अमेरिका की पहली महिला रहीं मिशेल ओबामा के डिप्रेशन का मतलब क्या है?

अमेरिका की पूर्व प्रथम महिला मिशेल ओबामा.
जब किसी देश या समाज का एक प्रमुख व्यक्ति मन की बात (Mann Ki Baat) खुलकर करता है, तो एक बड़ी आबादी को आवाज़ मिलती है. अमेरिका (USA) में 'ब्लैक लाइव्स मैटर' जैसे आंदोलनों और कोरोना वायरस (Corona Virus) वैश्विक महामारी के बीच अगर सबसे चर्चित अफ्रीकी अमेरिकी महिला कहती है कि वह डिप्रेशन झेल रही है, तो यह मामूली बात नहीं है.
- News18India
- Last Updated: August 9, 2020, 4:10 PM IST
हाल में मिशेल ओबामा (Michelle Obama) ने अपने मानसिक तनाव और परेशानियों का खुलासा करते हुए कहा था कि वह डिप्रेशन (Depressive Disorder) की शिकार हैं. इसकी वजह उन्होंने अमेरिका में कई स्तरों पर मौजूदा तनाव के हालात को बताया. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा (Barack Obama) की पत्नी मिशेल ने अपने पति के साथ एक पॉडकास्ट (Podcast) में इस तरह के खुलासे किए थे. अब मिशेल का डिप्रेशन चर्चा में है और विशेषज्ञ इसे बड़ी और व्यापक चिंता के तौर पर डिकोड कर रहे हैं.
Covid-19 के दौर में दुनिया में अगर कहीं मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं सबसे ज़्यादा हैं तो वह अमेरिका है. कैसर फैमिली फाउंडेशन की जून सर्वे की ताज़ा रिपोर्ट की मानें तो कोरोना वायरस संक्रमण की महामारी जबसे फैली है, अमेरिका में तबसे तीन में से एक वयस्क चिंता (Anxiety) या डिप्रेशन का शिकार दिखा. यही नहीं, स्टडीज़ कह चुकी हैं कि इस तरह की समस्याएं अश्वेतों की आबादी में ज़्यादा हैं. उसी आबादी का हिस्सा मिशेल के डिप्रेशन और उसके फैले मायनों को समझना चाहिए.
क्यों हैं मिशेल डिप्रेशन की शिकार
अमेरिका की पूर्व प्रथम महिला मिशेल ओबामा कोविड-19, नस्ली अन्याय और मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन के पाखंड की वजह से खुद को डिप्रेशन का शिकार मान रही हैं. पिछले हफ्ते द मिशेल ओबामा पॉडकास्ट के दूसरे एपिसोड के दौरान उन्होंने कहा था 'मैं आधी रात को जाग जाती हूं, क्योंकि मुझे कोई चिंता या मन कुछ भारी महसूस होता है.'
यह सही वक्त नहीं है. मुझे पता है कि मैं एक तरह के लो-ग्रेड डिप्रेशन की चपेट में आ चुकी हूं लेकिन यह महज़ क्वारंटाइन की वजह से हो, ऐसा नहीं समझना चाहिए. अमेरिका और दुनिया भर में नस्ली संघर्ष और प्रशासन के पाखंड को देखते रहना बड़ा कारण है. अश्वेतों के साथ अमानवीय बर्ताव, हत्याओं और उन्हें फंसाए जाने जैसी सूचनाओं से मैं तंग आ चुकी हूं.
अमेरिकी अश्वेतों के सामने बड़ा संकट
मानसिक स्वास्थ्य के मोर्चे पर अमेरिकी अश्वेत आबादी के सामने बड़ी विपदा खड़ी है. ब्रेओना टेलर, अहमोद आर्बरी, जॉर्ज फ्लॉयड, रेशर्ड ब्रुक्स और अन्य अश्वेतों की जानें जाने के बाद अमेरिका की बड़ी अश्वेत आबादी चिंता और डर से ग्रस्त होकर मानसिक परेशानियों की शिकार है. जॉन्स होपकिंस यूनिवर्सिटी में मनोचिकित्सा की प्रोफेसर एरिका रिचर्ड्स की मानें तो मिशेल का ऐसा कहना कई लोगों को मन की बात कहने के लिए प्रेरित करेगा. खास तौर से महामारी के इस दौर में लोग भीतर ही भीतर जिस तरह घुट रहे हैं, वो लावा अब फूट सकता है.
