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जानें उस शख्स को जिसने अंग्रेजों के लिए राजद्रोह केस का ड्राफ्ट तैयार किया

भारत के अधिकांश कानून (Indian Laws) 150 से भी ज्यादा साल पुराने हैं जिन्हें मैकालने ने बनाया था. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)

भारत के अधिकांश कानून (Indian Laws) 150 से भी ज्यादा साल पुराने हैं जिन्हें मैकालने ने बनाया था. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)

भारत (India) में चलने वाले अधिकांश कानून 19वीं सदी में मैकाले (Lord Macaulay) ने बनाए थे जिसमें राजद्रोह का कानून भी शा ...अधिक पढ़ें

    भारत को आजाद हुए 74 साल और गणतंत्र शुरू हुए 71 साल हो चुके हैं. आज भी देश भर में 161 साल पुरानी भारतीय दंड संहिता (IPC) लागू है. यह बात बहुत से लोगों को हैरान करती है कि इतना पुराने कानून अब भारत (India) जैसे लोकतांत्रिक देश में कैसे चल रहे हैं. हाल ही में मीडिया में खबरें चली हैं कि गृह मंत्रालय ने ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट को पुलिस सुधार की दिशा में आगे बढ़ने को कहा है. भारतीय दंड सहिता और भारत दंड प्रक्रिया संहिंता अंग्रेजों के जमाने में लॉर्ड मैकाले (Lord Macaulay) के प्रयासों से बनी थी, जिन्होंने 1857 के विद्रोह के बाद ना केवल राजद्रोह का केस ड्राफ्ट किया था, बल्कि दोनों संहिताओं को बनाने में अहम भूमिका भी अदा की थी.

    आईपीसी और सीआरपीसी में बदलाव को कोशिश
    भारतीय दंड सहिता और भारत दंड प्रक्रिया संहिंता में बदलाव की लंबे समय से करने के कोशिश हो रही है. कई बार भारतीय पुलिस की नाकामियों और जुल्मों के पीछे इन संहिताओं को दोष दिया जाता है जो 150 से भी ज्यादा सालों से बदली नहीं जा सकी हैं. इन्हें बनाने के लिए वह व्यक्ति जिम्मेदार है जिसने देश को ऐसा शिक्षा प्रणाली दी जिसे भारतीय संस्कृति को तहस नहस करने की वजह माना जाता है

    हाल में चर्चा में है आईपीसी
    भारतीय दंड संहिता का ताजा जिक्र हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने किया है. कोर्ट ने संहिता की धारा 124 (ए) का जिक्र करते हुए कहा है कि जिस कानून का उपयोग अंग्रेजों ने स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने के लिए किया था उसका स्वतंत्र भारत में क्या जरूरत है. वहीं गृह मंत्रालय के आदेश में कहा गया है कि आईपीसी सीआरपीसी में बदलाव के पीछे अन्य सुधारों के साथ इनमें निहित मालिक नौकर की भावना को हटाना भी है.

    मैकाले की भूमिका
    भारतीय दंड संहिता के जिक्र ने एक बार फिर से मैकाले की याद दिलाई है. मैकाले का पूरा नाम थॉमस बैबिंगटन मैकाले था. उन्हें ब्रिटिश इतिहास कार और विग पार्टी के राजनेता के रूप में जाना जाता था. उन्हें ही भारत में पश्चिमी शिक्षा तंत्र की शुरुआत करने के लिए जिम्मेदार माना जाता है. भारतीय शिक्षा व्यवस्था के अलावा भारत में फारसी की जगह अंग्रेजी को आधिकारिक भाषा में बदलने के श्रेय भी मैकाले को जाता है.

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    मैकाले (Lord Macauly) ने भारत की आईपीसी, सीआरपीसी, सीईए और सीपीसी के कानून बनाए थे जो बाद में लागू हुए. (तस्वीर: Wikimedia Commons)




    कौन थे मैकाले
    मैकाले इंग्लैंड में एक इतिहासकार के रूप में ज्यादा प्रसिद्ध हुए उनके निबंध नुमा लेख ज्यादा प्रसिद्ध हुए हैं. लेकिन कम लोग जानते हैं कि भारतीय दंड संहिता और भारतीय दंड प्रक्रिया संहिंता के पीछे भी मैकाले ही थे. वे 1834 में भारत आए थे और शुरु में सुप्रीम कोर्ट के लिए काम किया था. मैकाले ने ही भारत के गर्वनर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिंक को भारत में शिक्षा सुधार के लिए प्रेरित किया.

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    शिक्षा नहीं कानून भी मैकाले की देन
    मैकाले ने नई शिक्षा व्यवस्था को उपयोगी शिक्षा करार दिया और दलील दी कि संस्कृत या फारसी को आधिकारिक भाषा का दर्जा नहीं दिया जा सकता है. 1835 के बाद मैकाले ने अपना अधिकांश समय भारतीय दंड संहिता को बनाने में लगाया. वे लॉ कमीशन के प्रमुख सदस्य थे. उनकी ही बनाई आईपीसी भारत में 1960 में, सीआरपीसी 1872 में और 1905 में सीपीसी (सिविल प्रोसीजर कोड) लागू किए गए. रोचक बात यह है कि मैकाले इन कानूनों को लागू होते नहीं देख सके और 1859 में ही उनका निधन हो गया.

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    भारत में आज भी 150 साल से ज्यादा पुराने कानूनों पर न्याय किया जाता है. (File Photo)


    पुराने औपनिवेशिक कानून आज कई देशों में
    भारतीय दंड संहिता से प्रेरित होकर ही आज के जमाने में पाकिस्तान, सिंगापुर बांग्लादेश, श्रीलंका, नाइजीरिया और जिम्बाब्वे के कानून चल रहे हैं. ऐसा नहीं है कि भारत में कानूनों में बदलाव करने का प्रयास नहीं हुआ. जबकि खुद मैकाले ने यह स्पष्ट कहा था कि ये कानून उपनिवेश देशों के लिए ही हैं. वहीं भारत में पहले के विधि आयोगों ने आईपीसी में बदलावों के सुझाव दिए हैं. लेकिन नतीजे के रूप में कुछ खास सामने नहीं आया.

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    दरअसल तमाम कानूनों की गहराइयों से अध्ययन करने की जरूरत है जिससे इन कानूनों को आज के माहौल के मुताबिक आकार दिया जा सके. इसमें बारीकी से काम कर नागरिकों को ज्यादा अधिकार देकर कई प्रक्रियागत जटिलताओं से मुक्ति दिलाना भी शामिल है जो आज के लालफीताशाही सिस्टम के प्रतिकूल है.  ऐसे में इतना बड़ा बदलाव बड़ी इच्छा शक्ति की जरूरत है

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