाय (Hindu Community) के कई लोग कई तरह से उपवास रखते हैं. कुछ लोग तो निर्जला और कठिन उपवास तक रखते हैं लेकिन सामान्य तौर पर फलाहार या फलाहारी भोजन (Fruit Based Diet) पर आश्रित होते हैं. फल, गिनी चुनी सब्ज़ियां, कुट्टू या राजगिरा आटा, साबूदाना, सेंधा नमक जैसी कुछ ही चीज़ें उपवास में खाने लायक मानी जाती हैं जबकि दो चीज़ें ऐसी हैं, जिनकी सख़्त मनाही नज़र आती है यानी प्याज़ और लहसुन (Onion & Garlic). क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों है?
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अक्सर धार्मिक मान्यताओं (Customs) को विज्ञान (Science) से जोड़ने की बात होती है और कभी कभी ऐसा करने के चक्कर में उल्टे सीधे तर्क भी सामने आते हैं. लेकिन, शारदीया नवरात्रि में उपवास (Fasting) के दौरान प्याज़ और लहसुन के उपयोग पर मनाही के पीछे आयुर्वेद (Ayurveda) के जो हवाले दिए जाते हैं, उन्हें समझा जा सकता है. इस बारे में आयुर्वेद के ज़रिए इस मनाही का मतलब जानें.
शरीर की बायोलॉजिकल क्रियाओं पर भोजन किस तरह प्रभाव डालता है, इसे लेकर आम तौर से आयुर्वेद में भोजन को तीन रूपों में बांटा गया है - सात्विक, तामसिक और राजसी. इन तीन तरह के भोजन करने पर शरीर में सत, तमस और रज गुणों का संचार होता है.सात्विक भोजन क्या है?
सात्विक भोजन का संबंध सत् शब्द से बताया गया है. इसका एक मतलब तो ये है कि शुद्ध, प्राकृतिक और पाचन में आसान भोजन हो और इस शब्द से दूसरा अर्थ रस का भी निकलता है यानी जिसमें जीवन के लिए उपयोगी रस हो. इन तमाम अर्थों के बाद बात ये है कि ताज़े फल, ताज़ी सब्ज़ियां, दही, दूध जैसे भोजन सात्विक हैं और इनका प्रयोग उपवास के दौरान ही नहीं बल्कि हर समय किया जाना अच्छा है. सात्विक भोजन के संबंध में शांडिल्य उपनिषद और हठ योग प्रदीपिका ग्रंथों में उल्लेख मिलता है. मिताहार या कम भोजन यानी भूख के हिसाब से भोजन करने को ही उचित बताया गया है.

तामसिक और राजसी भोजन
तमस यानी अंधेरे से तामसिक शब्द बना है यानी सबसे पहले तो इस तरह के भोजन का मतलब बासी खाने से है. ये भोजन शरीर के लिए भारीपन और आलस देने वाला होता है. इसमें बादी करने वाली दालें और मांसाहार जैसी चीज़ें शामिल बताई जाती हैं. वहीं, राजसिक भोजन बेहद मिर्च मसालेदार, चटपटा और उत्तेजना पैदा करने वाला खाना है. इन दोनों ही तरह के भोजनों को स्वास्थ्य और मन के विकास के लिए लाभदायक नहीं बल्कि नुकसानदायक बताया गया है. कहा गया है कि ऐसे भोजन से शरीर में विकार और वासनाएं पैदा होती हैं.
अब प्याज़ और लहसुन की बात
आध्यात्मिक गुरु नित्यानंद के संघ की वेबसाइट पर भोजन को लेकर ज़िक्र में बताया गया है कि प्याज़ और लहसुन तामसिक भोजन के अंतर्गत आते हैं. दूसरी ओर, आयुर्वेद का वैज्ञानिक सिद्धांत मौसमों के अनुसार उपयुक्त भोजन करने की बात पर ज़ोर देता है. शारदीया नवरात्रि चूंकि बारिश के तुरंत बाद और सर्दी से पहले के मौसम में आती है इसलिए यह दो मौसमों के बीच का समय है. आयुर्वेद की मानें तो मौसम परिवर्तन के समय शरीर की प्रतिरोधी क्षमताएं कम होती हैं इसलिए अक्सर खांसी और ज़ुकाम जैसे सामान्य संक्रमण दिखते हैं.
