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क्या कोविड 19 के लिए माओ त्से तुंग ज़िम्मेदार हैं?

चीन में कम्युनिस्ट क्रांति के जनक माओ त्से तुंग. फाइल फोटो.

चीन में कम्युनिस्ट क्रांति के जनक माओ त्से तुंग. फाइल फोटो.

महामारियां अपने आप नहीं आ जातीं. बहुत सी घटनाओं और पिछले गोरखधंधों का अंजाम हुआ करती हैं. कोरोना वायरस के संक्रमण काल म ...अधिक पढ़ें

    'भविष्य के पूर्वानुमान के लिए सबसे अच्छा तरीका है, अतीत को पढ़ें.' - रॉबर्ट कियोसाकी, लेखक व उद्यमी

    चीन (China) में अब भी वही कम्युनिस्ट पार्टी (Communist Party) शासन कर रही है, जिसके पुरोधा माओ त्से तुंग (Mao Tse Tung) की आलोचना दुनिया ने दशकों पहले सच को छुपाने और अपने देश को गुमराह करने के लिए की थी. अब भी कोविड 19 (Covid 19) को लेकर वास्तविक आंकड़े छुपाने और वैश्विक महामारी (Pandemic) में प्रमुख भूमिका के लिए दुनिया के कई देश चीन को कोस रहे हैं.

    वैश्विक महामारी बन चुका कोरोना वायरस (Corona Virus) संक्रमण चीन से शुरू हुआ लेकिन अगर आपसे कहा जाए कि इसकी वजह चीन की दशकों पुरानी कुछ घटनाओं में छुपी हुई है तो? आइए अतीत (History) को पढ़ें. बात साल 1959 की है, जब 'स्टील जैसे भारी उद्योगों (Heavy Industry) से ही देश की प्रगति संभव है', स्टालिन (Stalin) की इस विचारधारा से माओ त्से तुंग पूरी तरह सहमत हो चुके थे.

    नाकाम किसान हुए हताश
    चीन में कम्युनिस्ट क्रांति के जनक कहे जाने वाले माओ ने लाखों करोड़ों किसानों को लौह अयस्कों और चूना पत्थर की खदानों से धातु निकालकर उसे लोहे में ढालने के लिए प्राचीन चीनी डिज़ाइन की फर्नेस बनाने को कहा. लेकिन समस्या यह हुई कि ये फर्नेस कारगर साबित नहीं हुईं. ग्रामीण चीन में इस नाकामी से इतनी हताशा फैली कि किसानों ने अपने औज़ार तक पिघला दिए.

    भुखमरी और उसका अंजाम
    खेती किसानी छोड़ चुके किसान लोहे के उद्योग बनाने में नाकाम हो गए तो भुखमरी फैली. भुखमरी का अंजाम ये हुआ कि अगले तीन सालों में चीन में हत्याओं और नरभक्षण का ऐसा दौर चला कि डेढ़ से साढ़े चार करोड़ तक लोग मारे गए. बाद में, माओ के ही एक और विचार यानी सांस्कृतिक बदलाव के कारण भी करीब 20 लाख लोग मारे गए थे.

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    एक भाषण के दौरान माओ का यह यादगार चित्र फॉरेन अफेयर्स ने छापा था.


    माओ का विरोध संभव नहीं था?
    साल 1967 में, एक अखबार में चीनी आर्म्ड फोर्स के हवाले से लिखा गया था '..चेयरमैन माओ दुनिया के सबसे महान और विलक्षण विद्वान हैं.. उनके विचार अटूट सच हैं. चेयरमैन माओ के निर्देशों पर अमल करते वक्त, हमें इस बात का विचार नहीं करना चाहिए कि हम उन निर्देशों को समझ पाए या नहीं.'

    फिर आई जानवरों पर बात
    साल 1961 में, चीन की माओशासित कम्युनिस्ट पार्टी ने भुखमरी की रोकथाम तो की, लेकिन अपनी बेतहाशा आबादी का पेट भर पाना उसके लिए मुसीबत साबित हो रहा था. ऐसे में, कम्युनिस्ट पार्टी ने पशुपालन के लिए लोगों को मंज़ूरी ही नहीं दी बल्कि उकसाया ताकि बेरोज़गारी और भूख, दो बड़ी समस्याओं से निजात मिल सके.

    एक अजूबा उद्योग खड़ा हुआ
    पशुपालन और मांसाहार के इस चलन के सालों बाद 1988 में चीन ने वन्यजीव संरक्षण कानून लागू किया, जिसके चलते वन्यजीव राज्य के अधिकार क्षेत्र के संसाधन हो गए. साथ ही, वन्यजीवों के उपभोग के लिए उन्हें पालतू बनाए जाने और प्रजनन के लिए व्यवस्था कर दी गई. यह अपनी ही तरह का एक उद्योग बन गया.

    तो इस तरह शुरू हुईं महामारियां
    इस अतीत से आप समझ सकते हैं कि किस तरह पहले सार्स और अब कोविड 19 वैश्विक महामारियों की भूमिका चीन में रची गई. औद्योगिकीकरण के समानांतर प्रकृति और वन्यजीवों को समझ से परे नुकसान पहुंचाने के कारण मनुष्य उन वायरसों या सूक्ष्म जीवों की चपेट में आए, जो खतरनाक या असेवनीय जीवों में पाए जाते थे.

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    दुनिया के कई देश कोविड 19 में चीन की भूमिका को संदिग्ध मान रहे हैं. फाइल फोटो.


    अब चीन पर उठ रही हैं उंगलियां
    वुहान सहित पूरे चीन में कोविड 19 के संक्रमण और मौतों संबंधी वास्तविक आंकड़े छुपाए गए, ऐसा कई शोधकर्ता, वैज्ञानिक और पत्रकार मान रहे हैं. अंदाज़ा है कि जितने नंबर चीन ने बताए हैं, वहां उससे कई गुना ज़्यादा नंबर हो सकते हैं. चीन पर और भी आरोप लग रहे हैं, मसलन वुहान बायोसेफ्टी लैब में कोरोना वायरस को मानवनिर्मित रूप से बनाना और जैविक हमले के तौर पर दुनिया में वायरस फैलाना.

    सच क्या है?
    वास्तव में, दुनिया इस संकट के समय ध्रुवीकरण और खेमेबाज़ी की शिकार है इसलिए कई तरह की थ्योरीज़ सामने आ रही हैं. सिफी ने लेखक सत्येन बोरडोलोई का जो लेख छापा है, उस पर आधारित उपरोक्त कहानी एक पहलू है और दूसरा पहलू अमेरिका की नीतियों और फैसलों के खिलाफ भी है. सच क्या है? इस सवाल का जवाब समय देगा, लेकिन फिलहाल विचार और विमर्श किया जाना ज़रूरी है.

    'इतिहास आपकी बीमारी का लक्षण है.' माओ के इन शब्दों को आज इन मायनों में भी समझा जाना चाहिए कि मौजूदा संकट के बीज किस इतिहास में किस तरह मिल सकते हैं.

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