24 फरवरी तमिलनाडु (Tamilnadu) की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की जयंती है. आज ही के दिन 1948 में मेलुकोट में उनका जन्म हुआ था. सिनेमा से लेकर सियासत (Jayalalitha Politics) में बेहतरीन मुकाम पाने वाली जयललिता 2 दिसंबर 2016 को दुनिया से विदा हो गई थीं, लेकिन उनकी यादें हमेशा गूंजती रहीं. एक फिल्मी अदाकारा (South Films Actress) के तौर पर शोहरत का सफर शुरू करने वाली जयललिता की ज़िन्दगी किसी ‘लार्जर देन लाइफ’ कैरेक्टर की भव्य फिल्म से कम नहीं रही.
जयलिलता ने पहले दक्षिण के सिनेमा में बुलंदिया छुईं. सिनेमाई जोड़ी का करिश्मा सियासी जोड़ी के तौर पर भी दिखा. दक्षिण की राजनीति में उन्होंने आला मुकाम पाया. पुरुषों के वर्चस्व वाली राजनीति में एक महिला शिखर तक पहुंची. आखिरी चुनाव में उन्होंने सत्ता विरोधी लहर को मात देकर जीत हासिल की. सोनिया गांधी, अटलबिहारी वाजपेयी और करुणानिधि से जुड़े जयललिता के प्रसंग आज तक याद किए जाते हैं.
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जयललिता ने पढ़ाई क्यों छोड़ दी थी?
कहते हैं कि जयललिता के साथ भाग्य चलता रहा और सब कुछ नियति का लेखा ही था. उनकी जिंदगी में पहले से कुछ तय नहीं था. हालात के मुताबिक उनका सफर चलता रहा. यहां खास रहे उनके समय पर लिये गए फैसले. बचपन में जयललिता पढ़ने-लिखने में काफी तेज़ थीं. इंग्लिश लिटरेचर में उनका रुझान और दुनिया भर की हलचलों की समझ उनमें थी, लेकिन भाग्य में कुछ और लिखा था.
बचपन में ही पढ़ाई छोड़कर फिल्मों में जयललिता का आ जाना उनकी मां का फैसला था. उन्हें लगता था कि उनकी बेटी का भविष्य सिनेमा में ज्यादा सुरक्षित होगा. जयललिता के पिता के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिलता. कहा जाता है कि जब वो सिर्फ 2 साल की थीं, तभी उनके पिता की मौत हो गई. जयललिता की परवरिश उनकी मां ने ही की.
कैसे सुपरस्टार बनीं जयललिता?
मां की उम्मीद के मुताबिक दक्षिण के सिनेमा में जयललिता बेहद सफल रहीं. शुरूआती दौर में उन्होंने काफी ग्लैमरस किरदार निभाकर हलचल पैदा की. दक्षिण भारत की फिल्मों में पर्दे पर स्कर्ट पहनने वाली जयललिता पहली एक्ट्रेस थीं. जयललिता ने करीब 300 फिल्मों में काम किया. इनमें से 140 में वो लीड हीरोइन की भूमिका में थीं. करीब 125 फिल्में हिट रहीं.
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70 के दशक में जयललिता भारत की सबसे महंगी हीरोइनों में शुमार थीं. उन्होंने अपने पूरे करियर में 85 सिल्वर जुबली हिट फिल्में दीं. उनके खाते में 2 फिल्मफेयर और 5 तमिलनाडु स्टेट अवॉर्ड आए. ऐसा फिल्मी करियर कम ही एक्ट्रेस का रहा. 1965 में उन्होंने पहली बार दक्षिण के सुपरस्टार एमजी रामचंद्रन के साथ काम किया. एमजीआर के साथ जयललिता की जोड़ी हिट रही. 1973 में 28 फिल्मों के बाद ये जोड़ी अलग हुई तो सियासत में साथ दिखी.
