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गंदा है पर धंधा है ये..! रिसर्च के नाम पर क्या करती हैं फार्मा कंपनियां?

कोविड 19 वैक्सीन को लेकर दुनिया भर में रिसर्च जारी है. प्रतीकात्मक तस्वीर.

कोविड 19 वैक्सीन को लेकर दुनिया भर में रिसर्च जारी है. प्रतीकात्मक तस्वीर.

इन दिनों 'रिसर्च' शब्द खासा चर्चा में है क्योंकि Corona Virus के खिलाफ Vaccine बनाने के अभियान में दुनिया भर में कई स्त ...अधिक पढ़ें

क्या आपने कभी सोचा है कि Medicines की कीमतें इतनी ज़्यादा क्यों होती हैं कि Health Insurance के बावजूद इलाज में आम लोगों के पसीने छूट जाते हैं? जब आप ये सवाल करते हैं तो Pharma Companies से तर्क मिलता है चूंकि दवाओं के निर्माण में गहन रिसर्च होती है इसलिए जितनी पेचीदा रिसर्च, उतनी महंगी दवा या वैक्सीन. यह कुतर्क है, जवाब नहीं! जानकारी न होने के कारण आप यह कुतर्क काट नहीं पाते. रिसर्च के पीछे का सच कुछ और ही है.

जानकारी नहीं है तो मिल सकती है, लेकिन सवाल करना ज़रूरी है. अगर दवाओं की भारी कीमतों के पीछे रिसर्च का तर्क है तो सवाल होना चाहिए कि इतनी महंगी रिसर्च या दवाओं की बेतहाशा कीमतों के बदले क्या मिल रहा है? क्या वाकई सही इलाज और सेहत के लिए तसल्ली मिल रही है? जब आप ये सवाल करेंगे तो कई परतें खुलेंगी और जवाब कहीं नज़र आने लगेगा कि सब भ्रष्टाचार, प्रचार और कारोबार ही है.. रिसर्च, इलाज, दवा.. मायाजाल है..! जानिए क्या हैं कड़वी सच्चाइयां.

रिसर्च प्रोपैगेंडा है? केस स्टडी से समझें
दुनिया की सबसे बड़ी फार्मा कंपनियों की लिस्ट में शुमार Pfizer के 2011 के राजस्व रिकॉर्ड का ब्योरा बताता है कि 9 अरब डॉलर कंपनी ने उस साल रिसर्च और डेवलपमेंट पर खर्च किए. इसी ब्योरे के मुताबिक कंपनी ने इससे दोगुनी से भी ज़्यादा रकम मार्केटिंग पर खर्च की. कंपनी ने उस साल इतने खर्च के बाद बताया कि कुल लाभ 10 अरब डॉलर का हुआ यानी रिसर्च पर खर्च रकम से सिर्फ दस फीसदी ज़्यादा.

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दवाओं की क्वालिटी को लेकर फार्मा कंपनी पर पहले आरोप लग चुके हैं.


इससे क्या पता चला? इसका मतलब ये हुआ ​कि दवा की ज़्यादा कीमत के पीछे रिसर्च का तर्क बड़ा और अहम नहीं है. रिसर्च से बहुत बड़े खर्चे और भी हैं. दुनिया की 13 सबसे बड़ी फार्मा कंपनियों के राजस्व के 8 साल के रिकॉर्ड के आधार पर एक अध्ययन से कई स्तरों पर समझ बनती है. उदाहरण के तौर पर :

1. इन 13 कंपनियों का 8 साल से ज़्यादा समय में कुल राजस्व मिलाकर 3.78 ट्रिलियन डॉलर रहा जबकि मुनाफा 744 बिलियन यानी अरब डॉलर.
2. इन 13 कंपनियों ने इस समय में कुल मिलाकर 643 अरब डॉलर रिसर्च पर खर्च किए.
3. मार्केटिंग पर इन कंपनियों ने रिसर्च की तुलना में 60% ज़्यादा खर्च किया यानी 1.04 ट्रिलियन डॉलर.