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अश्वेत महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा क्यों?
दुनिया की शायद सबसे चर्चित अश्वेत महिला मिशेल ओबामा के इस तरह खुलकर अपनी मानसिक पीड़ा बताने को विशेषज्ञ इसलिए अहम मान रहे हैं क्योंकि अब तक अश्वेत समुदायों में खास तौर से महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य को तवज्जो ही नहीं दी गई. इन महिलाओं से 'सुपर वूमन' होने की ही अपेक्षा रखी जाती है, जो घर, बच्चे, नौकरी और सामाजिक ज़िम्मेदारियों को शिद्दत से निभाती हैं.
अश्वेतों के बीच यह उम्मीद ही नहीं की जाती कि कोई महिला अपने मानसिक स्वास्थ्य या दिमागी उलझनों को लेकर बात करे. इस तरह के दबाव में कई महिलाएं तक अपनी भावनाओं का इज़हार नहीं करतीं. बॉस्टन यूनिवर्सिटी में मनोचिकित्सा प्रोफेसर मिशेल डरहम के मुताबिक इस तरह के चलन से ये महिलाएं मदद से वंचित तक रह जाती हैं. अब मिशेल ओबामा के खुलासे इस समुदाय की महिलाओं के लिए मददगार साबित होंगे.
अमेरिका में बहुत खराब हैं अश्वेतों के हालात?
अल्पसंख्यकों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के दफ्तर के मुताबिक श्वेत वयस्कों की तुलना में अश्वेत वयस्क ज़्यादा हैं, जो उदासी, नाउम्मीदी जैसी मानसिक परेशानियां बताते हैं. इनमें भी महिलाएं ज़्यादा. अब्यूज़ और मेंटल हेल्थ प्रशासन के डेटा के मुताबिक मानसिक परेशानियों से जूझ रहे तीन अफ्रीकी अमेरिकियों में से एक को ही किसी किस्म की केयर मिल पाती है.
अश्वेत आबादी के साथ एक अन्याय यह भी होता है कि इनके मामलों में गलत डायग्नोसिस या समस्या को कम डायग्नोस करने या समस्याओं को खारिज कर दिए जाने तक की स्थितियां सामान्य रूप से बनती हैं. यानी सिर्फ सामाजिक तौर पर ही नहीं, बल्कि चिकित्सा क्षेत्र में भी नस्लवाद की जड़े फैली हुई हैं. इसी नस्लवाद के व्यापक मुद्दे पर चल रही बहसों और चर्चाओं के केंद्र में अचानक आ गईं मिशेल के बारे में कुछ खास फैक्ट्स भी जानिए.
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ग्रैमी विजेता, लॉ में करियर और आत्मकथा
मिशेल ओबामा अमेरिकी अश्वेतों के समुदाय में एक फेमिनिस्ट के तौर पर भी चर्चित हो रही हैं. उनके व्यक्तित्व और जीवन से जुड़े कुछ रोचक फैक्ट्स जानिए.
* गैलप के एक सर्वे में 2018 में, मिशेल अमेरिका की सबसे ज़्यादा सराही जाने वाली महिला चुनी गई थीं. उनसे पहले यह सम्मान हिलेरी क्लिंटन के खाते में 17 साल रहा.
* शिकागो की सिडली एंड आस्टिन लॉ फर्म में मिशेल ने तीन साल काम किया था, जब वह 1988 में अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी थीं. यहीं बराक ओबामा उनके साथी थे.
* उनकी आत्मकथा 'बीकमिंग' काफी चर्चित रही, जिस पर नेटफ्लिक्स ने डॉक्युमेंट्री भी बनाई और मिशेल को इसके एल्बम के लिए ग्रैमी अवॉर्ड भी मिला. फिलहाल मिशेल हायर ग्राउंड नाम की संस्था का संचालन करती हैं.
