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क्यों पेड़ लगाने के कारण लेबनान पर भड़का हुआ है इजरायल?

लेबनान में दक्षिणी सीमा पर इन दिनों जमकर वृक्षारोपण किया जा रहा है- सांकेतिक फोटो (Photo-pixabay)

लेबनान में दक्षिणी सीमा पर इन दिनों जमकर वृक्षारोपण किया जा रहा है- सांकेतिक फोटो (Photo-pixabay)

बेरूत धमाके से कमजोर पड़े लेबनान (Beirut blast in Lebanon) पर दोबारा संकट के बादल गहरा रहे हैं. इस बार कारण है इजरायल स ...अधिक पढ़ें

    लेबनान की राजधानी बेरूत में 4 अगस्त की रात भयंकर विस्फोट में लगभग आधी राजधानी तबाह हो गई. विस्फोट को एक दुर्घटना बताया जा रहा है. वैसे लेबनान पहले से ही संकट से जूझ रहा है. वहां की अर्थव्यवस्था डूबने की कगार पर है. साथ ही पड़ोसी देशों के बीच भी ये पिस रहा है. माना जा रहा है कि अब लेबनान और इजरायल के बीच तनाव बढ़ सकता है, जिसकी वजह है लेबनान का सीमा पर हजारों की संख्या में पेड़ लगाना. जानिए, कैसे पेड़ लगाने जैसी मामूली बात पर लेबनान इजरायल के गुस्से का शिकार हो सकता है.

    क्यों हो रहा है वृक्षारोपण
    लेबनान में दक्षिणी सीमा पर इन दिनों जमकर वृक्षारोपण किया जा रहा है. इसका मकसद सिर्फ हरियाली लाना नहीं, बल्कि बॉर्डर पर इजरायल के जासूसी कैमरों का रास्ता रोकना भी है. लेबनानी मीडियाकर्मी अली शुइबी के मुताबिक इजरायल सीमा की अपनी दीवारों पर जासूसी कैमरे लगा रहा है. इसके जवाब में लेबनानी पर्यावरण संस्था ग्रीन विदाउट बॉर्डर्स वहीं पर पेड़ लगाने का अभियान शुरू कर चुकी है. बता दें कि ये पेड़ इजरायल के कंक्रीट बॉर्डर से सटाते हुए रोपे जा रहे हैं. इससे इजरायल की तकनीकी जासूसी पर बड़ा फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन पेड़ों के बड़ा और घना होने के कारण ये इजरायली कैमरों के बीच में जरूर आने लगेंगे. माना जा रहा है कि इससे लेबनान पर इजरायली का कहर बरप सकता है.

    बेरूत धमाके से कमजोर पड़े लेबनान पर दोबारा संकट के बादल गहरा रहे हैं (Photo-cnbc)


    क्यों आया इजरायल को गुस्सा
    असल में इजरायल को इससे ज्यादा समस्या है कि पेड़ किनके कहने पर लगाए जा रहे हैं. वॉल स्ट्रीट जर्नल के मुताबिक लेबनानी पर्यावरण संस्था हिजबुल्लाह के कहने पर चलती है. यहां ये जानना जरूरी है कि हिजबुल्लाह एक आतंकी संगठन है, जिसे ईरान इजरायल के खिलाफ आतंक फैलाने के लिए आर्थिक मदद देता आता है. हालांकि लेबनान में ये एक अहम संगठन है, जिसका राजनीति में भी खूब दखल है. इसका मकसद इजरायल को पूरी तरह से खत्म कर देना है.

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    किनके बीच है असल टकराव
    यही वजह है कि आएदिन इजरायल और लेबनान में ठनी रहती है. अब इजरायल मान रहा है कि सीमा पर पेड़ लगाने का अभियान हिजबुल्लाह के कहने पर कराया जा रहा है ताकि पेड़ों से कैमरे अवरुद्ध हो जाएं और हिजबुल्लाह आतंकी गतिविधियों को चोरी-छिपे अंजाम दे सके. यही वजह है कि इजरायल लेबनान पर भड़का हुआ है.



