भारतीय नृत्य कला का शायद ही कोई जानकार होगा जो मृणालिनी साराभाई (Mrinalini Sarabhai) को नहीं जानता होगा. भरतनाट्यम और कथकली नृत्य में पारंगत मृणालिनी साराभाई भारत की ऐसी शास्त्रीय नृत्यांगना थीं जिनकी नृत्य कला के तारीफ दिल्ली से यूरोप तक होती थी. पद्मभूषण से सम्मानित मृणालिनी साराभाई का जन्म 11 मई 1918 को हुआ था. वे एक कोरियोग्राफर और एक कुशल प्रशिक्षिका भी थीं, जिन्होंने भारतीय शास्त्रीय नृत्य कला को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर नई पहचान दिलाई थी.
विलक्षण माता पिता की विलक्षण संतान
मृणालिनी एक तमिल ब्राह्मण पिता और मलयाली नायर माता की संतान थीं. उनके पिता सुब्बारामा स्वामीनाथन एक वकील थे जिन्हें हार्वर्ड और लंदन यूनिवर्सिटी से डिग्री हासिल कर मद्रास हाईकोर्ट में आपराधिक कानून की प्रैक्टिस की थ. उनकी मां एवी अम्माकुट्टी एक सामाजिक और स्वतंत्र कार्यकर्ता थीं जो बाद में सांसद भी बनी थीं.
वृहद और गहन शिक्षा
मृणालिनी की बचपन से ही ऊंचे दर्जे की शिक्षा हुई. उन्होंने स्विट्जरलैंड में दो सालबोर्डिंग स्कूल में गुजारे जहां उन्हें नृत्य भावभंगिमाओं की पाश्चात्य तकनीक के सबक डालक्रोजे स्कूल में सीखे. उन्होने गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के शांतिनिकेतन में शिक्षा ली. कुछ समय के लिए उन्होने अमेरिका अमेरिकन एकेडमी ऑफ ड्रैमेटिक आर्ट्स में भी प्रशिक्षण लिया.
हर नृत्य कला में रुचि
इसके बाद भारत आकर मीनाक्षीसुंदरम पिल्लई से भरतनाट्यम और थाकाज़ी कुंचू कुरुप से कथकली नृत्य कला का प्रशिक्षण लिया. लेकिन वे इन दोनों नृत्य कलाओं तक ही सीमित नहीं रहीं. उन्होंने अमूबी सिंह से मणिपुरी नृत्य भी सीखा और नृत्य की अलग अलग शैलियों की बारीकियां भी सीखती रहीं. इसके बाद उन्होंने अपनी कला का उपयोग प्रशिक्षण देने में भी किया.
प्रतिभाशाली और विजेताओं का परिवार
मृणालिनी केवल प्रतिभाशाली माता पिता की ही संतान नहीं थी. मृणालिनी की बड़ी बहन लक्ष्मी सहगल प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी रहीं. उनके पति विक्रम साराभाई देश के मशहूर भौतिक विज्ञानी थे जिन्हें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान इसरो की स्थापना का श्रेय दिया जाता है. उनकी बेटी मल्लिका साराभाई भी प्रसिद्ध नृत्यांगना और समाजसेवी हैं. उनका बेटे कार्तिकेय साराभाई एक पर्यावरण शिक्षाविद हैं.
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18 हजार से अधिक छात्रों को प्रशिक्षण
मृणालिनी ने अपनी नृत्य कला से दुनियाभर में लोगों को प्रभावित किया था. उन्होंने 1948 में अहमदाबाद में दर्पण एकेडमी ऑफ परफॉर्मिग आर्ट्स नाम की संस्था की स्थापना की थी. इसमें नृत्य, नाटक, संगीत और कठपुतली जैसी कलाओं का अध्ययन और प्रशिक्षण दिया जाता है. खुद मृणालिनी ने 18 हजार से अधिक छात्रों को भरतनाट्यम और कथकली नृत्य कला का प्रशिक्षण दिया.
खुद की कला की भी प्रशंसा भी की हासिल
मृणालिनी खुद एक आला दर्जे की नृत्यांगना कलाकार थीं. साल 1949 में उन्होंने परिस में थेएटर नेशनल डि चौइलोट में अपनी प्रस्तुति दी थी जिसे भूरि भूरि प्रशंसा मिली थी. इसके बाद उन्होंने इंग्लैंड में भी अपनी शानदार प्रस्तुति से तारीफें बटोरी. इतना नहीं नहीं भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भी उनकी नृत्यकला के बहुत बड़े प्रशंसक थे.
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मृणालिनी साराभाई को अपने जीवनकाल में ही बहुत सम्मान मिला जिसकी वे पूरी तरह से हकदार थीं उन्हें 1965 में पद्मश्री और 1992 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया. 1994 में संगीत नाटक अकादमी फैलोशिप भी दी गई. वे एक लेखिका और पर्यावरणविद भी रहीं. उन्होंने अपने आत्मकथा ‘मृणालिनी साराभाई: द वॉइस ऑफ द हार्ट ‘ नाम से लिखी. 21 जनवरी 2016 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया था.
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