क्या आप जानते हैं कि नेपाल के पहले अरबपति (Nepal's Billionaire) उद्योगपति का ताल्लुक भारत से है? जी हां, चौधरी ग्रुप (Chaudhary Group of Companies) के मालिक बिनोद कुमार चौधरी के दादा राजस्थान (Rajasthan) के शेखावाटी से ही नेपाल गए थे और फिर वहां व्यापार करते करते बस गए. इस साल भी फोर्ब्स की
लिस्ट में शामिल इकलौते नेपाली अरबपति चौधरी की कुल संपत्ति 1.5 अरब डॉलर आंकी गई है. उद्योगपति होने के साथ ही, राजनीतिक (Politician), लेखक और समाजसेवी चौधरी की कहानी बेहद दिलचस्प है, जिसे उन्होंने अपनी
आत्मकथा के रूप में दुनिया के सामने रखा था.
नेपाल के 'नूडल किंग' के तौर पर भी एक पहचान रखने वाले 65 वर्षीय चौधरी को दो तरह से और बेहतर पहचाना जाता रहा है. एक, किसी औपचारिक और उच्च शिक्षा के बगैर जीवन और अनुभवों से ही बिज़नेस और प्रबंधन के सबक सीखने वाले उद्यमी के तौर पर और दूसरे, एक मारवाड़ी परिवार के ताल्लुक रखने के बावजूद परंपरा से हटकर नये नये प्रयोग करने वाले व्यक्ति के तौर पर. चौधरी की कहानी के साथ ही जानएि कि कैसे वो नेपाल की तरक्की में ज़रूरी नाम बन गए?
विरासत में ऐसे मिला कारोबार
राजस्थान के झुनझुनूं से ताल्लुक रखने वाले चौधरी के दादा भूरामल दास चौधरी कारोबार के सिलसिले में नेपाल गए थे. अस्ल में, यह 20वीं सदी का शुरूआती समय था और तब नेपाल के राजा ने आर्थिक विकास के मद्देनज़र राजस्थान से कुछ मारवाड़ी व्यापारियों को नेपाल में धंधे के लिए आमंत्रित किया था.
भूरामल दास ऐसे ही एक कारोबारी के सहायक के तौर पर नेपाल पहुंचे थे.

नेपाल के पहले और इकलौते अरबपति बिनोद चौधरी कई सेक्टरों में कंपनियों के मालिक हैं.
शुरूआत में कपड़े के कारोबार से जुड़े भूरामल ने अपने बेटे लुंकरन के साथ नेपाल में खुद को धंधा शुरू किया और दरवाज़े दरवाज़े जाकर कपड़े बेचे. जल्द ही उनकी पहुंच काठमांडू के पॉश इलाकों में बिक्री तक हो गई. लुंकरन ने जब काठमांडू में अरुण एम्पोरियम की शुरूआत की, तो नेपाल में शॉपिंग को लेकर पहली बार विदेशी आकर्षण पैदा हुआ.
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हैंडीक्राफ्ट्स का यह अपनी तरह का काफी भव्य और आकर्षक क्लॉथ शोरूम था. यहां राज कपूर, देव आनंद और अमिताभ बच्चन जैसे बॉलीवुड सितारे शॉपिंग के लिए जाते थे. यानी एक सेवक के तौर पर नेपाल पहुंचे भूरामल और उनके बेटे लुंकरन की लगन और मेहनत से चौधरी परिवार का नाम नेपाल में बन चुका था. यानी बिनोद चौधरी के पिता ने अपने पिता से कारोबार सीखा, किसी स्कूल से नहीं.
बिनोद को भी अपने पिता की खराब सेहत की वजह से न चाहते हुए भी असमय कारोबार से जुड़ना पड़ा. वह सीए की पढ़ाई करना चाहते थे, लेकिन हालात ऐसे बने कि अपने पिता के कारोबार को उन्हें 18 साल से भी कम उम्र में संभालना पड़ा. अपने पिता के मार्गदर्शन और अपने अनुभवों से ही उन्होंने भी बिज़नेस सीखा, न कि किसी प्रबंधन स्कूल से.