सियासत और मोहब्बत
दक्षिण की राजनीति में कदम रख चुके एमजीआर 1977 में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने. इसके बाद 1980 में जयललिता ने भी फिल्मों को अलविदा कह दिया. 1982 में वो सक्रिय राजनीति में आ गईं. 1984 में एमजीआर ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया. एमजीआर के सहयोग से जयललिता ने राजनीति में भी बड़ी जल्दी कामयाबी पा ली. कहते हैं कि इसी वजह से उन्हें नापसंद करने वालों की भी कमी नहीं थी.
जिन एमजीआर के साथ जयललिता की लव स्टोरी काफी चर्चा में रहा करती थी, जब वो बीमार पड़े तो उनकी गैरमौजूदगी में जयललिता ने पूरी पार्टी पर दावेदारी जताई. वो एमजीआर की राजनीतिक वारिस बनीं. 1987 में एमजीआर की मौत के बाद जयललिता को बिलकुल किनारे कर दिया गया था. लेकिन जयललिता ने वापसी करने वालों में थीं, हारने वालों में नहीं.
कांग्रेस और सोनिया के साथ का दौर
1991 के चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन करके उन्होंने राज्य की 234 सीटों की विधानसभा में 225 सीटें झटक लीं. जयललिता तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनीं. मुख्यमंत्री बने रहने के दौरान उन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे. जयललिता की अपने गोद लिये बेटे सुधाकरण की शादी की खूब चर्चा हुई. इस शादी को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल किया गया. बताया जाता है कि इस शादी में करीब डेढ़ लाख मेहमान बुलाए गए थे. उस वक्त शादी पर तकरीबन 10 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे.
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इन सब चर्चाओं ने जयललिता के खिलाफ माहौल बनाया. जयललिता की छवि एक तुनकमिजाज और अहंकारी नेता की बन गई. अगले चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. जयललिता के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुकदमा दर्ज हुआ और गिरफ्तारी भी हुई. 90 के दशक के आखिर में जयललिता का दखल केंद्र की राजनीति में बढ़ गया. केंद्रीय मंत्रिमंडल में अन्नाद्रमुक शामिल हुई.
1999 में उनकी सोनिया गांधी से साथ चाय पार्टी भी काफी चर्चित रही थी. इसी के बाद जयललिता ने वाजपेयी सरकार ने अपना समर्थन वापस ले लिया था. समर्थन वापस लेने की वजह से 13 महीने की एनडीए सरकार गिर गई थी.
दूसरी पारी में कितनी बदल गईं जयललिता?
तमिलनाडु की सियासत से दूर कब तक रहतीं तो 2001 में एक बार फिर वो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठीं. मुख्यमंत्री के तौर पर उनकी दूसरी पारी भी विवादों में रही. उन्होंने आधी रात को करुणानिधि को गिरफ्तार करवाया. सरकारी कर्मचारियों से सख्ती और पत्रकारों के साथ ज्यादती की घटनाएं भी चर्चा में रहीं. वहीं, 2001 से 2006 के दौरान उन्होंने राज्य में प्रशासनिक स्तर पर सकारात्मक बदलाव किए. उस दौरान अपराधों पर अंकुश लगा और उनकी छवि सख्त मुख्यमंत्री की बनी. इसके बावजूद वो 2006 का चुनाव हार गईं.
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2011 में एक बार फिर उन्होंने वापसी की. इसके बाद वो तमिलनाडु में अम्मा के नाम से मशहूर हुईं. उन्होंने राज्य के गरीबों के लिए सस्ता खाना देने वाली अम्मा कैंटीन जैसे काम किए. 2016 में उन्होंने लगातार दूसरी बार चुनाव जीता. आखिरी कार्यकाल में अपनी छवि पर काम करते हुए वो भ्रष्टाचार से दूर रहीं और लोकलुभावन फैसले लिये. 2016 में ही ढाई महीने तक अस्पताल में मौत से जूझने के बाद 5 दिसंबर को उन्होंने आखिरी सांस ली.
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