रिसर्च पर कैसे होता है खर्च?
आप जिस तरह से दवा के मामले में रिसर्च का मतलब समझते हैं, फार्मा कंपनियों के लिए वैसा नहीं है. रिसर्च के खाते में जो खर्च कंपनियां दिखाती हैं, उससे साफ होता है कि दवाओं संबंधी अध्ययन खरीदे जाते हैं. इसका मतलब कि फॉर्मूले खरीदकर पुरानी दवाओं को ही नई दवा के लेबल से मार्केट में उतारने का काम होता है और इसे इस तरह बताया जाता है कि इसके पीछे भारी रिसर्च की गई.

दूसरी चीज़ है 'इन प्रोसेस' रिसर्च की खरीदारी. इस तरह की संभावनाओं के दम पर कंपनियां दूसरी कंपनियों के टेकओवर करती हैं. यानी रिसर्च के बजट में कॉर्पोरेट टेकओवर शामिल हो जाते हैं. फार्मा कंपनियों ने रिसर्च के क्षेत्र को इतना पेचीदा कर दिया है कि आप अंतर नहीं कर पाएंगे, क्या रिसर्च का हिस्सा है, क्या मार्केटिंग का.


रिसर्च और मार्केटिंग क्या पर्यायवाची हैं?
पर्याय न भी हों तो भी फार्मा कंपनियों के संदर्भ में इनके बीच अंतर बहुत धुंधला है. उदाहरण से समझें. 2007 की अपनी फाइनेंशियल रिपोर्ट में फार्मा कंपनी रॉशे ने करोड़ों डॉलर की रकम मार्केटिंग बजट से रिसर्च बजट में रीअसाइन की थी. इसी तरह एक और फार्मा कंपनी ब्रिस्टल मायर्स स्क्विब साल 2014 से पहले विज्ञापन को मार्केटिंग नहीं बल्कि रिसर्च का हिस्सा मानती रही.

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पड़ताल आधारित अध्ययन कहते हैं कि डॉक्टर फार्मा कंपनियों के एजेंट के तौर पर काम करते हैं.


क्या और क्यों है ये हेराफेरी?
दवा के कारोबार में फार्मा कंपनी के सबसे पहले कस्टमर और हिमायती वर्ग के रूप में डॉक्टर हैं. डॉक्टर दवाओं को मरीज़ों तक पहुंचाते हैं. डॉक्टरों की कलम जितनी ज़्यादा बार दवा का नाम लिखती है, उतनी ज़्यादा रकम फार्मा कंपनियों की कमाई में जुड़ती है. इसलिए ये कंपनियां डॉक्टरों पर बाकायदा और कायदे के बाहर जाकर बहुत पैसा खर्च करती हैं. दवा की क्लीनिकल रिसर्च के नाम पर भी डॉक्टरों को हायर किया जाता है और दवाओं को प्रमोट करने के लिए डॉक्टरों को हर तरह से लुभाया भी जाता है.

अब ये तकनीकी रूप से मार्केटिंग का हिस्सा है लेकिन इसे भी अगर रिसर्च के नाम पर कोई कंपनी दर्शाए तो उसे इल्ज़ाम नहीं दिया जाता बल्कि इसे अकाउंट्स की क्रिएटिविटी कहा जाता है. दूसरी तरफ, फार्मा कंपनियों के रिसर्च वाले हिस्से में फूड एंड ड्रग्स प्रशासन विभाग यानी FDA जुड़ा है, जिसका काम दवाओं की क्वालिटी पर निगरानी रखना है. अमेरिका में FDA के कुल बजट की 65% रकम फार्मा उद्योग से आती है.

रिसर्च के ऐसे मतलब कैसे निकले?
संक्षेप में कहा जाए तो रिसर्च बेहतर दवाओं के लिए नहीं हो रही बल्कि दवाओं को बेहतर ढंग से बाज़ार में लाने के लिए हो रही है. या फिर पेटेंट को बचाए रखने के लिए. रिसर्च और मार्केटिंग के इस पूरे घालमेल को The Great American Healthcare Scam नामक किताब में अमेरिकी डॉक्टर डेविड बेल्क और पॉल बेल्क ने विस्तार से समझाया है.

