जब डार्विन की थ्योरी पढ़ाने के कारण टीचर पर चला था मुकद्दमा

इस चर्चित केस पर बनी हॉलीवुड फिल्म इनहेरिट द विंड का एक दृश्य.
वैज्ञानिक सिद्धांत के खिलाफ अमेरिकी राज्य में बाकायदा कानून बनाकर इसके बारे में पढ़ाना और चर्चा करना गैर कानूनी कर दिया गया था. एक शिक्षक पर इसी मामले में मुकद्दमा चला, जो बेहद चर्चित रहा. क्या वह मुकद्दमा सच्चा था? उस मुकद्दमे के साथ ही जानें कि कैसे सालों बाद इस तरह के कानूनों को खत्म किया गया.
- News18India
- Last Updated: May 5, 2020, 4:18 PM IST
इतिहास (History) के पन्ने खुलते हैं तो न सिर्फ दिलचस्प और दर्दनाक कहानियां निकलती हैं, बल्कि मनुष्य की मूर्खताओं के उदाहरण बिखरे मिलते हैं. 1925 में आज ही के दिन यानी 5 मई को अमेरिका (USA) में एक शिक्षक को सिर्फ इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया था क्योंकि वह जीवन की उत्पत्ति (Origin of Life) और क्रमिक विकास (Evolution) के बारे में पढ़ा रहा था. क्या आप यकीन कर सकते हैं कि इस टीचर के खिलाफ बाकायदा मुकद्दमा (Trial) चला और वह दोषी भी करार दिया गया?
यह कहानी सिर्फ एक मुकद्दमे की कहानी नहीं बल्कि एक ऐसे कानून (Law) को लेकर बहस को ज़्यादा तवज्जो देती है, जिसे करीब 50 साल पहले अमेरिकी राज्य ने खत्म तो कर दिया, लेकिन जीवन के विकास संबंधी वैज्ञानिक सिद्धांत (Scientific Theory) और मान्यता के बीच जो बहस एक सदी से ज़्यादा पुरानी हो गई, आज भी जारी है. इस कहानी के सिरे पकड़कर जानिए कि क्या था वो मुकद्दमा जो दुनिया भर में चर्चित हुआ.
अगर किसी गरीब व्यक्ति के कष्ट का कारण कुदरती नहीं बल्कि हमारी संस्थाओं के कानून हैं, तो यह पाप ज़्यादा बड़ा है.

स्कोप्स मंकी ट्रायल की शुरूआत
अमेरिका के टेनीज़ प्रांत में अधिकारियों ने 1925 में एक वैकल्पिक स्कूल टीचर जॉन स्कोप्स को इस इल्ज़ाम में गिरफ्तार किया था कि उसने राज्य के सरकारी स्कूल में मानव के क्रमिक विकास के बारे में पढ़ाकर एक ताज़ा बने कानून का उल्लंघन किया. इसके बाद स्कोप्स मंकी ट्रायल शुरू हुआ था, जिसे पूरे अमेरिका में खासी सुर्खियां मिलीं और टेनीज़ का छोटा सा कस्बा डेटन चर्चित हो गया.
मीडिया सर्कस बन गया मुकद्दमा
तमाम औपचारिकताओं के बाद 10 जुलाई को स्कोप्स के खिलाफ अदालत में मुकद्दमा शुरू हुआ, जिसे मंकी स्कोप्स ट्रायल के नाम से जाना गया. यह मुकद्दमा देखते ही देखते मीडिया के लिए मनोरंजन और बेचने की चीज़ बनता चला गया. कोर्ट रूम में रिपोर्टरों और लोगों की भारी भीड़ को देखकर एक जज ने सातवें दिन सुनवाई खुले में करने का आदेश दिया.
'डार्विन की थ्योरी की जांच का मंच नहीं है कोर्ट'
स्कोप्स ट्रायल की सुनवाई कर रहे जज जॉन रॉल्स्टन ने वकीलों और पक्षकारों को साफ हिदायत दी कि यह कोर्ट चार्ल्स डार्विन की जीवन की उत्पत्ति और विकास संबंधी स्थापित थ्योरी के बारे में विचार विमर्श करने की जगह नहीं है. यहां मुकद्दमे से संबंधित सुनवाई ही होगी. इसके बाद मुकद्दमे में कुछ खास बचा नहीं था और मुकद्दमा सरकारी वकील के पाले में पहुंच गया था.

