Explainer: तो कोविड वैक्सीन हम तक आने में कितने दिन और हैं?

एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन का उत्पादन भारत के सिरम इंस्टिट्यूट में हो रहा है.
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी (Oxford University), AstraZeneca और भारत के सिरम इंस्टिट्यूट (SII) की पार्टनरशिप वाली वैक्सीन कोविशील्ड (Covishield) के ट्रायलों के नतीजे क्या कह रहे हैं? अन्य वैक्सीनों के ट्रायलों के नतीजों (Vaccine Trial Results) से इनकी क्या तुलना है और कितने दिनों में यह आम लोगों तक पहुंच सकती है?
- News18India
- Last Updated: November 24, 2020, 10:40 PM IST
यूनाइटेड किंगडम (UK) और ब्राज़ील (Brazil) में जो ट्रायल चल रहे हैं, कॉम्बिनेशन के हिसाब से वैक्सीन का असर अलग-अलग देखा गया. ऑक्सफोर्ड और एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन का नाम AZD1222 है, जिसके ट्रायल भारत में कोविशील्ड (Vaccine Trials in India) के नाम से चल रहे हैं. कोरोना (Corona Virus) संक्रमित मरीज़ों को जब वैक्सीन के डोज़ का आधा शॉट दिया गया और एक महीने बाद पूरा डोज़ तो वैक्सीन का असर 90 फीसदी दिखा, जबकि एक महीने के अंतराल में दो फुल डोज़ देने पर वैक्सीन का असर 62 फीसदी ही दिखा.
ट्रायल के इस नतीजे का मतलब यह निकाला जा रहा है कि वैक्सीन के कम डोज़ बनाने से ज़्यादा सप्लाई की संभावना रहेगी क्योंकि आधे डोज़ और उसके बाद फुल डोज़ के परिणाम बेहतर रहे. फिलहाल अभी डोज़ देने से होने वाले असर को समझने के बारे में और अध्ययन चल रहे हैं, लेकिन यहां चर्चा यह अहम है कि भारत को यह वैक्सीन मिलने में कितना वक्त लगने वाला है और इन ट्रायलों का असर भारत में क्या मायने रखता है.
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ट्रायलों के नतीजों का कोविशील्ड से क्या संबंध है?भारत के सिरम इंस्टिट्यूट की पार्टनरशिप इस वैक्सीन से जुड़ी है और कोविशील्ड के भारत में ट्रायल करीब 1600 लोगों पर चल रहे हैं. वैक्सीन की सुरक्षा और इम्यून सिस्टम पर असर को जानने के लिए स्टडी की जा रही है. विशेषज्ञों के मुताबिक यह अभी स्पष्ट नहीं हुआ है कि कोविशील्ड के ट्रायल भी क्या AZD1222 की ही तरह चल रहे हैं कि नहीं? यानी भारत में भी क्या डोज़ अलग ढंग से देकर असर देखा जा रहा है कि नहीं, यह तय नहीं है.

कैसे मिलेगा अप्रूवल?
मैसेचुसेट्स बेस्ड वैक्सीन एक्सपर्ट डॉ दविंदर गिल के हवाले से एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 'भले ही दो फुल डोज़ वाले ट्रायल चल रहे हों और करीब 60% के आसपास तक प्रभावशीलता सामने आए, तो भारत में औषधि नियंत्रक से अप्रूवल मिल सकता है. कोविड 19 की वैक्सीन को अप्रूवल मिलने की शर्तों में कहा गया है कि इसे 30-50% तक असरदार होना चाहिए.'
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चूंकि भारत के पास अब तक वैक्सीन है ही नहीं इसलिए 60-70% ही असरदार होना भारत में कोई मुद्दा नहीं होगा. गिल के मुताबिक लेकिन समय के साथ यानी अगले एक साल में अगर और वैक्सीन आती हैं, जो इससे 15-20% तक बेहतर असर रखती हैं, तो फिर इस वैक्सीन के लिए चुनौती खड़ी हो सकती है.
दूसरी वैक्सीनों के साथ तुलना करें तो?
वैक्सीन के असरदार होने के संबंध में अब तक Pfizer-BioNTech, मॉडर्ना और रूस की वैक्सीन के फैक्ट सामने आए हैं. mRNA तकनीक से बनी Pfizer ने अपनी वैक्सीन के ट्रायल के नतीजों के आधार पर दावा किया कि करीब 95% तक इसे असरदार पाया गया. लेकिन, इस वैक्सीन के कोल्ड स्टोरेज को लेकर इसे भारत जैसे देशों में सप्लाई करना एक चुनौती बन गया है. वहीं, यह वैक्सीन 19 डॉलर यानी करीब 1400 रुपये की होगी यानी भारत के लिहाज़ से बहुत महंगी पड़ेगी.
