कोरोना वायरस (Corona Virus) संक्रमण की वैश्विक महामारी (Pandemic) से सबसे अच्छी तरह जूझने वाले इलाकों में भारत के केरल (Kerala) राज्य का नाम शुमार हो रहा है क्योंकि यहां पॉज़िटिव मरीज़ों की रिकवरी दर (Recovery Rate) 56.3 फीसदी के आंकड़े के साथ देश के तमाम राज्यों की तुलना में सबसे बेहतर है. साथ ही, दुनिया की औसत रिकवरी दर करीब 22.86 फीसदी के मुकाबले भी ढाई गुना से ज़्यादा है. यह करिश्मा कैसे मुमकिन हो रहा है?
कोविड 19 (Covid 19) के नये केसों में कमी आने और सक्रिय केसों (Active Cases) के ठीक होने का सिलसिला अगर दो हफ्ते और जारी रहता है तो केरल वैश्विक महामारी के जबड़े से निकल जाने वाला पहला राज्य बन सकता है. महामारी के कर्व को फ्लैट (Flattening the Curve) करने वाले केरल और महाराष्ट्र (Maharashtra) के बीच अंतर भी देखने लायक है. केरल की इस सफलता की कहानी से आपको जानना चाहिए कि कैसे एक बेहतर व्यवस्था (Healthcare System) के तहत संक्रमण (Infection) से जूझा जा रहा है.
महाराष्ट्र की तुलना में केरल कितना बेहतर?
देशव्यापी लॉकडाउन की शुरूआत में दोनों राज्यों की स्थिति तकरीबन एक सी थी. एशियन एज की रिपोर्ट के मुताबिक 26 मार्च को महाराष्ट्र में 122 कोरोना पॉज़िटिव केस थे जबकि केरल में 120. इसके अगले तीन हफ्तों में आंकड़े कहानी बयान करते हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय के शुक्रवार सुबह तक के आंकड़ों के हिसाब से महाराष्ट्र में 3205 कोरोना पीड़ित हैं, जिनमें से 300 रिकवर हुए हैं और यहां 194 मौतें हो चुकी हैं.
दूसरी तरफ, केरल में, कुल 395 केस अब तक सामने आए हैं, जिनमें से 245 केसों में रिकवरी हो चुकी है और राज्य में सिर्फ 3 कोरोना पीड़ितों की मौत हुई है. ये आंकड़े केरल की सफलता तो बता रहे हैं, लेकिन उसकी वजहें नहीं. जानें कैसे केरल ने कामयाबी की यह इबारत रची.

केरल में प्रति दस लाख व्यक्तियों पर 400 टेस्ट का आंकड़ा सामने आया.
तेज़ ट्रेसिंग और टेस्टिंग
करीब तीन हफ्ते पहले तक केरल देश के उन राज्यों में शुमार था, जहां कोविड 19 के सबसे ज़्यादा मामले नज़र आ रहे थे, लेकिन
एशियन एज की खबर कहती है कि उसी समय राज्य ने मामलों को ट्रेस करने और टेस्टिंग पर ज़ोर देकर संक्रमण के मामलों और संक्रमण से मौतों की दर को कम रखने में कामयाबी हासिल की.
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रति दस लाख व्यक्तियों पर राज्य में 400 टेस्ट का आंकड़ा सामने आया है, जो देश के दूसरे राज्यों की तुलना में बहुत ज़्यादा है. हालांकि इस मामले में दिल्ली भी पहली पंक्ति का राज्य रहा. एक और रिपोर्ट के मुताबिक केरल में एक दर्जन से ज़्यादा लैब्स 800 टेस्ट तक रोज़ाना कर रही हैं.
साझा चूल्हा का सफल प्रयोग
देश में कम्युनिस्ट यानी वामपंथी सरकार वाले बिरले राज्य केरल में स्थानीय ग्रामीण परिषदों ने स्वास्थ्य और सामुदायिक कार्यकर्ताओं को उत्साहित कर उन लोगों के लिए कम्युनिटी किचन यानी सामुदायिक रसोई की व्यवस्था की है, जिन्हें आइसोलेशन में रखा गया. बीबीसी की रिपोर्ट की मानें तो उदाहरण के तौर पर कासरगोड के चेंगला गांव में इस व्यवस्था से 1200 से ज़्यादा लोगों को रोज़ मुफ़्त भोजन कराया जा रहा है.
स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारी यह भी सुनिश्चित कर रहे हैं कि ग्रामीणों को दवाएं और इलाज बराबर मिलता रहे. पूरे राज्य में एक लाख से ज़्यादा लोगों को निजी घरों या विशेष स्थानों पर आइसोलेशन में रखा गया है.

