लंबे समय तक म्यांमार को चीन का बैक डोर कहा जाता था- सांकेतिक फोटो (pixabay)
म्यांमार में रातोंरात घटनाक्रम तेजी से बदला और नई सरकार को पलटते हुए सेना ने सत्ता पर कब्जा कर लिया. यहां तक कि सर्वोच्च नेता आंग सान सू समेत सभी नेता हिरासत में हैं. इस मामले में जहां दुनियाभर की आलोचना आ रही है, वहीं चीन ने इसपर चुप्पी साध रखी है. अटकलें तो यहां तक हैं कि चीन ने ही म्यांमार पर अपने कब्जे के लिए सेना का सहारा लिया है.
यहां से शुरू हुआ तनाव
लंबे समय तक म्यांमार को चीन का बैक डोर कहा जाता था. यहां के बंदरगाहों के रास्ते चीन दुनियाभर में अपना व्यापार फैला चुका था. हाल के दिनों में चीन की बढ़ती दखलंदाजी से परेशान म्यामांर ने चीन की बजाए भारत से संबंध बेहतर किए तो चीन परेशान हो गया. वो लगातार इसके बाद से ही म्यांमार में राजनैतिक अस्थिरता पैदा करने की कोशिश में रहा. ताजा सत्ता पलट के पीछे भी चीन का कहीं न कहीं हाथ माना जा रहा है, खासकर इस घटना पर उसकी ठंडी प्रतिक्रिया के बाद.
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चीन की है लोकल आतंकियों तक पैठ
बता दें कि चीन के म्यांमार में कई कट्टरवादी समूहों से अच्छे संबंध हैं. यहां तक कि कई बार वहां सीमा पर आतंकियों को चीनी हथियारों के जखीरों के साथ पकड़ा जा चुका है. एमस्टर्डम आधारित थिंक टैंक यूरोपियन फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज (ईएफएसएएस) ने दावा किया था कि चीन एथनिक समूहों और सेना के जरिए म्यांमार में लोकतंत्र को खत्म कर वापस अपनी कमजोर हो रही पैठ मजबूत करने की फिराक में रहा.
परियोजनाओं के लिए ग्रीन सिग्नल नहीं
चीन के म्यांमार में आतंक मचाने के पीछे ये वजह है कि वो देश में अपने कई प्रोजेक्ट्स की मंजूरी चाहता है. फिलहाल ऐसा मुमकिन नहीं दिख रहा इसलिए वो अराकान आर्मी की मदद से सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है. दूसरी ओर भारत से दुश्मनी भी चीन के इस काम के पीछे काम कर रही है. भारत-म्यांमार संबंध राजनैतिक और व्यापारिक दृष्टि से मजबूत रहे हैं. दोनों एक साथ 1640 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं.
चीन अराकान आर्मी पर खेल रहा दांव
साल 2017 में भारत को म्यांमार में सड़क बनाने का 220 मिलियन डॉलर का प्रोजेक्ट मिला. इस महत्वाकांक्षी योजना के तहत भारत-म्यांमार के साथ थाइलैंड भी इंटरनेशनल राजमार्ग पर काम कर रहा है ताकि तीनों देशों में कारोबार और पर्यटन जैसी चीजें आसान हो सकें. वहीं म्यांमार ने चीन की वन बेल्ट- वन रोड परियोजना का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया. इन सारी वजहों से भड़के चीन ने अराकान आर्मी पर पैसे लगाने शुरू किए.
एक वजह भारत से तनाव भी है
म्यांमार भारत से सटा देश है तो इसके जरिए चीन भारत में भी पूर्वोत्तर राज्यों में अशांति पैदा करने की कोशिश में रहा. चीन म्यांमार के आतंकी समूह अराकान आर्मी की आर्थिक मदद कर रहा है. चीन का एजेंडा है कि टेरर ग्रुप के जरिए वो म्यांमार के साथ भारत के हालात भी खराब कर सकेगा.
कैसे काम कर रही है अराकान आर्मी
ये आतंकी संगठन म्यांमार के चीन से सटे हुए हिस्से राखिन स्टेट में काम कर रहा है. अप्रैल 2009 में बना ये ग्रुप देश का सबसे बड़ा सशस्त्र आतंकी समूह माना जाता है. इसे खुद देश की एंटी-टेररिज्म कमेटी ने देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताया है. ये संगठन रोहिंग्या मुस्लिम अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए सशस्त्र संघर्ष कर रहा है और इसके अधिकतर सदस्य बांग्लादेश से आए अवैध शरणार्थी हैं. संगठन पुलिस, सेना के अलावा आम लोगों पर भी लगातार हमले करने के लिए कुख्यात रहा है.
इस तरह दे रहा चीन मदद
इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप के मुताबिक अराकान आर्मी एक चरमपंथी संगठन है, जिसके नेता विदेशों और खासकर चीन में हथियार चलाने, लोगों को अपने साथ मिलाने और प्लानिंग की ट्रेनिंग लेते हैं. खुद म्यांमार के सैन्य प्रवक्ता ब्रिगेडियर जनरल जॉ मिन टुन के अनुसार साल 2019 से ये आतंकी चीन में बने हथियारों से लगातार म्यांमार आर्मी पर हमले कर रहे हैं. उसी साल एक छापे के दौरान आतंकियों के पास से लगभग 90 हजार डॉलर की कीमत के हथियार मिले, जो मेड इन चाइना थे. चीन से लगातार हथियारों, पैसों की सप्लाई के अलावा हथियार चलाने की ट्रेनिंग भी इन्हें दी जाती है.
म्यांमार को नहीं देख सकता मजबूत देश के तौर पर
चीन म्यांमार को राजनैतिक और कूटनीतिक तौर पर भी कमजोर रखना चाहता है. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक एक स्त्रोत ने कहा कि केवल अराकान आर्मी ही नहीं, चीन म्यांमार में आतंक फैलाने के लिए कई समूहों को आर्थिक और हथियारों की मदद दे रहा है. उसका एजेंडा है कि इससे देश अपनी ही लड़ाई में फंसा रहे और दूसरे देशों और खासकर भारत और विकसित पश्चिमी देशों से उसके संबंध मजबूत न हों सकें.
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नई नेता का भारत की ओर झुकाव रहा
इन सारे कारणों के अलावा चीन के म्यांमार की सेना के साथ तो अच्छे संबंध रहे ही लेकिन नई लीडर सू ची के साथ उतनी अच्छी तरह से तालमेल नहीं बैठ पा रहा था. इसकी एक वजह सू ची का भारत के लिए झुकाव भी था. बता दें कि नोबेल पुरस्कार से सम्मानित सू ची ने नई दिल्ली के लेडी श्री राम कॉलेज से 1964 में स्नातक की पढ़ाई पूरी की थी. ऐसे में भारत से उनका स्वाभाविक लगाव है, जो उनकी बातचीत में भी झलकता था.
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Tags: Aung San Suu Kyi, India China Border Tension, India myanmar, Myanmar coup
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