साथ ही, Pfizer और मॉडर्ना की वैक्सीन की तुलना में स्पूतनिक की कीमत भी काफी कम है. अब रही बात, कोविशील्ड की, तो इसे भी स्पूतनिक जैसे ही तापमान पर स्टोर किए जाने की बात सामने आ चुकी है और इसकी कीमत सरकार के लिए 3 डॉलर और आम लोगों के लिए 7 से 8 डॉलर यानी करीब 600 रुपये तक होगी.
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तो कब मिलेगी भारत को वैक्सीन?
सिरम इंस्टिट्यूट यह कह चुका है कि उसने भारत के लिए करीब 4 करोड़ डोज़ का उत्पादन कर लिया है, जो कि फ्रंटलाइन वर्करों के लिए सुरक्षित किए जा सकते हैं. सिरम का दावा है कि अगले साल अप्रैल महीने तक आम लोगों के लिए वैक्सीन उपलब्ध करवाई जा सकेगी. दिसंबर में सिरम वैक्सीन के अप्रूवल के लिए अप्लाई करने की बात कहने के साथ ही बता चुका है कि वैक्सीन उत्पादन की गति और क्षमता भी लगातार बढ़ाने पर ध्यान दिया जा रहा है.
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फरवरी से ही इस वैक्सीन के उपलब्ध होने की संभावनाओं के बीच विशेषज्ञ मान रहे हैं कि आम लोगों तक वैक्सीन पहुंचने में कितना समय लगेगा, यह इस बात पर भी निर्भर करेगा कि वैक्सीन के डोज़ ठीक ढंग से देने के लिए कितने स्वास्थ्यकर्मी ट्रेंड हो पाते हैं.
जिनके जवाब बाकी हैं, वो अहम सवाल?
विशेषज्ञों के मुताबिक सबसे बड़ा सवाल यही है कि कोविड 19 वैक्सीन कितने समय के लिए प्रभावी होगी. दूसरी बात यह है कि इसकी प्रभावोत्पादकता के आंकड़े तो हैं, लेकिन पूरे नहीं हैं. सेफ्टी को लेकर अब भी जानकारी पूरी नहीं है क्योंकि लंबे समय में इस वैक्सीन का असर कैसा रहेगा या इसके साइड इफेक्ट्स कैसे होंगे, यह अब भी सामने नहीं आया है.
ट्रायल के इस नतीजे का मतलब यह निकाला जा रहा है कि वैक्सीन के कम डोज़ बनाने से ज़्यादा सप्लाई की संभावना रहेगी क्योंकि आधे डोज़ और उसके बाद फुल डोज़ के परिणाम बेहतर रहे. फिलहाल अभी डोज़ देने से होने वाले असर को समझने के बारे में और अध्ययन चल रहे हैं, लेकिन यहां चर्चा यह अहम है कि भारत को यह वैक्सीन मिलने में कितना वक्त लगने वाला है और इन ट्रायलों का असर भारत में क्या मायने रखता है.
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ट्रायलों के नतीजों का कोविशील्ड से क्या संबंध है?भारत के सिरम इंस्टिट्यूट की पार्टनरशिप इस वैक्सीन से जुड़ी है और कोविशील्ड के भारत में ट्रायल करीब 1600 लोगों पर चल रहे हैं. वैक्सीन की सुरक्षा और इम्यून सिस्टम पर असर को जानने के लिए स्टडी की जा रही है. विशेषज्ञों के मुताबिक यह अभी स्पष्ट नहीं हुआ है कि कोविशील्ड के ट्रायल भी क्या AZD1222 की ही तरह चल रहे हैं कि नहीं? यानी भारत में भी क्या डोज़ अलग ढंग से देकर असर देखा जा रहा है कि नहीं, यह तय नहीं है.

Oxford और Astrazeneca की वैक्सीन के ट्रायल भारत में कोविशील्ड के नाम से हो रहे हैं.
कैसे मिलेगा अप्रूवल?
मैसेचुसेट्स बेस्ड वैक्सीन एक्सपर्ट डॉ दविंदर गिल के हवाले से एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 'भले ही दो फुल डोज़ वाले ट्रायल चल रहे हों और करीब 60% के आसपास तक प्रभावशीलता सामने आए, तो भारत में औषधि नियंत्रक से अप्रूवल मिल सकता है. कोविड 19 की वैक्सीन को अप्रूवल मिलने की शर्तों में कहा गया है कि इसे 30-50% तक असरदार होना चाहिए.'