ऐसे मिले कारोबार के गुर
बिनोद चौधरी ने अपनी
आत्मकथा में लिखा है कि पिता से उन्हें 'किफायत' का सबक बहुत खास ढंग से मिला. नेपाल में कामयाब बिज़नेस घराना हो जाने के बाद भी उनके पिता बेहद शालीन और सामान्य ढंग की जीवनशैली रखते थे और कमाई को व्यापार बढ़ाने में लगाते थे. चौधरी अपने पिता को 'बड़े सपनों वाला छोटा कारोबारी' कहते हैं. जल्द ही कई तरह के धंधों में उनके पिता ने निवेश कर दिया था.
हालांकि इस तरह के निवेश में फायदा कम और नुकसान कहीं ज़्यादा हुआ था, लेकिन इससे बिनोद को यह स्वभाव मिला कि वो अपने विश्वास पर जोखिम उठाने और नवाचार करने से कतराए नहीं. और यह मिज़ाज उनके निजी जीवन से कारोबारी जीवन तक दिखता रहा. इस मिज़ाज के किस्से बड़े दिलचस्प हैं.

अपने तीन बेटों के साथ बिनोद चौधरी. तस्वीर ट्विटर से साभार.
लव मैरिज, डिस्कोथेक और नूडल्स...
मारवाड़ी परिवार में पारंपरिक रूप से प्रेम विवाह नहीं होता, उस समय तो यह बहुत अलग और सुर्खियों में रहने वाला किस्सा होता था. चौधरी ने अपने बचपन की प्रेमिका सारिका के साथ प्रेम विवाह किया. मारवाड़ी परिवार व्यापार के लिए ज़रूर जाने जाते हैं लेकिन 70 के दशक में काठमांडू में डिस्कोथेक खोलने जैसे कारोबार को मारवाड़ियों से जोड़कर कोई नहीं सोच सकता था, लेकिन चौधरी ने ये भी किया.
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नेपाल ही नहीं, बल्कि विदेशी सैलानियों का वो वर्ग इस डिस्कोथेक 'कॉपर फ्लोर' में आते थे, जो बड़े रईस और शक्तिसंपन्न लोग थे. चौधरी ग्रुप कई कंपनियां खोलने लगा था और कई कारोबारों में निवेश कर रहा था. चौधरी ने विदेशी
बैंकिंग में भी निवेश किया तो थाईलैंड के नूडल्स जब नेपाल में लोकप्रिय हुए तो वो भी 80 के दशक में नूडल्स के कारोबार में कूदे और उनका ब्रांड 'वाई वाई' इतना कामयाब हुआ कि वो देखते ही देखते नेपाल के नूडल्स किंग बन गए.
संगीत के क्षेत्र में, ताज होटल्स के साथ साझेदारी में, नेपाल के चेंबर ऑफ कॉमर्स में और लेखन में अपनी छाप छोड़ने के साथ ही चौधरी ने समाजसेवा के क्षेत्र में जो बन पड़ा, वो किया. नेपाल में भूकंप के समय में लाखों डॉलर की मदद देने से लेकर बच्चों की शिक्षा और नदियों की सफाई तक के अभियानों में चौधरी ने योगदान दिया. चौधरी ने राजनीति में भी दिलचस्पी ली और वो वर्तमान में नेपाल की संसद का हिस्सा हैं.
होटल, वाइल्डलाइफ, पर्यटन, एफएमसीजी, रियल एस्टेट, सीमेंट और वित्तीय सेवाओं जैसे कई क्षेत्रों में चौधरी ग्रुप की कंपनियां ख्याति पा रही हैं. बिनोद चौधरी के तीन बेटे पुश्तैनी कारोबार को संभालने के लिए चौथी पीढ़ी के तौर पर तैयार हैं. आर्थिक प्रगति के रास्ते पर बढ़ते नेपाल और शिक्षित नेपाल का सपना देखने वाले चौधरी को श्रीश्री यूनिवर्सिटी ने डॉक्टरेट की मानद उपाधि 2015 में दी थी.undefined
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FIRST PUBLISHED : August 24, 2020, 16:18 IST