केरल में स्थानीय परिषदें तक सामुदायिक रसोई की व्यवस्था से मुफ्त भोजन मुहैया करवा रही हैं, उसी की एक तस्वीर डेक्कन हेराल्ड से साभार.
केरल में पहले हुआ लॉकडाउन
केंद्र सरकार के देशव्यापी लॉकडाउन घोषित करने से एक दिन पहले 25 मार्च से ही केरल ने राज्य में लॉकडाउन कर दिया था. इसके बाद पॉज़िटिव केसों के संपर्कों की सघन तलाशी, विदेशों से आए लोगों के रूट मैप बनाना और बड़ी संख्या में टेस्ट करने के अलावा, राज्य के सभी ज़िलों में कोविड 19 केयर सेंटर बनाए गए.
स्वास्थ्य विभाग ने की कई तरह की पहल
साझा चूल्हा जैसे प्रयोगों के अलावा स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने राज्य में विशेष आवश्यकताओं वाले लोगों और वृद्धों के सहयोग पर विशेष ध्यान दिया. काउंसलरों ने 3 लाख 40 हज़ार से ज़्यादा फोन कॉल्स करके प्रभावित क्षेत्रों के ऐसे लोगों को तनाव और संक्रमण से बचने के बारे में समझाया. कई ग्रामीण इलाकों तक में स्थानीय हेल्पलाइनों और वॉट्सएप समूहों के ज़रिये लोगों से जुड़ाव बनाकर रखा गया.
स्वास्थ्य का समाजवादी ढांचा रहा मददगार
भारत का पहला कोविड 19 केस जनवरी में केरल में ही रिपोर्ट हुआ था, लेकिन उसके बाद से केरल ने जिस तरह महामारी से जंग लड़ी, वह मिसाल बनती जा रही है. मेडिकल और अर्थशास्त्र के विशेषज्ञों के हवाले से
बीबीसी की रिपोर्ट कहती है कि केरल के मज़बूत स्वास्थ्य सुरक्षा सिस्टम को अंतत: श्रेय दिया जाना चाहिए और साथ ही, उस लोकतांत्रिक व्यवस्था को भी, जो ग्रामीण परिषदों तक सत्ता के विकेंद्रीकरण की संस्कृति समझाती है.

पिछले 50 सालों में शेष भारत के मुकाबले केरल ने स्वास्थ्य और शिक्षा पर सबसे ज़्यादा खर्च किया है.
स्वास्थ्य क्षेत्र में समाजवादी व्यवस्था के कारण ही भीतर तक पहुंच पाना, मरीज़ों के संपर्कों को तलाश पाना और सामूहिक क्वारैण्टीन कर पाना संभव हुआ. दूसरी ओर, कम्युनिस्ट सरकार ने रोज़ाना भरपूर सूचनाएं और डेवलपमेंट रिपोर्ट नागरिकों तक बेहतर ढंग से पहुंचाईं. वहीं, जैकब जॉन जैसे अर्थशास्त्रियों के हवाले से बीबीसी ने लिखा है कि कारगर सरकारी अस्पतालों वाला, राज्य का थ्री टियर लोक स्वास्थ्य सिस्टम आधी सदी तक किए गए सुधारों का नतीजा है. जॉन के मुताबिक शेष भारत के मुकाबल केरल ने स्वास्थ्य और शिक्षा पर सबसे ज़्यादा खर्च किया है.
लेकिन, अभी जंग बाकी है
एक तरफ, उत्साही मीडिया केरल के जंग जीतने या महामारी के 'कर्व को फ्लैट' कर देने की रिपोर्ट्स छाप रहा है तो दूसरी तरफ, डॉक्टर श्रीजित कुमार जैसे अधिकारियों ने चेताया है कि 'अभी सिर्फ क्वार्टर फाइनल जीता गया है.' दूसरी ओर,
डेक्कन क्रॉनिकल ने लिखा है कि केरल के लिए फिलहाल चिंता का विषय 'डिलेड पॉज़िटिव' मामले हैं. अस्ल में, केरल में ऐसे 20 से ज़्यादा मामले सामने आए हैं, जिनमें विदेशों से लौटे लोगों को क्वारैण्टीन किए जाने के बावजूद 25 दिन बाद भी बीमारी के लक्षण दिखाई दिए हैं.
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FIRST PUBLISHED : April 17, 2020, 15:01 IST