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Mahatma Gandhi Death Anniversary: अहिंसा के बारे में क्या सोच थी महात्मा गांधी की

महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) का मानना था कि अहिंसा विरोधियों को जीतने का सबसे अचूक जरिया है. (तस्वीर: Wikimedia Commons)

महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) का मानना था कि अहिंसा विरोधियों को जीतने का सबसे अचूक जरिया है. (तस्वीर: Wikimedia Commons)

महात्मा गांधी की पुण्यतिथि (Mahatma Gandhi Death Anniversary) पर उनके आदर्शों की जिक्र होता है जिसमें से अहिंसा (Nonvio ...अधिक पढ़ें

हाइलाइट्स

गांधी मानते थे कि अहिंसा मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति होती है.
उनका विश्वास था कि अहिंसा के मूल में ही प्रेम और करुणा हैं.
उनके मुताबिक अहिंसा के जरिए दुनिया मे बड़े से बड़ा बदलाव लाया जा सकता है.

देश को आजाद (Independence of India) हुए छह महीने भी नहीं हुए थे. देश उस समय कई समस्याओं से जूझ रहा था. देश बंटवारे के बाद हुए हिंदु मुसलमान दंगों से उबरने की कोशिश कर रहा था. लेकिन 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi Death) की हत्या हो गई और देश को एक और सदमा झेलना पड़ा. इस घटना को हुए आज 75 साल हो गए हैं. लेकिन आज के हालात में भी हमें गांधी जी के अहिंसा (Non Violence of Gandhi) के विचारों की बहुत जरूरत है. हम सब यह सोचने को मजबूर हैं कि गांधी जी की अहिंसा आज कैसे काम आ सकती है.

आज क्या करते गांधी जी
यह एक बहस का विषय होगा कि आज गांधी राष्ट्रवाद और धार्मिकता के बीच संतुलन कैसे स्थापित करते वे कैसे लोगों को एकजुटता और अहिंसा का रास्ता दिखाते. रूस यूक्रेन युद्ध पर वे दुनिया को क्या संदेश देते और भारत की किस तरह रवैया अख्तियार करने की सलाह देते. चीन की भारत की आक्रामकता पर वे क्या करने को कहते या फिर दुनिया में हथियारों के खिलाफ ही अनशन शुरू कर देते!

जीवन और धर्म के मूल्य से
गांधी जी का सबसे प्रमुख जीवन मूल्य अहिंसा था और वे आज भी अहिंसा के महत्व का प्रचार कर रहे होते और अहिंसा की प्रासंगिकता को लोगों को समझा रहे होते. उन्होंने अपने जीवन में अग्रेजों को अत्याचार देखे और उनके शक्तिशाली होने के बाद भी उनसे निपटने के लिए अपने निजी जीवन और धार्मिक मूल्यों को लागू किया और सत्य और अहिंसा का रास्ता निकाला.

क्या है अहिंसा
अहिंसा का शाब्दिक अर्थ हिंसा ना करना होता है. यानि किसी की हत्या ना करना या किसी को कष्ट ना पहुंचाना होता है. व्यापक अर्थ में अहिंसा को किसी भी प्राणी को तन, मन, कर्म, वनऔर वाणी से नुकसान ना पहुंचाना और कर्म से किसी भी प्राणी की हिंसा का नहीं करना ही अहिंसा है. केवल मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो अहिंसक हो सकता है.

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महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के अनुसार अहिंसा मनुष्य का प्राकृतिक गुण है. (तस्वीर: Wikimedia Commons)

मानव, शक्ति और अहिंसा
गांधी जी के अनुसार मनुष्य प्राकृतिक रूप से अहिंसा प्रिय होता है और विपरीत परिस्थितियों में ही वह हिंसक रूप धारण करता है.  वे कहा करते थे कि अहिंसा ही समस्त शक्तियों में सबसे शक्तिशाली है. वे कहा करते थे कि कमजोर नहीं बल्कि सही अर्थों में शक्तिशाली ही क्षमा कर सकता है और जो हिंसा करता है वास्तव में वह कमजोर ही है.

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शांति के लिए अहिंसा
गांधी जी समाज पर अत्याचार करने वालों और विरोधी ताकतों को बलपूर्वक समाप्त करने को अनुचित मानते थे. उनका दृढ़ विश्वास था कि बुरे से बुरे व्यक्ति को अहिंसा के माध्यम से सुधारा जा सकता है. वे अन्याय और अत्याचार का विरोध हिंसा की शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करने पर जोर देते थे.

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महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) कायरता और अहिंसा में स्पष्ट रूप से पूरी तरह से अलग-अलग मानते थे. (तस्वीर: Wikimedia Commons)

व्यवहारिक और आदर्श अहिंसा
गांधी जी बचपन से ही जैन धर्म की अहिंसा से प्रभावित थे, लेकिन उन्होंने कभी जैन अतिवाद को स्वीकार नहीं किया है. वे खुद को व्यवहारिक आदर्शवादी कहा करते थे और अंहिसा और साहस को एक दूसरे के पूरक रूप में मानते थे. और प्रेम और करुणा को अहिंसा की कसौटी के रूप में देखते थे. लेकिन अहिंसा की बातें करते हुए वे हमेशा कहते थे कि जहां केवल कायरता और हिंसा को चुनना हो तो वे हिंसा को चुनना पसंद करेंगे.

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गांधी जी के विचारों में अहिंसा का लक्ष्य सत्य है इसलिए सत्य के लिए प्रयास जिसे वे सत्याग्रह कहते थे, अपने श्रेष्ठ आदर्शों में से एक मानते थे. उनका कहना था कि अहिंसा सत्य के लिए होती है और प्रेम से भरपूर होती है. बिना प्रेम के अहिंसा हो ही नहीं सकती. प्रेम अहिंसा की प्रेरक शक्ति के रूप में काम करती है. उनका मानना था कि अहिंसा के जरिए दुनिया मे बड़े से बड़ा बदलाव लाया जा सकता है.

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