सिर्फ 9 मिनट में हो गया फैसला!
ट्रायल कुल 11 दिन चला. 21 जुलाई को सुनवाई के बाद फैसला सुनाने में ज्यूरी ने सिर्फ 9 मिनट का समय लिया और स्कोप्स को दोषी करार देकर उस पर 100 डॉलर का जुर्माना लगाया गया. हालांकि इसके बाद टेनीज़ राज्य के सुप्रीम कोर्ट ने स्कोप्स को तकनीकी आधार पर बख्श दिया लेकिन राज्य के कानून की संवैधानिकता का समर्थन किया.
इस किताब में जो दृष्टिकोण दिए गए हैं, उनसे किसी के भी धार्मिक नज़रिये को आघात पहुंच सकता है, मुझे इस बात का कोई ठीक कारण समझ नहीं आता.
40 साल बाद रद्द हुआ कानून
इस मुकद्दमे के बाद बहस लंबी चली कि इस तरह के इल्ज़ाम कितने जायज़ हैं और ऐसा कोई कानून भी कितना? 1967 में जाकर कानून निर्माताओं ने इस कानून को समाप्त किया और इसके बाद राज्य के सरकारी स्कूलों में जीवन के विकास के विषय पर पढ़ाई और चर्चा कानूनी हो सकी. 1968 में, सुप्रीम कोर्ट ने जीवन के विकास सिद्धांतों के विरोधी हर कानून को असंवैधानिक करार दिया.
अब सवाल है कि ये कानून था क्या और क्यों?
इसे बटलर एक्ट के नाम से जाना जाता है. 1925 में ही तमाम औपचारिकताओें के बाद विधि निर्माता जॉन वॉशिंगटन बटलर द्वारा प्रस्तावित यह कानून टेनीज़ में लागू हुआ था. इसमें साफ लिखा गया था :
क्या यह पूरा ट्रायल नाटक था?
11 दिनों तक जो स्कोप्स ट्रायल चला, क्या वह पूरी तरह कोई नाटक था? एक रिपोर्ट की मानें तो 5 मई को स्कोप्स की गिरफ्तारी से एक दिन पहले 4 मई को चटनूगा टाइम्स में एक विज्ञापन छपा था कि बटलर एक्ट के टेस्ट केस के लिए टेनीज़ का जो टीचर अभियुक्त बनने को तैयार होगा, उसका सारा कानूनी खर्च अमेरिकन सिविल लिबर्टीज़ यूनियन उठाएगी. कहा जाता है कि इसके चलते ही स्कोप्स ने टेस्ट केस के लिए सहमति दी थी.

ऐसा होने का कारण बताया जाता है कि इस केस के चलते छोटे से कस्बे डेटन को भारी लोकप्रियता मिल सकती थी और यह भी कहा गया कि इस तरह के केस की परिकल्पना दवाई की एक स्थानीय दुकान पर बनी थी. बहरहाल, बात यह है कि इस केस पर कई किताबें लिखी गईं, नाटक रचे गए और एक चर्चित फिल्म भी बनी. अंतत: 100 साल पुराने इस केस के बाद डार्विन के सिद्धांत और दैवीय सिद्धांतों के बीच बहस आज तक जारी है.
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यह कहानी सिर्फ एक मुकद्दमे की कहानी नहीं बल्कि एक ऐसे कानून (Law) को लेकर बहस को ज़्यादा तवज्जो देती है, जिसे करीब 50 साल पहले अमेरिकी राज्य ने खत्म तो कर दिया, लेकिन जीवन के विकास संबंधी वैज्ञानिक सिद्धांत (Scientific Theory) और मान्यता के बीच जो बहस एक सदी से ज़्यादा पुरानी हो गई, आज भी जारी है. इस कहानी के सिरे पकड़कर जानिए कि क्या था वो मुकद्दमा जो दुनिया भर में चर्चित हुआ.

— चार्ल्स डार्विन - वॉएज ऑफ द बीगल

भारी भीड़ जमा होने के कारण स्कोप्स ट्रायल की सुनवाई कोर्टरूम की जगह खुली जगह पर करना पड़ी थी. विकिपीडिया पर उस मौके की यह तस्वीर सुरक्षित है.
स्कोप्स मंकी ट्रायल की शुरूआत
अमेरिका के टेनीज़ प्रांत में अधिकारियों ने 1925 में एक वैकल्पिक स्कूल टीचर जॉन स्कोप्स को इस इल्ज़ाम में गिरफ्तार किया था कि उसने राज्य के सरकारी स्कूल में मानव के क्रमिक विकास के बारे में पढ़ाकर एक ताज़ा बने कानून का उल्लंघन किया. इसके बाद स्कोप्स मंकी ट्रायल शुरू हुआ था, जिसे पूरे अमेरिका में खासी सुर्खियां मिलीं और टेनीज़ का छोटा सा कस्बा डेटन चर्चित हो गया.
मीडिया सर्कस बन गया मुकद्दमा
तमाम औपचारिकताओं के बाद 10 जुलाई को स्कोप्स के खिलाफ अदालत में मुकद्दमा शुरू हुआ, जिसे मंकी स्कोप्स ट्रायल के नाम से जाना गया. यह मुकद्दमा देखते ही देखते मीडिया के लिए मनोरंजन और बेचने की चीज़ बनता चला गया. कोर्ट रूम में रिपोर्टरों और लोगों की भारी भीड़ को देखकर एक जज ने सातवें दिन सुनवाई खुले में करने का आदेश दिया.
'डार्विन की थ्योरी की जांच का मंच नहीं है कोर्ट'
स्कोप्स ट्रायल की सुनवाई कर रहे जज जॉन रॉल्स्टन ने वकीलों और पक्षकारों को साफ हिदायत दी कि यह कोर्ट चार्ल्स डार्विन की जीवन की उत्पत्ति और विकास संबंधी स्थापित थ्योरी के बारे में विचार विमर्श करने की जगह नहीं है. यहां मुकद्दमे से संबंधित सुनवाई ही होगी. इसके बाद मुकद्दमे में कुछ खास बचा नहीं था और मुकद्दमा सरकारी वकील के पाले में पहुंच गया था.