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अक्सर धार्मिक मान्यताओं (Customs) को विज्ञान (Science) से जोड़ने की बात होती है और कभी कभी ऐसा करने के चक्कर में उल्टे सीधे तर्क भी सामने आते हैं. लेकिन, शारदीया नवरात्रि में उपवास (Fasting) के दौरान प्याज़ और लहसुन के उपयोग पर मनाही के पीछे आयुर्वेद (Ayurveda) के जो हवाले दिए जाते हैं, उन्हें समझा जा सकता है. इस बारे में आयुर्वेद के ज़रिए इस मनाही का मतलब जानें.
शरीर की बायोलॉजिकल क्रियाओं पर भोजन किस तरह प्रभाव डालता है, इसे लेकर आम तौर से आयुर्वेद में भोजन को तीन रूपों में बांटा गया है - सात्विक, तामसिक और राजसी. इन तीन तरह के भोजन करने पर शरीर में सत, तमस और रज गुणों का संचार होता है.सात्विक भोजन क्या है?
सात्विक भोजन का संबंध सत् शब्द से बताया गया है. इसका एक मतलब तो ये है कि शुद्ध, प्राकृतिक और पाचन में आसान भोजन हो और इस शब्द से दूसरा अर्थ रस का भी निकलता है यानी जिसमें जीवन के लिए उपयोगी रस हो. इन तमाम अर्थों के बाद बात ये है कि ताज़े फल, ताज़ी सब्ज़ियां, दही, दूध जैसे भोजन सात्विक हैं और इनका प्रयोग उपवास के दौरान ही नहीं बल्कि हर समय किया जाना अच्छा है. सात्विक भोजन के संबंध में शांडिल्य उपनिषद और हठ योग प्रदीपिका ग्रंथों में उल्लेख मिलता है. मिताहार या कम भोजन यानी भूख के हिसाब से भोजन करने को ही उचित बताया गया है.

प्याज़ की बढ़ी कीमतों पर न्यूज़18 क्रिएटिव.
तामसिक और राजसी भोजन
तमस यानी अंधेरे से तामसिक शब्द बना है यानी सबसे पहले तो इस तरह के भोजन का मतलब बासी खाने से है. ये भोजन शरीर के लिए भारीपन और आलस देने वाला होता है. इसमें बादी करने वाली दालें और मांसाहार जैसी चीज़ें शामिल बताई जाती हैं. वहीं, राजसिक भोजन बेहद मिर्च मसालेदार, चटपटा और उत्तेजना पैदा करने वाला खाना है. इन दोनों ही तरह के भोजनों को स्वास्थ्य और मन के विकास के लिए लाभदायक नहीं बल्कि नुकसानदायक बताया गया है. कहा गया है कि ऐसे भोजन से शरीर में विकार और वासनाएं पैदा होती हैं.
अब प्याज़ और लहसुन की बात
आध्यात्मिक गुरु नित्यानंद के संघ की वेबसाइट पर भोजन को लेकर ज़िक्र में बताया गया है कि प्याज़ और लहसुन तामसिक भोजन के अंतर्गत आते हैं. दूसरी ओर, आयुर्वेद का वैज्ञानिक सिद्धांत मौसमों के अनुसार उपयुक्त भोजन करने की बात पर ज़ोर देता है. शारदीया नवरात्रि चूंकि बारिश के तुरंत बाद और सर्दी से पहले के मौसम में आती है इसलिए यह दो मौसमों के बीच का समय है. आयुर्वेद की मानें तो मौसम परिवर्तन के समय शरीर की प्रतिरोधी क्षमताएं कम होती हैं इसलिए अक्सर खांसी और ज़ुकाम जैसे सामान्य संक्रमण दिखते हैं.
इस तर्क के आधार पर न सिर्फ इस मौसम में बल्कि किसी भी ऐसे मौसम बदलने के समय में सात्विक भोजन करना ही शरीर और सेहत के लिहाज़ से सबसे उपयुक्त होता है. तामसिक और राजसिक भोजन करने के खतरे होते हैं और सामान्य तौर से भी इस किस्म के भोजन को सेहत के अनुकूल नहीं माना गया है.
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