    किसलिए शक निराधार नहीं
    वैसे इजरायल का ये संदेह पूरी तरह से गलत भी नहीं. साल 2019 के सितंबर में पेड़ों की आड़ से हिजबुल्लाह ने इजरायल के तीन गश्त करने वाले नेवी पेट्रोल को तबाह करने की कोशिश की. इसपर पेड़ लगाने वाली संस्था ने हाथ खड़े करते हुए कह दिया कि अगर हिजबुल्लाह ऐसा कर रहा है तो इससे उसका कोई लेना-देना नहीं. हालांकि इजरायल का तर्क है कि संस्था आतंकी संगठन का ही एक हिस्सा है, जो जानकर ऐसे काम कर रही है ताकि देश एक-दूसरे पर नजर न रख सकें.

    इजरायल को डर है कि पेड़ों के कारण कैमरे अवरुद्ध हो जाएंगे- सांकेतिक फोटो (Photo-pixabay)


    इजरायल का कहना है कि उसने लेबनान को पेड़ लगाने की इजाजत दी थी लेकिन इस तरह से नहीं कि वो सर्वालांस कैमरा के आड़े आने लगें. कुल मिलाकर हिजबुल्लाह के चलते वृक्षारोपण जैसी मामूली बात पर भी लेबनान और इजरायल के बीच विवाद बढ़ सकता है.

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    हमेशा ही मुसीबत में घिरा रहता है लेबनान
    वैसे लेबनान के लिए संकट कोई नया नहीं. मध्यपूर्व का ये देश सबसे जटिल देशों में से आता है. साल 1943 में आजादी से पहले फ्रांस के अधीन रहा ये देश शिया, सुन्नी और ईसाई तबकों का मिश्रण है. बाद में सीरिया से होते हुए यहां भारी संख्या में फलस्तीनी आए. इनके आने के बाद यहां राजनैतिक अस्थिरता और बढ़ी. सत्तर की शुरुआत से ही यहां पर अलग-अलग मजहबों के लोग अपने राजनैतिक वर्चस्व के लिए लड़ने लगे. यहां तक कि ईरान और इजरायल जैसे देशों के लिए लेबनान लड़ाई का मैदान बनकर रह गया. गृह युद्ध, कई हमलों के बाद आखिरकार संयुक्त राष्ट्र ने लेबनान से सभी हथियारबंद समूहों को बाहर निकलने के लिए कहा लेकिन अब भी यहां हिजबुल्लाह के आतंकियों का वर्चस्व है.

    ईरान और इजरायल जैसे देशों के लिए लेबनान लड़ाई का मैदान बनकर रह गया है


    खस्ताहाल है देश
    आजादी के बाद से लगातार होती लड़ाइयों के कारण लेबनान की आर्थिक हालत भी खराब हो चुकी है. वहां की मुद्रा लेबनानी पाउंड (LBP) की कीमत इतनी गिर चुकी है कि लगभग 1500 पाउंड की कीमत एक यूएस डॉलर के बराबर है. मुद्रा की गिरती कीमत के कारण वहां महंगाई दर भी काफी ज्यादा हो चुकी है. हालात ये हैं कि यहां सामान्य सुविधाएं भी नहीं हैं.

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    कैसी है व्यवस्था
    न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक यहां दिन में 20 घंटे बिजली जाना आम बात है. सड़कों पर कूड़े के ढेर जमा हैं लेकिन कोई सफाईकर्मी नहीं. आधी से ज्यादा आबादी के पास काम नहीं. यहां तक कि देश के पास अपने सैनिकों को देने के लिए अब खाना तक नहीं रहा. कोरोना के कारण संकट और गहरा गया है. बड़ी संख्या में लोगों की नौकरियां चली गईं. यहां तक कि देश पर कर्ज कुल जीडीपी से भी डेढ़ सौ गुना ज्यादा हो चुका है.

    साल 2010 से बेरोजगारी से त्रस्त युवा यहां लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं. यहां तक कि कोरोना के दौर में भी लोग सड़कों पर उतर आए. उनकी मांग है कि सरकार तुरंत इस्तीफा दे और जानकारों का समूह देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाए. अब हाल में हुए बेरूत विस्फोट ने देश का बचा-खुचा हाल भी खराब कर दिया है. माना जा रहा है कि इस दुर्घटना का खामियाजा लंबे समय तक देश भुगतने वाला है.

    Tags: Bomb Blast, Iran, Israel, Lebanon, Syria war

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