* मिशेल के पूर्वजों ने अमेरिका में गुलामों जैसा जीवन जिया. उनके पिता एक प्लांट पर कर्मचारी थे और उनका पूरा परिवार एक कमरे में रहता था. प्रिंसटन में पढ़ाई के सपने पर उनके टीचर उनका मनोबल तोड़ते थे.

पहले ले चुकी हैं काउंसलर की मदद!
जी हां, मिशेल मानसिक उलझनों के लिए पहले विशेषज्ञों की मदद ले चुकी हैं. हालांकि यह उस वक्त की बात है, जब बराक ओबामा के साथ उनका वैवाहिक जीवन ठीक नहीं चल रहा था और कुछ समय के लिए उन्हें तनाव से गुज़रना पड़ा था. वैश्विक महामारी, अमेरिका में नस्लभेद और ट्रंप प्रशासन के ढोंग के चलते एक बार फिर मिशेल मानसिक तनाव और हताशा के दौर में अश्वेतों की आवाज़ बनकर उभरी हैं.
Covid-19 के दौर में दुनिया में अगर कहीं मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं सबसे ज़्यादा हैं तो वह अमेरिका है. कैसर फैमिली फाउंडेशन की जून सर्वे की ताज़ा रिपोर्ट की मानें तो कोरोना वायरस संक्रमण की महामारी जबसे फैली है, अमेरिका में तबसे तीन में से एक वयस्क चिंता (Anxiety) या डिप्रेशन का शिकार दिखा. यही नहीं, स्टडीज़ कह चुकी हैं कि इस तरह की समस्याएं अश्वेतों की आबादी में ज़्यादा हैं. उसी आबादी का हिस्सा मिशेल के डिप्रेशन और उसके फैले मायनों को समझना चाहिए.
क्यों हैं मिशेल डिप्रेशन की शिकार
अमेरिका की पूर्व प्रथम महिला मिशेल ओबामा कोविड-19, नस्ली अन्याय और मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन के पाखंड की वजह से खुद को डिप्रेशन का शिकार मान रही हैं. पिछले हफ्ते द मिशेल ओबामा पॉडकास्ट के दूसरे एपिसोड के दौरान उन्होंने कहा था 'मैं आधी रात को जाग जाती हूं, क्योंकि मुझे कोई चिंता या मन कुछ भारी महसूस होता है.'

— मिशेल ओबामा
अमेरिकी अश्वेतों के सामने बड़ा संकट
मानसिक स्वास्थ्य के मोर्चे पर अमेरिकी अश्वेत आबादी के सामने बड़ी विपदा खड़ी है. ब्रेओना टेलर, अहमोद आर्बरी, जॉर्ज फ्लॉयड, रेशर्ड ब्रुक्स और अन्य अश्वेतों की जानें जाने के बाद अमेरिका की बड़ी अश्वेत आबादी चिंता और डर से ग्रस्त होकर मानसिक परेशानियों की शिकार है. जॉन्स होपकिंस यूनिवर्सिटी में मनोचिकित्सा की प्रोफेसर एरिका रिचर्ड्स की मानें तो मिशेल का ऐसा कहना कई लोगों को मन की बात कहने के लिए प्रेरित करेगा. खास तौर से महामारी के इस दौर में लोग भीतर ही भीतर जिस तरह घुट रहे हैं, वो लावा अब फूट सकता है.
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मिशेल ओबामा की बायोग्राफी काफी चर्चित रह चुकी है.
अश्वेत महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा क्यों?
दुनिया की शायद सबसे चर्चित अश्वेत महिला मिशेल ओबामा के इस तरह खुलकर अपनी मानसिक पीड़ा बताने को विशेषज्ञ इसलिए अहम मान रहे हैं क्योंकि अब तक अश्वेत समुदायों में खास तौर से महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य को तवज्जो ही नहीं दी गई. इन महिलाओं से 'सुपर वूमन' होने की ही अपेक्षा रखी जाती है, जो घर, बच्चे, नौकरी और सामाजिक ज़िम्मेदारियों को शिद्दत से निभाती हैं.
