जबसे डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) राष्ट्रपति बने हैं, तबसे अमेरिका में सरकार के संरक्षण में राष्ट्रवाद (Nationalism) और ध्रुवीकरण जैसे मुद्दे चर्चा में रहे हैं. एक तरफ, भारत जैसा लोकतांत्रिक देश है, जो अपने संविधान (Constitution) में देश को 'धर्मनिरपेक्ष' (Secular) करार देता है, लेकिन वास्तविक स्थिति में सरकार और धर्म के गहरे संबंधों को समय समय पर उजागर करता है. दूसरी तरफ, अमेरिका जैसा लोकतांत्रिक देश है, जहां यह चर्चा जारी है कि सरकार और धर्म (Religion & Politics) के बीच किस तरह का रिश्ता होना चाहिए.
एक तरफ भारत में इन दिनों सरकारी सहयोग और हस्तक्षेप से अयोध्या में बन रहे राम जन्मभूमि मंदिर को लेकर ये चर्चा फिर है कि देश की सरकार कैसे 'धर्मनिरपेक्षता' के आदर्श को संभाले तो वहीं, अमेरिका में पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट द्वारा धार्मिक मुद्दों पर दिए गए निर्देशों के चलते सरकार और धर्म का संबंध चर्चा में है. Pew रिसर्च सेंटर के विश्लेषण पर आधारित कुछ फैक्ट्स अमेरिकी सिस्टम और समाज के बारे में कुछ कहते हैं.
फैक्ट 1
अमेरिकी संविधान में 'भगवान' का कोई ज़िक्र नहीं है. लेकिन, अमेरिका के राज्यों के जो संविधान हैं, उनमें 'भगवान' या किसी 'दिव्य' शक्ति के ज़िक्र मिलते हैं. स्वतंत्रता के घोषणापत्र, राज्यनिष्ठा की शपथ और अमेरिकी मुद्रा में भी भगवान का संदर्भ आता है.
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बाइबल लिये हुए.
फैक्ट 2
साल 2019 के एक विश्लेषण के मुताबिक वर्तमान कांग्रेस के 10 में से 1 यानी 88% सदस्यों का ईसाई होना पाया गया. इस विश्लेषण में कहा गया कि अमेरिकी आबादी के लिहाज़ से ईसाइयों का प्रतिनिधित्व ज़रूरत से ज़्यादा है.
फैक्ट 3
डोनाल्ड ट्रंप सहित अब तक सभी अमेरिकी राष्ट्रपति ईसाई ही रहे हैं. हालांकि इनमें से कुछ पादरी संघ और कुछ बिशप संघ व्यवस्था के अनुयायी ज़रूर रहे, लेकिन दो सबसे मशहूर राष्ट्रपतियों अब्राहम लिंकन और थॉमस जैफरसन का कोई औपचारिक धार्मिक जुड़ाव नहीं रहा.
फैक्ट 4
ज़्यादातर अमेरिकी राष्ट्रपतियों ने बाइबल के साथ शपथ ग्रहण करते हुए पदभार संभाला. इसके साथ ही ज़्यादातर ने पद ग्रहण करने से पहले ली गई शपथ को पारंपरिक तौर पर यह कहते हुए खत्म किया “so help me God.”
फैक्ट 5
इसी साल फरवरी में हुए एक सर्वे के हवाले से
रिपोर्ट कहती है कि करीब आधे अमेरिकी नागरिक (डेमोक्रेट कम और रिपब्लिकन ज़्यादा) मानते हैं कि राष्ट्रपति को किसी तरह से या फिर बेशक मज़बूत धार्मिक मत का होना चाहिए. हालांकि 39% मानते हैं कि प्रेसिडेंट को अपने धार्मिक विश्वासों को शेयर नहीं करना चाहिए.
फैक्ट 6
करीब आधे अमेरिकी मानते हैं कि अमेरिकी कानूनों को बाइबल से प्रेरित होना चाहिए जबकि 28% से ज़्यादा मानते हैं कि समाज की इच्छा आधार होना चाहिए. हालांकि आधे अमेरिकी ये भी कहते हैं कि कानूनों पर बाइबल का बहुत ज़्यादा या कोई असर नहीं होना चाहिए.

पिछले दिनों अमेरिका में नस्लभेद के खिलाफ प्रदर्शनों के समय ट्रंप का चर्च पहुंचना चर्चा में रहा.
फैक्ट 7
एक तिहाई अमेरिकी कहते हैं कि सरकारी नीतियों को धार्मिक सिद्धांतों के अनुरूप होना चाहिए. लेकिन, दूसरी तरफ दो तिहाई अमेरिकी कहते हैं कि सरकारी नीतियों में धर्म की दखलंदाज़ी नहीं होना चाहिए.
फैक्ट 8
2019 के एक सर्वे में 63% अमेरिकियों ने माना कि चर्च और दूसरे धार्मिक केंद्रों को राजनीति से दूर रहना चाहिए. वहीं 76% ने ये भी माना कि धार्मिक केंद्रों को चुनाव के समय राजनीतिक पार्टियों या प्रत्याशियों के पक्ष में नहीं उतरना चाहिए. दूसरी तरफ, 36% ने कहा कि धार्मिक संस्थाओं को सामाजिक और राजनीतिक मामलों पर अपना पक्ष रखना चाहिए.
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यह भी गौरतलब है कि 1954 से प्रभावशील हुए The Johnson Amendment के मुताबिक, जिन संस्थाओं को टैक्स से राहत मिलती है (इनमें चर्च शामिल हैं), उनके किसी भी प्रत्याशी के पक्ष में राजनीति मुहिम या भागीदारी पर प्रतिबंध है. इसके साथ अमेरिका में 1962 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देश के मुताबिक किसी टीचर को क्लास में प्रार्थना नहीं करवानी चाहिए लेकिन 29% टीनेजर मानते हैं कि इस प्रतिबंध के बारे में जानते हुए भी उन्हें ऐसा किए जाने से कोई दिक्कत नहीं है.
गौरतलब है कि अमेरिकी समाज मिली जुली आबादी वाला है जिसमें अमेरिकियों के साथ ही अफ्रीकी, यूरोपीय और एशियाई लोग साथ रहते हैं. कई तरह की धार्मिक मान्यताओं वाले लोगों के बीच अमेरिका में नस्लभेद भी एक बड़ी समस्या रही है. पिछले दिनों पुलिसकर्मी के हाथों एक अश्वेत की हत्या के बाद से अमेरिका में 'ब्लैक लाइव्स मैटर' नारे के साथ सरकार और नस्लभेद के खिलाफ बड़े विरोध प्रदर्शन होते रहे.
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Tags: America, Government, Politics, Religion, Religious propaganda, United States of America, US President
FIRST PUBLISHED : July 28, 2020, 19:21 IST