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आखिर क्‍यों नेहरू ने चीन के खिलाफ पाक की संयुक्‍त रक्षा समझौते की पेशकश ठुकरा दी थी?

पाकिस्‍तान के पहले सैन्‍य शासक जनरल अयूब खान ने पंडित जवाहरलाल नेहरू के सामने चीन के खिलाफ संयुक्‍त रक्षा समझौते का प्रस्‍ताव रखा था.

पाकिस्‍तान के पहले सैन्‍य शासक जनरल अयूब खान ने पंडित जवाहरलाल नेहरू के सामने चीन के खिलाफ संयुक्‍त रक्षा समझौते का प्रस्‍ताव रखा था.

पाकिस्‍तान (Pakistan) के तत्‍कालीन सेना प्रमुख जनरल अयूब खान (Ayub Khan) चीन की विस्‍तारवादी नीति को लेकर चिंतित थे. जब ...अधिक पढ़ें

    लद्दाख में वास्‍तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर भारत और चीन की सेनाएं आमने-सामने हैं. इस बीच चीन (China) को अपना करीबी मित्र राष्‍ट्र बताने वाला पाकिस्‍तान (Pakistan) इस तनाव को एक तरफ खड़ा होकर देख रहा है. जहां पाकिस्‍तान की सरकार लद्दाख तनाव पर चुटकी लेने से बाज नहीं रही. वहीं, सोशल मीडिया पर पाकिस्‍तान के लोग भारत (India) पर तंज कस (Taunting) रहे हैं. चीन को लेकर पाकिस्‍तान का रुख 60 साल पहले इसका एकदम उलट था. वर्ष 1959 में पाकिस्तान और अमरीका (US) के बीच रक्षा सहयोग का समझौता हुआ था, जिसके तहत पेशावर के पास बड़ाबेर हवाई अड्डा सोवियत संघ और चीन की जासूसी के लिए पेंटागन व सीआईए को सौंप दिया गया. वहीं, चीन भी पाकिस्‍तान के खिलाफ था और उसने पाक अधिकृत कश्‍मीर (PoK) में पड़ने वाले हुंजा (Hunza) और गिलगित (Gilgit) को अपने क्षेत्र बताया था.

    चीन की विस्‍तारवादी नीति को लेकर चिंतित थे अयूब खान
    पाकिस्‍तान के पहले सैन्‍य शासक फील्‍ड मार्शल अयूब खान 1958 में सत्‍ता पर काबिज हुए थे. वह कम्‍युनिस्‍ट चीन की विस्‍तारवादी नीति को लेकर चिंतित थे. जनरल खान ने उस समय भारत के सामने ऐसी पेशकश रखी, जो आज के दौर में नामुमकिन लग सकती है. जनरल अयूब खान ने चीन के खिलाफ भारत-पाकिस्‍तान संयुक्‍त सैन्‍य समझौते की पेशकश की थी. पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के पहले कार्यकाल में राष्‍ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे जेएन दीक्षित 2002 में आई अपनी किताब 'इंडिया-पाकिस्‍तान इन वार एंड पीस' में लिखते हैं कि अयूब खान ने 24 अप्रैल 1959 को भारत के सामने इस समझौते का प्रस्‍ताव रखा. इसके एक महीने पहले ही दलाई लामा ने चीन की क्रूरता से बचने के लिए तिब्‍बत से भागकर भारत में शरण ली थी. इसके बाद चीन भारत से और नाराज हो गया.

    मार्च 1959 में दलाई लामा ने चीन की क्रूरता से बचने के लिए तिब्‍बत से भागकर भारत में शरण ली थी. इसके बाद चीन भारत से और नाराज हो गया.


