संसद में प्रश्नकाल (Question Hour) को रद्द करने के कदम पर आलोचना झेल रही केंद्र सरकार (Government of India) ने हाल में, संसद (Parliament) में एक बयान में उस बैंक से भारी भरकम कर्ज़ लिये जाने की बात मानी, जिसमें चीन की हिस्सेदारी (China Stake) सबसे ज़्यादा है. वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर (Anurag Thakur) ने जबसे यह ब्योरा दिया, तबसे कांग्रेस (Congress) और विपक्षी पार्टियां सवाल खड़े कर रही हैं कि एक तरफ चीन के साथ युद्ध की तैयारी (India-China Face-Off) चल रही है, तो दूसरी तरफ, सरकार चीन से इतना बड़ा लोन लेकर किस तरह की नीति ज़ाहिर कर रही है.
इस लोन का और ऐसे बैंक से लोन लेने का पूरा अर्थ क्या है? यह आपको बताएंगे लेकिन उससे पहले पूरा माजरा समझ लीजिए और यह भी कि सरकार ने किस तरह और कब यह लोन लिया. यानी संसद में केंद्रीय मंत्री ने जो ब्योरा दिया, उसके मुताबिक आंकड़े क्या कहते हैं.
एग्रीमेंट के मुताबिक क्या है लोन?
एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (AIIB) से भारत ने दो किश्तों में कुल 9 हज़ार करोड़ रुपये से भी ज़्यादा का लोन लिया. पहला एग्रीमेंट 8 मई को हुआ, जिसके मुताबिक कोविड 19 महामारी से जूझने के एक प्रोग्राम के लिए भारत ने $50 करोड़ (Rs 3,676 करोड़ लगभग) का लोन लिया. दूसरा एग्रीमेंट 19 जून को हुआ, जिसके मुताबिक $75 करोड़ (Rs 5,514 करोड़ लगभग) का लोन लिया गया. यहां दो बातें गौरतलब हैं.

बीते 15 जून को गलवान संघर्ष के बाद भारत ने लोन लिया था.
पहली तो ये कि दूसरा समझौता 15 जून को गलवान में चीनी सैन्य हमले के बाद बन चुके तनाव के बाद हुआ. और दूसरी बात यह है कि अब तक भारत को लिये गए कुल 9 हज़ार करोड़ रुपये से ज़्यादा के लोन में से करीब 7 हज़ार करोड़ की राशि मिल चुकी है. बाकी मिलना है.
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इससे पहले, भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारत की 111 लाख करोड़ रुपये की इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास परियोजना में भी AIIB को भागीदारी के लिए आमंत्रित किया था ताकि कोविड से बैठी अर्थव्यवस्था को फिर खड़ा करने में मदद मिल सके.
क्या है इस लोन पर बवाल?
सबसे पहले इस बैंक का गणित समझना होगा. 2016 में बने AIIB में भारत की हिस्सेदारी 7.65 फीसदी की है और चीन की सबसे ज़्यादा 26.63 फीसदी की. साथ ही इसका मुख्यालय चीन में ही है इसलिए यह सीधे तौर पर चीन के वर्चस्व वाला बैंक है. इसी बात को आधार बनाकर कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके
राहुल गांधी ने केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए कहा था कि सरकार एक तरफ चीन के खिलाफ लड़ रही है और दूसरी तरफ भारी भरकम लोन ले रही है.
इसके बाद कांग्रेस व विपक्ष के कई नेताओं ने इस मुद्दे पर
सरकार को घेरा और सवाल खड़े किए. केंद्र सरकार पर पाखंड और दोहरी नीतियों के आरोप लगाए गए. सवाल खड़े हुए कि एक तरफ, सरकार चीन के एप्स को बंद करके देश को चीन के विरोध और बॉयकॉट का संदेश दे रही है और पीछे से मदद ले रही है. अब जानिए कि इन आरोपों का पूरा मतलब क्या निकलता है और इस लोन का पूरा सच कैसे समझना चाहिए.