अश्वेतों के बीच यह उम्मीद ही नहीं की जाती कि कोई महिला अपने मानसिक स्वास्थ्य या दिमागी उलझनों को लेकर बात करे. इस तरह के दबाव में कई महिलाएं तक अपनी भावनाओं का इज़हार नहीं करतीं. बॉस्टन यूनिवर्सिटी में मनोचिकित्सा प्रोफेसर मिशेल डरहम के मुताबिक इस तरह के चलन से ये महिलाएं मदद से वंचित तक रह जाती हैं. अब मिशेल ओबामा के खुलासे इस समुदाय की महिलाओं के लिए मददगार साबित होंगे.
अमेरिका में बहुत खराब हैं अश्वेतों के हालात?
अल्पसंख्यकों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के दफ्तर के मुताबिक श्वेत वयस्कों की तुलना में अश्वेत वयस्क ज़्यादा हैं, जो उदासी, नाउम्मीदी जैसी मानसिक परेशानियां बताते हैं. इनमें भी महिलाएं ज़्यादा. अब्यूज़ और मेंटल हेल्थ प्रशासन के डेटा के मुताबिक मानसिक परेशानियों से जूझ रहे तीन अफ्रीकी अमेरिकियों में से एक को ही किसी किस्म की केयर मिल पाती है.
अश्वेत आबादी के साथ एक अन्याय यह भी होता है कि इनके मामलों में गलत डायग्नोसिस या समस्या को कम डायग्नोस करने या समस्याओं को खारिज कर दिए जाने तक की स्थितियां सामान्य रूप से बनती हैं. यानी सिर्फ सामाजिक तौर पर ही नहीं, बल्कि चिकित्सा क्षेत्र में भी नस्लवाद की जड़े फैली हुई हैं. इसी नस्लवाद के व्यापक मुद्दे पर चल रही बहसों और चर्चाओं के केंद्र में अचानक आ गईं मिशेल के बारे में कुछ खास फैक्ट्स भी जानिए.
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ग्रैमी विजेता, लॉ में करियर और आत्मकथा
मिशेल ओबामा अमेरिकी अश्वेतों के समुदाय में एक फेमिनिस्ट के तौर पर भी चर्चित हो रही हैं. उनके व्यक्तित्व और जीवन से जुड़े कुछ रोचक फैक्ट्स जानिए.
* गैलप के एक सर्वे में 2018 में, मिशेल अमेरिका की सबसे ज़्यादा सराही जाने वाली महिला चुनी गई थीं. उनसे पहले यह सम्मान हिलेरी क्लिंटन के खाते में 17 साल रहा.
* शिकागो की सिडली एंड आस्टिन लॉ फर्म में मिशेल ने तीन साल काम किया था, जब वह 1988 में अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी थीं. यहीं बराक ओबामा उनके साथी थे.
* उनकी आत्मकथा 'बीकमिंग' काफी चर्चित रही, जिस पर नेटफ्लिक्स ने डॉक्युमेंट्री भी बनाई और मिशेल को इसके एल्बम के लिए ग्रैमी अवॉर्ड भी मिला. फिलहाल मिशेल हायर ग्राउंड नाम की संस्था का संचालन करती हैं.
* मिशेल के पूर्वजों ने अमेरिका में गुलामों जैसा जीवन जिया. उनके पिता एक प्लांट पर कर्मचारी थे और उनका पूरा परिवार एक कमरे में रहता था. प्रिंसटन में पढ़ाई के सपने पर उनके टीचर उनका मनोबल तोड़ते थे.

मिशेल अपने पति बराक ओबामा के साथ.
पहले ले चुकी हैं काउंसलर की मदद!
जी हां, मिशेल मानसिक उलझनों के लिए पहले विशेषज्ञों की मदद ले चुकी हैं. हालांकि यह उस वक्त की बात है, जब बराक ओबामा के साथ उनका वैवाहिक जीवन ठीक नहीं चल रहा था और कुछ समय के लिए उन्हें तनाव से गुज़रना पड़ा था. वैश्विक महामारी, अमेरिका में नस्लभेद और ट्रंप प्रशासन के ढोंग के चलते एक बार फिर मिशेल मानसिक तनाव और हताशा के दौर में अश्वेतों की आवाज़ बनकर उभरी हैं.