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Explained: कोरोना मरीजों पर कैसे काम करता है वेंटिलेटर?

कोरोना की सबसे पहली लहर के दौरान भी वेंटिलेटर की किल्लत का मसला आया था (Photo - news18 English via AP)

कोरोना की सबसे पहली लहर के दौरान भी वेंटिलेटर की किल्लत का मसला आया था (Photo - news18 English via AP)

कोरोना संक्रमण के गंभीर मरीज पर जब ऑक्सीजन भी काम नहीं करती, तब उसे वेंटिलेटर (coronavirus patient on ventilator) पर रख ...अधिक पढ़ें

    कोरोना महामारी देश में हाहाकार मचा रही है. इस बीच अस्पताल में बेड और दवाओं की कमी के बीच वेंटिलेटर की कमी की खबरें भी आने लगी हैं. इससे पहले कोरोना की सबसे पहली लहर के दौरान भी वेंटिलेटर की किल्लत का मसला आया था. इस बीच ये जानना जरूरी है कि ये जीवन रक्षक उपकरण आखिर कैसे काम करता है और किस हालातों में इसकी बजाए दूसरे विकल्प तलाशने पर विशेषज्ञ जोर देते हैं.

    क्या है वेंटिलेटर
    अगर आसान भाषा में समझें तो जब किसी मरीज के श्वसन तंत्र में इतनी ताकत नहीं रह जाती कि वो खुद से सांस ले सके तो उसे वेंटलेटर की आवश्यकता पड़ती है. सामान्य तौर पर वेंटिलेटर दो तरह के होते हैं. पहला मैकेनिकल वेंटिलेटर और दूसरा नॉन इनवेसिव वेंटिलेटर. अस्पतालों में हम जो वेंटिलेटर ICU में देखते हैं वो सामान्य तौर पर मैकेनिकल वेंटिलेटर होता है जो एक ट्यूब के जरिए श्वसन नली से जोड़ दिया जाता है.

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    ये वेंटिलेटर इंसान के फेफड़ों तक ऑक्सीजन पहुंचाने का काम करता है. साथ ही ये शरीर से कॉर्बन डाइ ऑक्साइड को बाहर निकालता है. वहीं दूसरे तरह का नॉन इनवेसिव वेंटिलेटर श्वसन नली से नहीं जोड़ा जाता. इसमें मुंह और नाक को कवर करके ऑक्सीजन फेफड़ों तक पहुंचाता है.

    coronavirus patient ventilator shortage

    ऐसे मरीज जो अपने आप सांस नहीं ले पाते हैं, और खासकर आईसीयू में भर्ती मरीजों को इस मशीन की मदद से सांस दी जाती है (Photo- news18 English via Reuters)

    कब से इस्तेमाल हो रहा है वेंटिलेटर
    वेंटिलेटर का इतिहास शुरू होता है 1930 के दशक के आस-पास. तब इसे आयरन लंग का नाम दिया गया था. तब पोलियो की महामारी की वजह से दुनिया काफी जानें गई थीं. लेकिन तब इसमें बेहद कम खासियतें मौजूद थीं. वक्त के साथ वेंटिलेटर की खासियतें बढ़ती चली गईं.

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    किन्हें होती है इसकी जरूरत
    ऐसे मरीज जो अपने आप सांस नहीं ले पाते हैं, और खासकर आईसीयू में भर्ती मरीजों को इस मशीन की मदद से सांस दी जाती है. इस प्रक्रिया के तहत मरीज को पहले एनेस्थीसिया दिया जाता है. इसके बाद गले में एक ट्यूब डाली जाती है और इसी के जरिए ऑक्सीजन अंदर जाती और कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकलती है. इसमें मरीज को सांस लेने के लिए खुद कोशिश नहीं करनी होती है. आमतौर पर 40 से 50% मामलों में वेंटिलेटर पर रखे हुए मरीजों की मौत हो जाती है. लेकिन कोरोना के मामले में फिलहाल किसी पक्के नतीजे पर वैज्ञानिक पहुंच नहीं सके हैं.

    coronavirus patient ventilator shortage

    माना जाता है कि एक वक्त के बाद वेंटिलेटर मरीज को नुकसान पहुंचाने लगता है (सांकेतिक फोटो)

    क्या वेंटिलेटर नुकसान करता है
    माना जाता है कि एक वक्त के बाद वेंटिलेटर मरीज को नुकसान पहुंचाने लगता है क्योंकि इस प्रक्रिया में फेफड़ों में एक छोटे से छेद के जरिए बहुत फोर्स से ऑक्सीजन भेजी जाती है. इसके अलावा वेंटिलेटर पर जाने की प्रक्रिया में न्यूरोमॉस्कुलर ब्लॉकर भी दिया जाता है, जिसके अलग दुष्परिणाम हैं. यही कारण है कि वेंटिलेटर पर रखे होने के साथ ही मरीज को दवा देकर वायरल लोड घटाने की कोशिश की जाती है ताकि फेफड़े बिना वेंटिलेटर के काम कर सकें.

    विकल्प आजमाने पर दिया जा रहा जोर
    चूंकि वेंटिलेटर किसी भी अस्पताल या देश में सीमित संख्या में होते हैं इसलिए साल 2020 से ही विशेषज्ञ इसके विकल्पों पर जोर देते दिख रहे हैं. इसी कड़ी में University College London के वैज्ञानिकों ने सांस लेने में मदद करने के लिए एक नया उपकरण बनाया जिसे Cpap डिवाइस नाम दिया गया.

    कैसे काम करता है सी-पैप 
    ये ऑक्सीजन मास्क और वेंटिलेटर के बीच का उपकरण है. इस मशीन के जरिए मरीज के ऑक्सीजन मास्क में ऑक्सीजन और हवा का मिश्रण पहुंचता है और मुंह से ही मरीज के फेफड़ों तक ऑक्सजीन की पर्याप्त मात्रा पहुंच जाती है. इसके बाद मरीज खुद ही कार्बन डाइऑक्साइड को निकाल पाता है. सी-पैप में मरीज को सांस बाहर निकालने के लिए खुद मेहनत करनी होता है. यानी सी-पैप अपेक्षाकृत स्वस्थ और युवा मरीजों को दिया जा सकता है. लेकिन फिलहाल ये प्रयोग के स्तर पर दूसरे देशों में काम कर रहा है. भारत में इस बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी है.

    Tags: Coronavirus Cases In India, Coronavirus vaccine india, Research on corona, Ventilator

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