राहुल गांधी का ट्वीट.
क्या है AIIB?
यह एक
बहुदेशीय बैंक है. यह उस तरह की संस्था होती है, जो दो या उससे अधिक देश मिलकर बनाते हैं ताकि गरीब और सदस्य देशों को आर्थिक सहायता मुहैया कराई जा सके. वर्ल्ड बैंक, एशियन डेवलपमेंट बैंक और इंटर अमेरिकन डेवलपमेंट बैंक भी इसी तरह के बैंक हैं जो सहभागिता आधारित वित्तीय संस्थाएं हैं. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस बैंक का प्रस्ताव रखा था, जिसके बाद 57 देशों ने मिलकर यह बैंक बनाया था.
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अब इस बैंक की राजनीति यह है कि विकास के अमेरिकी सिद्धांत के खिलाफ यह बैंक बना है और जापान इस बैंक का सदस्य नहीं है क्योंकि उसे एशियन डेपलपमेंट बैंक का प्रमुख खिलाड़ी माना जाता है. सबसे बड़ा हिस्सेदार चीन है और फिर भारत. इसके बाद रूस और जर्मनी की हिस्सेदारी है. जी हां, बाद में इस बैंक के सदस्यों में एशिया के बाहर के भी कुछ देश जुड़े
क्या चीन के प्रभाव में काम करता है बैंक?
इस बैंक में कई देशों के प्रतिनिधि गवर्नर बोर्ड में होते हैं. भारत से वित्त मंत्री सीतारमण इस बैंक के बोर्ड में हैं. हालांकि बोर्ड से आगे इस बैंक का अध्यक्ष पद होता है, जिसके लिए चुनाव होता है. इस पद पर लगातार दूसरी बार चीन का ही कब्ज़ा है क्योंकि सबसे ज़्यादा वोटिंग हिस्सेदारी भी चीन के ही पास है. दूसरी तरफ, इस बैंक से सबसे ज़्यादा कर्ज़ लेने वाले देशों में भारत अव्वल है.

न्यूज़18 क्रिएटिव
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रिपोर्ट कहती है कि यह चूंकि सहभागिता आधारित बैंक है इसलिए इसमें एक देश से पैसा नहीं आता बल्कि कई सहयोगी देश पैसा लगाते हैं. लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि चीन के चाहने पर ही यह बैंक कर्ज़ देने और निवेश करने जैसे निर्णय लेता है.
भारत को क्यों है कर्ज़ लेने की ज़रूरत?
विशेषज्ञों के बीच सबसे बड़ी चर्चा का विषय यही है कि भारत के पास जब 500 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है और ये बैंक ज़्यादा कर्ज़ दे भी नहीं पाते, तो भारत को कर्ज़ लेने की ज़रूरत ही क्यों है. इसी रिपोर्ट में अर्थशास्त्री इसका जवाब बताते हैं कि भारत को ऐसी संस्थाओं से कर्ज लेने से इसलिए भी बचना चाहिए क्योंकि कर्ज़ देने के बदले ये संगठन देश के नीति निर्माण में दखलंदाज़ी करते हैं.
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दूसरी तरफ, अर्थशास्त्रियों की दलील यह भी है कि अर्थव्यव्स्था के कमज़ोर होने और कोविड 19 के प्रकोप के बीच भारत को कर्ज़ लेने के बजाय अपने ही कोष से गरीबों की मदद करना चाहिए.
बहरहाल, इस मुद्दे पर फंसी सरकार के पक्ष में सिर्फ यही बात जाती है जो चीन के अखबार
ग्लोबल टाइम्स ने कही थी कि यह डील गलवान घाटी में तनाव से पहले ही हो चुकी थी. और, यह इस बात का सबूत है कि रक्षा अपनी जगह है और आर्थिक रिश्ते अपनी जगह. इस अखबार ने यह भी लिखा कि भारत के आर्थिक विकास को नुकसान पहुंचाना चीन का मकसद नहीं है. हालांकि इससे फिर यही ज़ाहिर हुआ कि इस बैंक को चीन अपनी बपौती समझने का नज़रिया रखता है.
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FIRST PUBLISHED : September 21, 2020, 10:31 IST