    खान ने चीनी घुसपैठ का मुंहतोड़ जवाब देने की घोषणा की
    दीक्षित टोक्‍यो में पाकिस्‍तानी राजदूत मोहम्‍मद अली के 20 अप्रैल 1959 को दिए बयान का जिक्र करते हैं, जिसमें उन्‍होंने कहा था कि तिब्‍बत के घटनाक्रम से एशियाई लोगों की शालीनता को तगड़ा झटका लगा है. इस मसले ने रेड इम्‍पीरियलिज्‍म के खतरे के प्रति एशिया की आंखें खोल दी हैं. चीनी सैनिकों ने 1953 से ही हुंजा में घुसपैठ शुरू कर दी थी. अयूब खान ने 1959 में की घोषणा में कहा कि पाकिस्‍तान की सेना अपनी सीमा में किसी भी तरह की चीनी घुसपैठ का पूरी ताकत के साथ जवाब देगी. अप्रैल 1959 में पाकिस्‍तान के प्रस्‍ताव को देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने ठुकरा दिया. इसी साल मई में नेहरू ने संसद में कहा कि हम पाकिस्‍तान के साथ साझा रक्षा नीति नहीं चाहते हैं, जो एक तरह का सैन्‍य सहयोग ही होगा.

    समझौते पर नेहरू और सेना प्रमुख में नहीं बनी सहमति
    जेएन दीक्षित लिखते हैं, 'हो सकता है कि नेहरू अयूब खान की ओर से आए इस संयुक्‍त रक्षा समझौते को जम्‍मू-कश्‍मीर (Jammu-Kashmir) को लेकर किसी तरह के समझौते के तौर पर देख रहे हों. शायद इसीलिए उन्‍होंने प्रस्‍ताव को ठुकरा दिया हो.' द वीक की रिपोर्ट के मुताबिक, इससे पहले खुद नेहरू ने 1948 में जम्‍मू-कश्‍मीर में घुसपैठ के बाद 1949 में पाकिस्‍तान के सामने 'नो वार' समझौते (No War Pact) की पेशकश रखी थी, जिसे इस्‍लामाबाद ने ठुकरा दिया था. अयूब खान ने सितंबर 1959 में बताया कि उनके प्रस्‍ताव में जम्‍मू-कश्‍मीर और कैनाल वाटर समस्‍या (Canal Water Issue) का समाधान निकालना भी एक शर्त थी. वहीं, कुछ विद्वानों का ये भी मानना है कि नेहरू और तत्‍कालीन भारतीय सेना (Indian Army) प्रमुख केएस थिमैया के बीच असहमति के कारण भी अयूब खान का प्रस्‍ताव ठुकरा दिया गया था.

    1965 के युद्ध ने पाकिस्तान और चीन की दोस्ती पर मुहर पक्की कर दी. तब से आज तक हर मौके पर चीन और पाकिस्‍तान एकदूसरे का साथ देतेे आ रहा हैंं.


    भारत से निराश पाक ने चीन से बना लिए दोस्‍ताना संबंध
    चाउ एन लाई ने 1960 में चीन-भारत सीमा विवाद समाप्त करने के लिए सुझाव दिया. उन्‍होंने कहा कि अगर भारत लद्दाख से जुड़े अक्साई चीन क्षेत्र पर चीनी दावा स्वीकार कर ले तो चीन हिमालय की दक्षिणी तराई पर अपना दावा वापस लेने को तैयार है. नेहरू सरकार ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया. फिर बढ़ते हुए तनाव में चीन ने 1962 में भारत की दो सीमाओं पर हमला ही नहीं बल्कि पराजित भी कर डाला. जब इस मामले को अंतरराष्‍ट्रीय मंच पर उठाया गया तो अमेरिका और सोवियत संघ ने भारत का साथ दिया. पाकिस्तान अमेरिका के रवैये पर हैरान हुआ और फिर चीन के साथ संबंध सुधारने का ऐतिहासिक फैसला कर लिया. फटाफट सरहदी हदबंदी का समझौता भी हो गया. इसके बाद 1965 के युद्ध ने पाकिस्तान और चीन की दोस्ती पर मुहर पक्की कर दी. तब से आज तक हर मौके पर चीन पाकिस्‍तान का और पाकिस्‍तान चीन का साथ देता आ रहा है.

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    Tags: Ayub Khan, India and china, India pakistan, Indian Border, Indo-Nepal Border Dispute, Jawaharlal Nehru, Ladakh S09p04

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