ग्रेट ट्रायल के बाद कोर्ट ने महात्मा गांयाी को 6 साल कैद की सजा सुनाई थी.
महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) को पसंद करने वालों में सिर्फ भारतीय ही नहीं थे, बल्कि अंग्रेजों के कई बड़े अफसर भी उनको बहुत सम्मान देते थे. हालांकि, ये अनोखा मामला है, जिसमें महात्मा गांधी पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया और उन्होंने कोर्ट में सभी आरोपों को स्वीकार कर लिया. इसके बाद भी अंग्रेज जज ने पहले उनके सम्मान में सिर झुकाया. इसके बाद सजा सुनाई और फिर सिर झुकाया. बात यहीं खत्म नहीं होती, इसके बाद महात्मा गांधी ने जज को कम सजा के लिए धन्यवाद दिया और जेल चले गए. आइए जानते हैं कि बाद में ग्रेट ट्रायल के नाम से मशहूर हुए मुकदमे में आखिर हुआ क्या था?
महात्मा गांधी के नेतृत्व में पूरा भारत एकजुट होकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आजादी के लिए लड़ रहा था. इसी दौरान मार्च, 1922 में महात्मा गांधी पर यंग इंडिया में एक लेख लिखने के लिए देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया. महात्मा गांधी ने 11 मार्च 1922 को शुरुआती सुनवाई के दौरान कोर्ट में माना लिया कि यंग इडिया में प्रकाशित लेख उन्होंने ही लिखा है. महात्मा गांधी ने कोर्ट को अपना व्यवसाय किसान और बुनकर बताया. साथ ही स्वीकार कर लिया कि वह अपराधी हैं. उन्हें मुकदमा चलने तक साबरमती जेल में रखा गया. इसके बाद 18 मार्च को ये मामला अहमदाबाद के सर्किट हाउस में जस्टिस सीएन ब्रूमफील्ड की अदालत में पहुंचा.
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किन लेखों के लिए चला था मुकदमा
आरोप पढ़े जाने के बाद जस्टिस ब्रूमफील्ड ने कहा कि महात्मा गांधी पर लगाए गए आरोप ब्रिटिश इंडिया में सरकार के प्रति असंतोष भड़काने के प्रयास के हैं. इसलिए भारतीय दंड संहिता की धारा-124ए के तहत दंडनीय अपराध है. उन्होंने आगे कहा, ‘महात्मा गांधी पर 29 सितंबर 1921, 15 दिसंबर 1921 और 23 फरवरी 1922 को यंग इंडिया में तीन लेख लिखकर सरकार के खिलाफ असंतोष फैलाने के आरोप हैं.’ वरिष्ठ गांधीवादी लेखक प्रमोद कपूर ने ‘गांधी : एन इलस्ट्रेटेड बायोग्राफी’ में लिखा है कि फिर कोर्ट में बापू के लिखे गए ‘वफादारी से छेड़छाड़’, ‘पहेली और इसके समाधान’ और ‘प्रेतों को हिलाना’ लेखों को पूरा का पूरा पढ़ा गया.
महात्मा गांधी ने स्वीकारा अपना दोष
लेख पढ़े जाने के बाद बाद जस्टिस ब्रूमफील्ड ने महात्मा गांधी से पूछा कि वह आरोप स्वीकार कर रहे हैं या अपना बचाव करेंगे. महात्मा गांधी ने तुरंत कहा, ‘मैं इस मामले में खुद को दोषी स्वीकार करता हूं.’ इसके बाद जज तुरंत फैसला सुनाने के इच्छुक थे. वहीं, सरकारी वकील सर जेटी स्ट्रेंजमैन चाहते थे कि मुकदमे की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाना चाहिए. उन्होंने कोर्ट से कहा कि मुकदमे का फैसला देते समय बंबई, चौरी-चौरा और मालाबार के दंगे तथा हत्याओं का भी ध्यान रखा जाए. उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी के लेखों में अहिंसा पर जोर तो दिया गया है, लेकिन इनमें सरकार के प्रति गंभीर असंतोष जताया गया है. साथ ही ये भी साबित करने की कोशिश की गई है कि ब्रिटिश सरकार विश्वासघाती है. कोर्ट को फैसला सुनाते समय ध्यान रखना चाहिए कि उन्होंने अपने लेखों के जरिये आम जनता को ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए उकसाया है.
