नासा (NASA) के आर्टिमिस अभियान (Artemis Mission) का पहला चरण बार बार टल रहा है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह अटक गया है. इस पर कई आयामों से काम आगे बढ़ रहा है. तीन अलग अलग चरणों में से पहले चरण में नासा SLS रॉकेट और ओरियोन यान को पहली बार अंतरिक्ष में भेजा जाएगा. इसी के सहयोग के लिए नासा इसी महीने सिस्लूनार ऑटोनोमस पोजिशनिंग सिस्टम टेक्नोलॉजी ऑपनेशन्स एंड नैवीगेशन एक्सपेरिमेंट (Cislunar Autonomous Positioning System Technology Operations and Navigation Experiment, CAPSTONE) ओरियोन के कक्षापथ (Orbit path) का परीक्षण करेगा. इसके साथ ही आर्टिमिस अभियान के हिस्से के रूप में चंद्रमा का चक्कर लगाने वाले गेटवे अभियान के लिए भी रास्ता निश्चित करेगा.
कितना बड़ा है ये
कैप्स्टोन एक छोटा माइक्रोवेव आकार का क्यूबसेट है जिसका 25 किलो है. यह पहला ऐसा अंतरिक्ष यान है जो चंद्रमा की दीर्घवृत्तीय आकार की कक्षा का परीक्षण करेगा. कैप्स्टोन भवीष्य में चंद्रमा की कक्षा या चंद्रमा पर जाने वाले यानों के लिए अंतरिक्ष दिशाज्ञान तकनीकों की पुष्टि कर उनके खतरों को कम करेगा.
खास है चंद्रमा की कक्षा
कैप्स्टोन हालो के आकार वाली चंद्रमा की कक्षा की गतिकी की पुष्टि करने में भी कैप्स्टोन काम आएगा. यह कक्षा जिसे रेक्टीलीनियर हालो ऑर्बिट (NRHO) कहते हैं. काफी लंबी खिंची हुई है. इसकी स्थिति पृथ्वी और चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव का सटीक संतुलन बिंदु है. इससे गेटवे जैसे लंबे अभियानों के लिए स्थायित्व मिल सकेगा और उसके लिए कम से कम ऊर्जा भी लगेगी.
कैसा है इस कक्षा की आकार
कैप्स्टोन की कक्षा एक और स्थिति का भी निर्धारण करेगी जो चंद्रमा और उसके आगे के अभियानों के ले आदर्श मंच क्षेत्र का काम करेगी. यह कक्षा केवल एक ही सप्ताह में कैप्स्टोन को चंद्रमा के एक ध्रुव को 1600 किलोमीटर निकट तक ले जाएगी और दूसरे ध्रुव को 70 हजार किलोमीटर दूर तक ले जाएगी.
प्रणोदन और शक्ति जरूरतों की पड़ताल
इस कक्षा से चंद्रमा पर जाने वाले या वहां से उड़ने वाले अंतरिक्ष यानों की प्रणोदन क्षमता कम लगेगी. तीन महीने की यात्रा के बाद कैप्स्टोन चंद्रमा की कक्षा में पहुंचेगा और छह महीने तक चंद्रमा का चक्कर लगाता रहेगा और इस कक्षा की बारीकीयों की जानकारी हासिल करेगा. यह विशेष तौर पर इस कक्षा में लगने प्रणोदन और शक्ति आवश्यकताओं का पता लगाएगा.
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पृथ्वी और चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव दोनों पर नजर
नासा के मॉडल से निर्धारित इन आवश्यकताओं की पुष्टि होने से ढुलाई संबंधी अनिश्चितता को कम किया जा सकेगा. कैप्स्टोन नई अंतरिक्ष यान से दूसरे अंतरिक्ष यान के बीच अंतरिक्ष दिशाज्ञान के समाधा की विश्वसनीयता का भी प्रदर्शन करेगा. NRHO कक्षा की एक फायदा यह भी होता है कि उससे पृथ्वी का निर्बाध दृश्य मिलता है और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव भी दिखाई देता है.
दिशाज्ञान क्षमताओं का परीक्षण
नई दिशाज्ञान क्षमताओं के परीक्षण के लिए नासा का लूनार रेकोनायसेंस ऑर्बिटर (LRO) साल 2009 से चंद्रमा का चक्कर लगा रहा है जो कैप्सटोन के लिए एक संदर्भ बिंदु का काम करेगा. कैप्स्टोन सीधे एलआरओ से संचार करेगा और यह नापेगा कि वह एलआरओ से कितनी दूरी पर हैं और दोनों के बीच की दूरी कितनी तेजी से बदलती है जिससे कैप्स्टोन की स्थिति का पता चलेगा.
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एलआरओ की मदद से कैप्स्टोन काऑटोनोमस नैविगेशन सॉफ्टवेयर का आंकलन होगा. सिसलूनार ऑटोनोमस पोजिशनिंग सिस्टम (CAPS) नाम के यह सॉफ्टवेयर यदि सफल रहा तो भविष्य में अंतरिक्षयानों को अपनी स्थिति का पता लगाने में मदद करेगा और उनकी पृथ्वी के निगरानी तंत्र पर निर्भरता खत्म हो जाएगी.
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