फिनलैंड (Finland) और स्वीडन (Sweden) नाटो (NATO) में शामिल होने का एक तरह से ऐलान ही कर दिया है. जहां फिनलैंड ने इस प्रक्रिया को जल्द से जल्द पूरा करने की मंशा जताई है. वहीं स्वीडन के भी इसी राह पर चलने की पूरी संभावना है. आखिर दशकों से तटस्थ रहे इन देश नाटो की ओर जाने का फैसला क्यों कर रहे हैं, इस घटना का यूरोप पर क्या असर होगा. क्या इस घटना से रूस और कमजोर और नाटा ज्यादा ताकतवर होगा. नाटो के यूरोपीय सहयोगी देशों पर सका कुछ असर भी होगा या नहीं. ऐसे कई सवालों के जवाब तलाशे जाने लगे हैं.
रूस को खतरा
उम्मीद के मुताबिक रूस (Russia) ने भी अपनी नाराजगी जताते हुए दोनों देशों को चेतावनी भी जारी कर दी है. यूरोप की राजनीति और इतिहास के लिहाज से यह एक बड़ी घटना कही जा सकती है. इसके बाद फिनलैंड और स्वीडन के नाटों में शामिल होने के बाद नाटो की रूस से लगी सीमा दोगुनी से भी ज्यादा हो जाएगी.
क्या है नाटो
नाटो अमेरिका की अगुआई में स्थापित किया सैन्य संगठन है जो शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ केविस्तार के खतरे को रोकने के लिए बनाया गया था. 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद भी यह संगठन ना केवल कायम रहा बल्कि इसका तेजी से विस्तार भी हुआ. बहुत से देश जो शीत युद्ध में सोवियत संघ के निकट थे अब धीरे धीरे नाटो में शामिल होने लगे. अब यूक्रेन, फिनलैंड और स्वीडन भी नाटो में शामिल होना चाहते हैं.
क्या फायदा होगा
माना जा रहा है कि इन दोनों देशों के नाटो में शामिल होने से नाटो का फायदा मिल सकता है. डीडब्ल्यू की रिपोर्ट के मुताबिक स्वीडिश डिफेंस रिसर्च एंजेंसी के नाटो विश्लेषण रॉबर्ट डाल्स्जो का कहना है कि इससे अब तक इन देशों की नाटो की सदस्यता को लेकर असमंजस खत्म हो जाएगी. अब नाटो और स्वीडन फिनलैंड एक तरफ खड़े हैं इससे बाल्टिक इलाके में भी सुरक्षा मजबूत हो जाएगी.
बाल्टिक इलाके में नाटो और रूस की स्थिति
फिनलैंड और स्वीडन को नाटो के खेमे में आने से बाल्टिक देशों की सुरक्षा करना नाटो के लिए आसान होजाएगा. वहीं बाल्टिक इलाके में नाटो अब कमजोर नहीं बल्कि एक ताकतवर पक्ष बन जाएगा. यहां का वायु क्षेत्र अब नाटो के उपयोग के लिए भी खुल जाएगा. यह सब कुछ निश्चित तौर पर इस क्षेत्र में रूस को कमजोर बना देगा.
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अब तक की तटस्थता
बेशक राजनैतिक तौर पर यह नाटो की एक और सफलता होगी. जहा फिनलैंड दशकों से एक तटस्थ देश रहा है, वहीं स्वीडन भी किसी संगठन से जुड़ने से परहेज करता रहा है और एक तरह से तटस्थ ही रहा है. हालांकि उसका ब्रिटेन के साथ रक्षा समझौता रहा है. शीत युद्ध के दौरान भी दोनों ही देशों का अपना रक्षा तंत्र रहा है. अब यह नाटो से जुड़ जाएगा.
बदल रही है धारणा
1991 सोवियत संघ के विघटन के बाद बने यूरोपीय संघसे फिनलैंड और स्वीडन की निकटता बढ़ी और दोनों 1995 में संघ के सदस्य हो गए. लेकिन दोनों देश सैन्य रूप तटस्थ बने रहे. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भी दोनों देश तटस्थ ही रहे. लेकिन रूस युक्रेन युद्ध ने दोनों देशों को अपनी सुरक्षा नीतियों पर पुनर्विचार करने पर मजबूर कर दिया है. इस युद्ध के बाद इन देशों में नाटो से जुड़ने का समर्थन करने वालों की संख्या भी काफी बढ़ी है.
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हालात बता रहे हैं कि इतना साफ है कि जब फिनलैंड और स्वीडन नाटो का हिस्सा बनेंगे, रूस उन पर हमला नहीं कर सकेगा. अभी रूस यूक्रेन में उलझा है. और वह वहां सफल भी नहीं हो पा रहा है. इसके अलावा वह इतना शक्तिशाली भी नहीं रह गया है कि यूक्रेन के साथ साथ फिनलैंड में भी मोर्चा खोल सके. इसी लिए कहा जा रहा है कि फिनलैंड और स्वीडन दोनों के लिए नाटो से जुड़ने का सही समय है.
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