आज यानि 19 मई को भारत के छठे राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी का जन्मदिन है. जब वो 1969 में राष्ट्रपति के चुनाव में हार गए तो खेती-किसानी करने आंध्र प्रदेश में अपने गांव इलूर लौट गए थे. वो सियासत से संन्यास लेने की घोषणा कर चुके थे. अपने जीवन से खुश थे. अचानक आठ साल बाद उनकी किस्मत ने पलटा खाया और वो निर्विरोध राष्ट्रपति चुने गए.
वो चाहते थे राष्ट्रपति भवन के कमरे खाली कर दिए जाएं
उन्हें देश के ऐसे राष्ट्रपति के तौर पर भी याद किया जाता है जो इस विशाल परिसर वाले आलीशान भवन के केवल एक कमरे में रहते थे. वो ये भी चाहते थे कि राष्ट्रपति भवन के बाकी कमरे खाली कर दिए जाएं. बाद में उन्हें काफी समझाया बुझाया गया, तो राष्ट्रपति भवन में रहने आए, लेकिन यहां उनका जीवन काफी सादगी वाला था.
70 फीसदी वेतन सरकारी निधि में देते थे
वो देश के ऐसे राष्ट्रपति भी थे, जो अपनी सैलरी का 70 फीसदी हिस्सा सरकारी निधि में दे देते थे. उन्होंने अन्य राष्ट्रपतियों की तरह नौकर-चाकरों का अमला अपने व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए नहीं रखा था. वो कोशिश करते थे कि आम आदमी भी उनसे मिलने के लिए राष्ट्रपति भवन में आ सके.
नेहरू के करीबी नेताओं में थे
नीलम संजीव रेड्डी आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले के इल्लूर गांव में संपन्न घर में पैदा हुए थे. काफी जमीनें थीं. बड़ी खेती थी. पिता का रूतबा था. लेकिन नीलम संजीव रेड्डी अलग रास्ते ही चल पड़े. पहले वो आजादी की लड़ाई में कूदे. महात्मा गांधी से प्रभावित हुए. आजादी के बाद वो नेहरू के करीबी नेताओं में थे.
आंध्र के पहले मुख्यमंत्री बने थे
जब 1962 में आंध्र प्रदेश नया राज्य बना तो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें वहां का पहला मुख्यमंत्री बनाया. इसके बाद वो केंद्र में कैबिनेट मिनिस्टर बनकर आ गए. पहले लाल बहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में शामिल हुए फिर इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने के दौरान भी कैबिनेट मंत्री रहे. तब कांग्रेस पर सिंडिकेट का प्रभाव था.
इंदिरा पसंद नहीं करती थीं
सिंडिकेट के प्रभाव के कारण ही वो 1967 के चुनावों के बाद लोकसभा के स्पीकर बने. हालांकि माना जाता है कि इससे पहले उनकी इंदिरा गांधी से किसी बात पर ठन गई. सियासी गलियारों में कहा जाता है कि इंदिरा गांधी उन्हें तनिक भी पसंद नहीं करती थीं. लिहाजा जब कांग्रेस के सिंडिकेट ने बगैर इंदिरा गांधी की मर्जी जाने नीलम संजीव रेड्डी को रा्ष्ट्रपति का उम्मीदवार बना दिया तो इंदिरा खफा हो गईं.
इंदिरा ने अपना उम्मीदवार खड़ा किया
उन्होंने अपना एक प्रत्याशी इस चुनाव में खड़ा किया. वो थे वीवी गिरी. इंदिरा गांधी का ये कदम सिंडिकेट के लिए अप्रत्याशित था. ये कांग्रेस के टूटने की वजह भी बनी. इंदिरा गांधी ने कांग्रेस में लोगों से अंतररात्मा की आवाज पर वोट देने की अपील की.
सियासत से संन्यास लेकर खेती-किसानी करने चले गए
स्पीकर पद से इस्तीफा देकर राष्ट्रपति का चुनाव लड़ रहे नीलम संजीव रेड्डी चुनाव हार गए. सिंडिकेट की बहुत किरकिरी हुई. बाद में पार्टी टूटी भी. लेकिन नीलम रेड्डी इस हार को बर्दाश्त नहीं कर पाए. उन्होंने सियासत से संन्यास लेने की घोषणा की ओर आंध्र प्रदेश लौट गए ताकि खेती-किसानी करा सकें.
जेपी ने देश में बड़ा आंदोलन खड़ा कर लिया था
इसके बाद देश में 70 के दशक के बीच तक आते आते राजनीति ने मोड़ लेना शुरू किया. जयप्रकाश नारायण 1975 तक एक बड़ा आंदोलन खड़ा चुके थे. ये आंदोलन देश में कुशासन और भ्रष्टाचार के खिलाफ था. इसे उन्होंने नाम दिया था संपूर्ण क्रांति. इसी दौरान जेपी ने नीलम संजीव रेड्डी ने राजनीति में वापसी की गुहार की.
वापस राजनीति में लौटे
वो वापस सक्रिय राजनीति में लौटे. वर्ष 1977 में वह जनता पार्टी के सदस्य बने. उन्होंने नांदयाल से लोकसभा का चुनाव लड़ा. जीते भी. उस दौरान पूरे देश में इंदिरा विरोधी लहर चल रही थी. आंध्र में इसका कोई असर नहीं था. आंध्र में जनता पार्टी केवल एक सीट ही जीत पाई थी और ये सीट नीलम संजीव रेड्डी की थी.
निर्विरोध जीता राष्ट्रपति का चुनाव
इसके बाद नीलम संजीव रेड्डी को जनता पार्टी ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपना उम्मीदवार बनाया. वो निर्विरोध इस पद पर जीते. 1982 तक वो इस पद पर रहे. इस दौरान उन्होंने तीन प्रधानमंत्री देखे-मोरारजी देसाई, चरण सिंह और फिर सत्ता में वापस लौटीं इंदिरा गांधी. वो जब राष्ट्रपति बने तो देश के सबसे कम उम्र में राष्ट्रपति बनने वाले शख्स थे. उस समय उनकी उम्र 64 साल थी. उनसे पहले राष्ट्रपति बने लोग इस उम्र से ज्यादा के थे.
अपनी बड़ी जमीन सरकार को दे दी
यद्यपि वो अमीर और जमींदार परिवार से ताल्लुक रखते थे. लेकिन बाद में उन्होंने अपनी 60 एकड़ जमीन सरकार को दे दी. हालांकि ये कहा जाता है कि वो जिस गांव से ताल्लुक रखते थे, उसका हाल खराब ही रहा.
निमोनिया से निधन हुआ
अपने विदाई भाषण में उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान रहीं तीनों सरकारों की आलोचना की और कहा कि वे देश की जनता के हालात सुधारने में पूरी तरह विफल रहे. उन्होंने अपील की कि मजबूत विपक्ष को खड़ा होना चाहिए ताकि सरकार के कुशासन को काबू में किया जा सके. पहली जून 1996 को उनकी निमोनिया से मृत्यु हो गई.
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