Covid 19 का विश्लेषण हो या महामारियों का इतिहास, आंकड़े गवाह हैं कि संक्रामक रोग बेहद तेज़ी से बढ़ रहे हैं. 1940 से 2000 तक संक्रामक रोग चौगुने हुए जिसमें 1980 के दशक में एचआईवी (HIV) के कारण बड़ा उछाल देखा गया. रोग ही नहीं, बल्कि आउटब्रेक (Outbreaks) भी बढ़े. 1980 से सभी रोगों का आंकड़ा बताता है कि 2010 तक आउटब्रेक करीब तीन गुना बढ़े.

वास्तव में, हम मनुष्यों ने ही पृथ्वी पर ऐसा वातारवण बना दिया है कि पहले की तुलना में बैक्टीरिया और विषाणुजनित रोग बढ़े हैं बल्कि ये सिलसिला जारी रहने का भी खतरा है.
? मैरी विल्सन, महामारी विशेषज्ञ
क्यों बढ़ रहे हैं संक्रामक रोग?
इसके कई कारण हैं और सारे कारणों को आप गौर से समझेंगे तो सभी एक दूसरे से गुंथे हुए भी हैं. कई कारणों में से कुछ प्रमुख के बारे में यहां चर्चा करते हैं और यह भी समझते हैं कि संक्रामक बीमारियों के फैलने के लिए मनुष्य कितना ज़िम्मेदार है.
1. जनसंख्या विस्फोट
जब 1918 में स्पैनिश फ्लू फैला था, तब पृथ्वी पर 1.8 अरब आबादी थी जो 1970 के आसपास 3.7 अरब थी. पिछले 50 सालों में यह आबादी दोगुनी से भी ज़्यादा हो गई है और 2050 तक इससे भी तेज़ रफ्तार तक बढ़ सकती है. इसका बड़ा खमियाज़ा यह है कि लोग घनी बस्तियों में रहने के लिए मजबूर हैं और दुनिया के कुछ हिस्सों में तो ये बस्तियां बेहद घनी हैं. इससे संक्रमण फैलना आसान होता है.
2. प्रकृति से छेड़छाड़
उद्योगों, खनन और वन कटाई का अंजाम यह है कि मनुष्यों की आबादी वन्य जीवों और कीटों के संपर्क में तेज़ी से आई है. चूंकि इस जीवजगत का प्राकृतिक आवास छीना गया है इसलिए ये जीव अब वनों के बजाय उपनगरीय क्षेत्रों की मनुष्यों और नगरीय जीवों की आबादी के सीधे संपर्क में हैं. मलेरिया और इबोला जैसे संक्रमण ऐसी ही भूलों का नतीजा थे. अब अगर इस स्थिति पर लगाम नहीं लगी तो और खतरनाक संक्रमणों के फैलने के खतरे से इनकार नहीं किया जा सकता.
3. जानवरों से खाद्य
ज़्यादा आबादी के लिए ज़्यादा भोजन चाहिए. उद्योगों और शहरीकरण के चलते खेती सीमित होने के कारण जानवरों को भोजन के तौर पर इस्तेमाल करने का चलन बढ़ा. दुनिया में प्रति व्यक्ति मांस उपभोग 1961 की तुलना में दोगुनी तेज़ी से बढ़ा है. अब होता ये है कि खाए जाने वाले जानवरों को बहुत कम जगह में ठूंसकर रखा जाता है. साथ ही, मनुष्य इन जानवरों के नज़दीकी संपर्क में रहते हैं. इससे संक्रमण के खतरे बढ़ते ही हैं.
4. दुनिया का सिमट जाना
ग्लोबलाइज़ेशन के चलते दुनिया भर में आना जाना आसान और तेज़ हो गया है. नतीजा ये है कि संक्रमण पूरी दुनिया में फैल सकता है. जैसा कोविड 19 के सिलसिले में हुआ कि महामारी कुछ ही हफ्तों में दुनिया के लगभग हर देश में फैल गई जिससे 50 लाख से ज़्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं. सस्ती, आसान और ज़्यादा उड़ानों के चलते दुनिया में 2018 में 4.3 अरब यात्रियों ने हवाई यात्रा की. 1970 में यही आंकड़ा 31 करोड़ यात्रियों का था.
पुरानी सदियों में समुद्री जहाज़ों से यात्रा के चलते कॉलेरा फैलने के प्रमाण मिलते हैं, लेकिन जिस तरह हवाई यात्रा के ज़रिए दुनिया भर में आवागमन बढ़ा है, ऐसा इतिहास में कभी नहीं हुआ. मैरी विल्सन के मुताबिक यह संक्रमण के तेज़ी से फैलने का माध्यम है क्योंकि किसी वायरस के इन्क्यूबेशन समय से कम समय के भीतर दुनिया के किसी भी कोने में पहुंचा जा सकता है.

चीन के वुहान से कोरोना वायरस केस सामने आने के कुछ ही हफ्तों में पूरी दुनिया में संक्रमण फैल गया था. फाइल फोटो.
क्या कुछ सकारात्मक भी है?
संक्रामक रोगों को लेकर चर्चा करती डीडब्ल्यू की रिपोर्ट के मुताबिक पिछली सदी में रिसर्च और विज्ञान के क्षेत्र में जो पद्धतियां विकसित हुईं, जो आविष्कार हुए, उन्हीं के कारण एड्स और स्मॉल पॉक्स जैसी जानलेवा महामारियों पर मनुष्य ने काबू पाया. टीके विकसित करने में सफलता हासिल की. लेकिन कोरोना वायरस ने कई सबक देते हुए यह साबित कर दिया है कि एक लंबे समय के लिए मनुष्य किस कदर बेबस भी हो सकता है.
अब दुनिया को उठाने होंगे ये कदम
1. पूरी दुनिया में लोक स्वास्थ्य के लिए एक बहुत बेहतर आधारभूत ढांचे की ज़रूरत है ताकि भविष्य में किसी भी संक्रमण के खिलाफ ज़्यादा कारगर तरीके से लड़ा जा सके.
2. हमें विज्ञान और रिसर्च पर लगातार निवेश करने की ज़रूरत है और महामारी का समय हो या नहीं लेकिन भविष्य के खतरे भांपते हुए वैक्सीन रिसर्च और उत्पादन पर ज़ोर देना ही होगा.
3. दुनिया के हर हिस्से में बेहतर निगरानी सिस्टम बहुत ज़रूरी है. ताकि हमें पता हो कि कौन किस जानवर के कितने संपर्क में रहता है.
4. स्वास्थ्य संबंधी आदतों और अनुशासनों का पालन अब करना ही होगा. कोरोना वायरस के बाद आप सेहत के सिलसिले में कोई भी जोखिम लेंगे तो खुद को संक्रमण के खतरे में डालेंगे ही.
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FIRST PUBLISHED : May 22, 2020, 14:29 IST