कुल मिलाकर बहुत सी मार्केटिंग, बहुत सा मुनाफा और थोड़ी सी रिसर्च.. इस फॉर्मूले से नई दवाएं तैयार होती हैं. यानी पुरानी दवाओं में ही मामूली बदलाव कर नई मार्केटिंग के साथ उन्हें बाज़ार में उतारा और बेचा जाता है. इसके बावजूद सवाल ये है कि ये सब करके भी अगर दवाएं महंगी हैं तो भी उनका असर क्या है? क्या वाकई रोगों से बचाव हो पा रहा है? आप जो कीमतें दे रहे हैं, उनके बदले आखिर मिल क्या रहा है.


भ्रष्ट ही नहीं कातिल भी है फार्मा इंडस्ट्री?
साल 2015 में अमेरिका में डॉक्टरों ने जिस तरह से जो दवाएं प्रेस्क्राइब कीं, उनके चलते 2 लाख लोगों की मौत हुई. इनमें से आधी मौतों की वजह दी गई दवाओं के सीधे साइड इफेक्ट थे, जबकि बाकी मौतें इसलिए हुईं क्योंकि डॉक्टरों से मरीज़ों की हालत और सेहत के अनुकूल दवाएं लिखने में गलतियां हुईं.

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विशेषज्ञों के मुताबिक रिसर्च के दावों के बावजूद दोयम दर्जे की दवाएं बाज़ार में आती हैं.


अमेरिकी डॉक्टर पीटर गोएत्ज़्शे ने एक इंटरव्यू में यह दावा करते हुए कहा था कि फार्मा उद्योग दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा कातिल है. दिल के और कैंसर मरीज़ों की मौतों के पीछे इसी का हाथ है. अपनी किताब Deadly Medicines and Organised Crime में डॉ. पीटर ने कई तरह के अध्ययनों और सबूतों के हवाले से तीन मुख्य मुद्दे खड़े किए हैं.

1. दवाओं की रिसर्च का जो मौजूदा ढांचा है वो फार्मा कंपनियों द्वारा प्रायोजित है, जिसमें ईमानदारी और दूरदर्शिता है ही नहीं, इसलिए यह विश्वसनीय नहीं है.
2. दवाओं या वैक्सीनों को मंज़ूरी देने की प्रक्रिया स्पष्ट और कठोर नियमों वाली नहीं है, जिससे दोयम दर्जे की दवाएं बाज़ार में आती हैं.
3. खराब दवाओं का यह जाल बनाने वाली कमज़ोर रिसर्च प्रणाली बनी रहेगी और बाज़ार पर कब्ज़ा किए रहेगी अगर एक सक्षम और स्वतंत्र निगरानी और नियमन का कोई सिस्टम नहीं बनाया गया.

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ट्रैस किए गए कोरोना वायरस के 'साथी' और 'दुश्मन' जीन्स

मौजूदा समय में कोरोना वायरस के खिलाफ वैक्सीन संबंधी रिसर्च को लेकर दुनिया भर में घमासान मचा हुआ है. कई तरह की चर्चाओं के बीच न्यूज़18 ने आपको यह भी बताया कि फार्मा कंपनियां अपने मुनाफे के लिए किस तरह के हथकंडे अपनाती हैं. इनके विश्लेषण से भी यह ज़ाहिर होता है कि फार्मा उद्योग में 'रिसर्च' मुनाफे के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले एक हथियार या प्रोपैगेंडा से ज़्यादा कुछ नहीं.

अंतत: विशेषज्ञ ये भी कहते हैं कि दुनिया में दवा के क्षेत्र में काम की और ईमानदार शोध भी होते हैं, लेकिन इतने बड़े कारोबार की तुलना में वो नगण्य ही हैं.

Tags: Corona Knowledge, Coronavirus, Coronavirus Update, COVID 19, Covid-19 Update, Health News, Pharma Companies, Pharma Industry, Research

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