भारतीय इतिहास (Indian History) में मुगलों को बहुत शक्तिशाली बताया गया है, लेकिन कई मौके ऐसे देखने को मिलते हैं जब किसी भारतीय राजा ने अकबर (Akbar) जैसे शक्तिशाली मुगल सम्राट की भी नाक में दम कर दिया था. हम बात कर रहे हैं मेवाड़ की शान माने जाने वाले महाराणा प्रताप की. महाराणा प्रताप ने शक्तिशाली अकबर से लोहा लिया और उसके साथ दूसरे राजपूत राजाओं के लिए भी मिसाल रखी कि अपनी आन बान और स्वतंत्रता के लिए कैसे लड़ा जा सकता है. सोमवार को पूरा देश उनकी जयंती मना रहा है.
युद्ध नीति माहिर थे राणा प्रताप
मेवाड़ के राजा प्रताप सिंह प्रथम या महाराणा प्रताप का जन्म अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार9 मई 1540 मेवाड़ के कुंभलगढ़ में सिसौदिया वंश में हुआ था. उनके पिता का नाम उदय सिंह द्वितीय और माता का नाम महारानी जयवंता बाई था. अपने भाई बहनों में सबसे महाराणा प्रताप युद्ध नीति माहिर थे. उनका पूरा जीवन संघर्ष और अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए संघर्ष में बीता था जिसमें वे अधिकांश समय विजयी ही रहे थे.
अकबर के मेवाड़ को अधीन करने के प्रयास
पिता उदय सिंह के मौत के बाद 1572 में महाराणा प्रताप मेवाड़ के सिसौदिया राजपूत वंश के 54वें शासक बने थे. लेकिन उनके सौतेले भाई जयमल ही उनके खिलाफ मुगलों से जा मिले. अकबर बिना युद्ध के ही मेवाड़ को अपने अधीन करने का प्रयास कर रहा था. इसके लिए अकबर ने चार बार महाराणा प्रताप के पास संदेश भेजे 1572 में जलाल खां, 1573 में मानसिंह, भगवानदास, और टोडरमल के जरिए समझौते की पेशकश की जिससे युद्ध की जरूरत ना पड़े.
महाराणा प्रताप का संकल्प
महाराणा प्रताप ने इस सभी प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया और मुगलों की अधीनता को स्वीकार करने से साफ तौर पर इनकार कर दिया. इसी वजह से युद्ध होना निश्चित हो गया था. और इसी कारण महाराणा प्रताप को मुगलों से कई बार अलग अलग जगहों पर युद्ध करना पड़ा और इसकी शुरुआत हल्दी घाटी के ऐतिहासिक युद्ध से हुई थी.
हल्दीघाटी का युद्ध
युद्ध निश्चित होने पर 18 जून 1576 में दोनों पक्षों की सेनाएं राजस्था के गोगुन्दा के पास हल्दी घाटी में टकराईं. महाराणा प्रताप की ओर से तीन हजार घड़सावर, 400 भील धुनर्धारी, मैदान में उतरे तो वहीं मगुलों की पांच से दस हजार सैनिकों की कमान मुगलों की ओर से आमेर के राजा मानसिंह ने संभाली. तीन घंटे के इस युद्ध में ही भारी रक्तपात हुआ और दोनों ही सेनाओं को भारी नुकसान हुआ.
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क्या हुआ युद्ध में
हल्दी घाटी के युद्ध कोइतिहास में बहुत महत्व दिया जाता है. इस युद्ध में वीरता की ऐसी कहानी है जिससे में मजबूत कहे जाने वाले मुगलों की ताकत पर सवाल उठा दिए और राजस्थान के इतिहास में शौर्य की बड़ी गाथा लिख दी. इस युद्ध में मेवाड़ 1600 सैनिक शहीद हुए तो मुगल सेना ने भी अपने 3500 से 7800 सैनिक गंवा दिए. मुगल महाराणा और उनके परिवार के किसी भी सदस्य को पकड़ नहीं सके.
मुगलों के हाथ नहीं आ सके महाराणा
हल्दी घाटी का नतीजा मुगलों के लिए भी बेकार ही रहा. इसके बाद एक हफ्ते के अंदर मानसिंह ने गोगुंदा पर कब्जा कर लिया, तो वहीं घायल महाराणा प्रताप को कुछ सालों के लिए जंगलों में भटकना पड़ा. इसके बाद अकबर ने खुद कमान अपने हाथ में लेकर सितंबर 1576 में गोगुंडा, उदयपुर, और कुंभलगढ़ को मुगलों के अधीन तो कर लिया, लेकिन वह महाराणा प्रताप को छू भी नहीं सका.
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लेकिन मुगलों के लिए यह आसान नहीं रहा बल्कि मुसीबतों से भर गया. उन्हें महाराणा ने चैन से नहीं रहने दिया और अपनी छापामार युद्धनीति से मुगलों को परेशान करते रहे. 1579 में मुगलों को अपने ताकत बंगाल और बिहार में होने वाले विद्रोह के कारण पूर्व में लगानी पड़ी, जिसका महाराणा प्रताप ने भरपूर फायदा उठाया और एक के बाद एक अपने क्षेत्र हासिल करने शुरू कर दिए. 1582 में दिवेर में हुए युद्ध के बाद प्रताप का पलड़ा पूरी तरह से भारी हो गया और मुगलों की मेवाड़ पर पकड़ ढीली हो गई. 1584 में अकबर ने मेवाड़ पर फिर से कब्जा करने के लिए फिर सेना भेजी लेकिन इस बार उसे हार का सामाना करना पड़ा. 1585 में अकबर लाहौर चला गया जिसके बाद मेवाड़ को महाराणा के रहते मुगलों का सामना नहीं करना पड़ा.
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Tags: History, India, Maharana Pratap, राजस्थान
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