इस दशक में चंद्रमा पर लंबे मानव अभियान (Long Human missions on Moon) जाते हुए देखे जाएंगे. नासा (NASA) के अलावा यह काम यूरोपीय स्पेस एजेंसी, चीन और रूसी स्पेस रॉस्कोसमोस भी चंद्रमा पर मानव अभियान भेजने की योजना पर काम कर रहे हैं. अपोलो युग में जहां चंद्रयात्री केवल कुछ समयके लिए वहां जाकर चंद्रमा की चट्टानों के नूमने लेकर वापस आ गए थे. इस बार वहां इंसान ज्यादा लंबे समय तक ठहरेंगे. इसके लिए चंद्रमा की सतह और कक्षा के लिए एक आवास तैयार करना होगा. नए अध्ययन में अमेरिकी वैज्ञानिकों ने चंद्रमा पर बनने वाले लैंडिंग पैड (Launching Pad on Moon) की लागत और ऊर्जा के नजरिए से विश्लेषण किया है.
कारगर और किफायती पद्धति की तलाश
चंद्रमा (Moon) पर सबसे जरूरी एक आवश्यकता एक लैंडिंग पैड (Launching Pad on Moon) की होगी. नासा ने जहां इनसीटू रिसोर्स यूटीलाइजेशन (ISRU) के जरिए चंद्रमा के ही संसाधनों के उपयोग पर ज्यादा जोर दिया है, फिर भी चंद्रमा पर बहुत सारे उपकरण और सामान पृथ्वी से ही ले जाना होगा. अमेरिका के अंतरिक्ष वैज्ञानिक फिलिप मेट्जगर और ग्रेग ऑट्राय ने अपने अध्यन में पाया है कि एडेटिव निर्माण और पॉलीमर इन्फ्यूजन चंद्रमा पर लैंडिंग पैड बनाने के लिए सबसे कारगर और किफायती साधन होंगे
तीन बड़े कारक
कई पद्धतियों के विश्लेषण के बाद मेट्जगर और ऑट्राय ने पाया कि हर पद्धति में तीन बड़े कारक हैं. एक पृथ्वी से भारी मात्रा में समान चंद्रमा पहुंचाने की जरूरत, चंद्रमा की सतह पर भारी मात्रा में ऊर्जा की जरूरत, और अंतिम निर्माण को पूरा करने में लगने वाला समय. इसमें परिवहन और निर्माण प्रक्रिया में देरी भी इसकी लागत को प्रभावित करेंगे. शोधकर्ताओं ने अपने विश्लेषण में पाया है कि निर्माण प्रक्रिया की जटिल बहुत बड़ा कारक नहीं होने वाली है, बल्कि ये लाभकारी भी हो सकता है. उन्होंने पाया कि लैंडिंग पैड की मोटाई, उसके अंदर का ऊष्मीय वातवारण, भी निर्माण समय के निर्धारण में कारक होंगे.
चंद्रमा पर कंक्रीट या कुछ और
इन सबके लिए शोधकर्ताओं ने ऐडेटिव मैन्युफैक्चरिंग (3डी प्रिंटिंग) जैसी नावचार पद्धतियों पर विचार किया. इसके साथ उन्होंने नासा के ISRU को भी अपने विश्लेषण में शामिल किया. चंद्रमा की सतह में यह इस पद्धति में चंद्रमा की धूल को माइक्रोवेव के साथ एक पिघला हुआ सिरेमिक (सिंटरिंग) बनाया जाएगा और उसे प्रिंट कर चंद्रमा के वातावरण में ठोस रूप दिया जाएगा या फिर एक जोड़ने वाले एजेंच को मिट्टी में मिलाकर चंद्रमा की कंक्रीट बनाई जाएगी.
माइक्रोव सिंटरिंग की कारगरता
जहां कई पद्धतियों में बहुत ज्यादा ऊर्जा की जरूरत होगी. इसके लिए चंद्रमा पर भारी ऊर्जा के तंत्र की जरूरत होगी. तो वहीं कुछ पद्धति में टनों की मात्रा में बाइंडर पृथ्वी से ही लाना होगा. जबकि दूसरी प्रक्रियाएं बहुत ही धीमी हैं. शोधकर्ताओं ने अपने विश्लेषण में सभी की वास्तविक लागत का आंकलन किया और पाया कि माइक्रोव सिंटरिंग (Microwave Sintering) तकनीक कम भार और तेज गति के लिहाज से अन्य पद्धतियों की तुलना में सबसे अच्छी है.
कितना खर्चा
शोधकर्ताओं ने बताया कि लागत के हिसाब से पॉलीमर इन्फ्यूजन सबसे ज्यादा कारगर हो सकती है. वहीं शोधकर्ताओं के अनुमान के अनुसार आर्टिमिस बेस कैम्प के लिए करीब 22.9 करोड़ डॉलर का खर्चा आ सकता है. वहीं लैंडिंग पैड बनाने में करीब 30 करोड़ डॉलर का लागत आ सकती है जिसें निर्माण रोबोट के निर्माण का खर्चा भी शामिल है जो वहां निर्माण कार्य पूरा करेंगे.
शोधकर्ताओं का कहना है कि चंद्रमा पर लैंडिंग पैड बनाया जा सकता है. इसकी लागत को चंद्रमा पर आने जाने के खर्चों में गिरावट पर बहुत निर्भर करेगी. नासा के अलावा यूरोपीय स्पेस एजेंसी चंद्रमा पर इंटरनेशनल मून विलेज के नाम से स्थायी बेस बनाने की योजना पर काम कर रही है. रूस और चीन भी चंद्रमा पर इंटरनेशनल रूनार रिसर्च स्टेशन के सहयोग करने पर सहमत हुए हैं.
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी |
Tags: Moon, Nasa, Research, Science, Space