जीव वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन के सिद्धांत और किताबें 1925 तक काफी चर्चित हो चुके थे.
सिर्फ 9 मिनट में हो गया फैसला!
ट्रायल कुल 11 दिन चला. 21 जुलाई को सुनवाई के बाद फैसला सुनाने में ज्यूरी ने सिर्फ 9 मिनट का समय लिया और स्कोप्स को दोषी करार देकर उस पर 100 डॉलर का जुर्माना लगाया गया. हालांकि इसके बाद टेनीज़ राज्य के सुप्रीम कोर्ट ने स्कोप्स को तकनीकी आधार पर बख्श दिया लेकिन राज्य के कानून की संवैधानिकता का समर्थन किया.

— चार्ल्स डार्विन - द ओरिजिन ऑफ स्पीशीज़
40 साल बाद रद्द हुआ कानून
इस मुकद्दमे के बाद बहस लंबी चली कि इस तरह के इल्ज़ाम कितने जायज़ हैं और ऐसा कोई कानून भी कितना? 1967 में जाकर कानून निर्माताओं ने इस कानून को समाप्त किया और इसके बाद राज्य के सरकारी स्कूलों में जीवन के विकास के विषय पर पढ़ाई और चर्चा कानूनी हो सकी. 1968 में, सुप्रीम कोर्ट ने जीवन के विकास सिद्धांतों के विरोधी हर कानून को असंवैधानिक करार दिया.
अब सवाल है कि ये कानून था क्या और क्यों?
इसे बटलर एक्ट के नाम से जाना जाता है. 1925 में ही तमाम औपचारिकताओें के बाद विधि निर्माता जॉन वॉशिंगटन बटलर द्वारा प्रस्तावित यह कानून टेनीज़ में लागू हुआ था. इसमें साफ लिखा गया था :
राज्य के फंड से पूर्णत: या आंशिक रूप से चलने वाले किसी भी शैक्षणिक संस्थान में अगर जीवन संबंधी ऐसी कोई भी थ्योरी पढ़ाई जाती है, जो बाइबल में लिखित मनुष्य की दैवीय उत्पत्ति के सिद्धांत को खारिज करती है और यह कहती है कि मनुष्य तुच्छ जीवों के क्रमिक विकास से विकसित हुआ, तो यह गैर कानूनी होगा.
क्या यह पूरा ट्रायल नाटक था?
11 दिनों तक जो स्कोप्स ट्रायल चला, क्या वह पूरी तरह कोई नाटक था? एक रिपोर्ट की मानें तो 5 मई को स्कोप्स की गिरफ्तारी से एक दिन पहले 4 मई को चटनूगा टाइम्स में एक विज्ञापन छपा था कि बटलर एक्ट के टेस्ट केस के लिए टेनीज़ का जो टीचर अभियुक्त बनने को तैयार होगा, उसका सारा कानूनी खर्च अमेरिकन सिविल लिबर्टीज़ यूनियन उठाएगी. कहा जाता है कि इसके चलते ही स्कोप्स ने टेस्ट केस के लिए सहमति दी थी.

पॉलिटिको की यह तस्वीर गवाह है कि स्कोप्स ट्रायल उस समय इतना चर्चित हुआ कि इस पर जगह जगह तरह तरह की बहस हुआ करती थी. इस पर किताबें छपीं, फिल्में बनीं और नाटक खेले गए.
ऐसा होने का कारण बताया जाता है कि इस केस के चलते छोटे से कस्बे डेटन को भारी लोकप्रियता मिल सकती थी और यह भी कहा गया कि इस तरह के केस की परिकल्पना दवाई की एक स्थानीय दुकान पर बनी थी. बहरहाल, बात यह है कि इस केस पर कई किताबें लिखी गईं, नाटक रचे गए और एक चर्चित फिल्म भी बनी. अंतत: 100 साल पुराने इस केस के बाद डार्विन के सिद्धांत और दैवीय सिद्धांतों के बीच बहस आज तक जारी है.
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वो देश जहां शराब बेचना और पीना प्रतिबंधित है
ये है चीन की 'बैट वूमन', जिन पर हैं अमेरिका को गुप्त सूचनाएं देने के आरोप