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चूंकि भारत के पास अब तक वैक्सीन है ही नहीं इसलिए 60-70% ही असरदार होना भारत में कोई मुद्दा नहीं होगा. गिल के मुताबिक लेकिन समय के साथ यानी अगले एक साल में अगर और वैक्सीन आती हैं, जो इससे 15-20% तक बेहतर असर रखती हैं, तो फिर इस वैक्सीन के लिए चुनौती खड़ी हो सकती है.
दूसरी वैक्सीनों के साथ तुलना करें तो?
वैक्सीन के असरदार होने के संबंध में अब तक Pfizer-BioNTech, मॉडर्ना और रूस की वैक्सीन के फैक्ट सामने आए हैं. mRNA तकनीक से बनी Pfizer ने अपनी वैक्सीन के ट्रायल के नतीजों के आधार पर दावा किया कि करीब 95% तक इसे असरदार पाया गया. लेकिन, इस वैक्सीन के कोल्ड स्टोरेज को लेकर इसे भारत जैसे देशों में सप्लाई करना एक चुनौती बन गया है. वहीं, यह वैक्सीन 19 डॉलर यानी करीब 1400 रुपये की होगी यानी भारत के लिहाज़ से बहुत महंगी पड़ेगी.
मॉडर्ना की वैक्सीन के 94.5% असरदार होने के दावे किए गए हैं. लेकिन इसके साथ भी –20°C तक के फ्रीज़र में रखे जाने की मजबूरी है और यह और ज़्यादा महंगी है यानी 25 से 37 डॉलर तक इसकी कीमत है. रूस की स्पूतनिक वैक्सीन कोविशील्ड के समान तकनीक से बनी है, जिसका करीब 92% तक असरदार होना पाया गया. इसे सूखे फॉर्म में 2°C से 8°C तक के तापमान पर रखा जा सकता है इसलिए इसका ट्रांसपोर्ट आसान भी है.
साथ ही, Pfizer और मॉडर्ना की वैक्सीन की तुलना में स्पूतनिक की कीमत भी काफी कम है. अब रही बात, कोविशील्ड की, तो इसे भी स्पूतनिक जैसे ही तापमान पर स्टोर किए जाने की बात सामने आ चुकी है और इसकी कीमत सरकार के लिए 3 डॉलर और आम लोगों के लिए 7 से 8 डॉलर यानी करीब 600 रुपये तक होगी.
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सिरम इंस्टिट्यूट वैक्सीन उत्पादन क्षमता बढ़ाने की बात कह चुका है.
तो कब मिलेगी भारत को वैक्सीन?
सिरम इंस्टिट्यूट यह कह चुका है कि उसने भारत के लिए करीब 4 करोड़ डोज़ का उत्पादन कर लिया है, जो कि फ्रंटलाइन वर्करों के लिए सुरक्षित किए जा सकते हैं. सिरम का दावा है कि अगले साल अप्रैल महीने तक आम लोगों के लिए वैक्सीन उपलब्ध करवाई जा सकेगी. दिसंबर में सिरम वैक्सीन के अप्रूवल के लिए अप्लाई करने की बात कहने के साथ ही बता चुका है कि वैक्सीन उत्पादन की गति और क्षमता भी लगातार बढ़ाने पर ध्यान दिया जा रहा है.
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फरवरी से ही इस वैक्सीन के उपलब्ध होने की संभावनाओं के बीच विशेषज्ञ मान रहे हैं कि आम लोगों तक वैक्सीन पहुंचने में कितना समय लगेगा, यह इस बात पर भी निर्भर करेगा कि वैक्सीन के डोज़ ठीक ढंग से देने के लिए कितने स्वास्थ्यकर्मी ट्रेंड हो पाते हैं.
जिनके जवाब बाकी हैं, वो अहम सवाल?
विशेषज्ञों के मुताबिक सबसे बड़ा सवाल यही है कि कोविड 19 वैक्सीन कितने समय के लिए प्रभावी होगी. दूसरी बात यह है कि इसकी प्रभावोत्पादकता के आंकड़े तो हैं, लेकिन पूरे नहीं हैं. सेफ्टी को लेकर अब भी जानकारी पूरी नहीं है क्योंकि लंबे समय में इस वैक्सीन का असर कैसा रहेगा या इसके साइड इफेक्ट्स कैसे होंगे, यह अब भी सामने नहीं आया है.