अपराध के लिए मांगी सबसे बड़ी सजा
महात्मा गांधी ने इसके बाद जस्टिस ब्रूमफील्ड की कोर्ट में कहा, ‘मैं सरकारी अधिवक्ता की सभी दलीलों को सही मानता हूं. सरकार की मौजूदा व्यवस्था के खिलाफ असंतोष का प्रचार करना मेरा जुनून बन गया है. मैं चौरी-चौरा, बंबई, मालाबार की घटनाओं से मेरे संबंध को स्वीकार करता हूं. इन सभी दंगों से खुद को अलग करना मेरे लिए नामुमकिन है. अगर मुझे दोषमुक्त कर छोड़ा गया गया तो मैं फिर यही काम करूंगा. उन्होंने आगे कहा कि मैं हमेशा हिंसा से बचना चाहता रहा हूं. अहिंसा पर ही मेरे सबसे ज्यादा भरोसा है. मुझे लिखते समय या तो मेरे देश को नुकसान पहुंचा रही व्यवस्था के सामने समर्पण करना था या लोगों के गुस्से का जोखिम उठाना था. मैंने सबकुछ जानते हुए ही ये लेख लिखे. इसलिए मैं इस अपराध में सबसे बड़ी सजा के लिए पूरी तरह से तैयार हूं. न्यायाधीश के तौर पर या तो आप पद से इस्तीफा दें या मुझे गंभीर सजा दें.
बापू क्यों हुए थे सरकार से असंतुष्ट
बापू ने जस्टिस ब्रूमफील्ड की कोर्ट में खुले तौर पर कहा कि मुझे रोलेट एक्ट के कारण पहला झटका लगा था. इसे सभी भारतीयों की हर तरह की आजादी छीनने के लिए बनाया गया था. इसके बाद जलियांवाला बाग में जनसमूह की क्रूरता से हत्या की गई. मैंने 1919 में अमृतसर कांग्रेस की सख्त चेतावनी के बाद भी ब्रिटिश सरकार का सहयोग किया. मुझे उम्मीद थी कि ब्रिटिश सरकार पंजाब के जख्मों को भरने के प्रयास करेगा. हालांकि, ब्रिटिश हुकूमत ने ऐसा कुछ नहीं किया और मेरी सभी उम्मीदें टूट गईं. यही नहीं, भारत में विदेशी शोषक की सेवा करने के लिए कानून का इस्तेमाल किया गया है.
जज ने दो बार झुकाया सिर
जस्टिस ब्रूमफील्ड ने महात्मा गांधी के बयान के बाद उनके सामने सिर झुकाया. फिर सजा सुनाते हुए कहा कि एक न्यायसंगत सजा तय कर पाना बहुत मुश्किल है. मैंने अब तक जितने भी मामलों में सुनवाई की है या भविष्य में करूंगा, आप उन सबसे अलग हैं. आपसे राजनीतिक मतभेद रखने वाले लोग भी आपको उच्च आदर्शों पर चलने वाले और संत के तौर पर मानते हैं. प्रमोद कपूर ने महात्मा गांधी की जीवनी में लिखा है कि इसके बाद जस्टिस ब्रूमफील्ड ने महात्मा गांधी को 6 साल कैद की सजा सुनाई. इसके बाद कहा कि अगर सरकार सजा को कम कर दे तो मुझसे ज्यादा खुशी किसी को नहीं होगी. इसके बाद उन्होंने दूसरी बार बापू के सामने सिर झुकाया. फिर बापू ने कहा कि कोई भी जज इस अपराध में मुझे इससे कम सजा नहीं दे सकता था. सजा के बाद पहले महात्मा गांधी को साबरमती जेल और दो दिन बाद पुणे की यरवादा जेल भेज दिया गया.
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