अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के साल 1948 के सालाना दीक्षांत समारोह (Aligarh Muslim University Celebration) में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पहुंचे थे और उन्होंने भारत की मिली जुली संस्कृति को बरकरार रखने और सांप्रदायिकता (Communalism) के जहर से बचने के बारे में यादगार भाषण दिया था. एएमयू में आखिरी बार 1964 में कोई प्रधानमंत्री बतौर मुख्य अतिथि पहुंचा था, जब लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) ने यादगार भाषण में सांप्रदायिकता से दूर रहने का संदेश दिया था. नेहरू के ऐतिहासिक भाषण के महत्वपूर्ण अंश आप यहां हिंदी में पढ़ सकते हैं.
वास्तव में, आज़ादी मिलने के दौरान और उसके बाद के समय तक भारत और पाकिस्तान विभाजन के चलते सांप्रदायिक तनाव का माहौल बेहद संवेदनशील था. आज़ाद भारत के सामने वो हालात बड़ी चुनौती की तरह थे. उस संदर्भ को ध्यान में रखते हुए आपको इस भाषण को समझना चाहिए.
नेहरू के भाषण के प्रमुख अंश
"...जबकि वर्तमान अनिश्चितताओं में घिरा है और भविष्य अभी परदे में है, हमें इन हालात का सामना करना है और अपने हाथ से अपनी तकदीर लिखना है. हमें, हम सबमें से हरेक को, समझना है कि हम कहां किस स्टैंड पर हैं. अगर हम भविष्य में अपना दृढ़ विश्वास नहीं रख सके तो वर्तमान के साथ ही जीवन निरर्थक हो जाएगा.
नेटवर्क18 क्रिएटिव
मैंने आपके वीसी के निमंत्रण को स्वीकारा क्योंकि मैं आप सबसे मिलकरर आपके मन में झांकना चाहता था और अपने मन की झलक आपको देना चाहता था. हमें एक दूसरे को समझना है. हो सकता है कि हम कहीं सहमत न हो सकें लेकिन हमें मतभेद पर एकमत होना है और जानना है कि हम कहां सहमत हैं और कहां मतभेद रखते हैं. पिछले छह महीने हर संवेदनशील भारतीय के लिए दुख और दर्द देने वाले रहे हैं.
...अगर हम बुद्धिमानी और मज़बूत इरादों से काम ले सके तो हम इन कलंकों को मिटाने में सफलता हासिल कर सकेंगे. मैं अपनी बात करूं तो मुझे भारत के भविष्य में दृढ़ विश्वास है. हालांकि मेरे पिछले कई सपने ताज़ा घटनाओं से टूटे हैं, लेकिन मूलभूत विचार वही है जिसे मैं बदलने का कोई कारण नहीं देखता. यह विचार है बड़े आदर्शों का आज़ाद भारत : जहां अवसरों की समानता सबके लिए हो, जहां विभिन्न विचार और संस्कृतियां मिलकर रहें और देश के सभी लोगों के लिए तरक्की और आधुनिकता की नदी बहती रहे.
मुझे भारत पर गर्व है, सिर्फ इसलिए नहीं कि उसके पास प्राचीन और बेहतरीन विरासत है बल्कि इसलिए भी यहां ताज़ा और स्फूर्ति देने वाले मन और चेतना के लिए दरवाज़े और खिड़कियां खुली रखने की अद्भुत क्षमता भी है. भारत की ताकत दोहरी इसलिए रही है कि एक तो इसकी प्राचीन संस्कृति रही, जो समय के साथ फली फूली और दूसरे इसमें बाहर से आई धाराएं ऐसे घुली मिलीं कि अंतर करना नामुमकिन हो गया. यह एक संस्कृति हो गई.
आप इस इतिहास को कैसे देखते हैं? क्या आपको लगता है कि आप भी इस बेमिसाल विरासत के साझेदार हैं? क्या आपको भी मेरी तरह ही इस धरती पर गर्व है? या फिर आप यहां से खुद को अलग थलग और पराया समझते हैं? मैं आपसे ये सवाल इसलिए पूछ रहा हूं क्योंकि कुछ समय से यहां कुछ ताकतों ने लोगों के मन को बांटने की साज़िश रचकर इतिहास को कलंकित करने का काम किया है. आप मुस्लिम हैं और मैं हिंदू; धर्म अलग होने के बावजूद इसका मतलब यह नहीं है कि इस संस्कृति पर मेरा और आपका दावा अलग या कम ज़्यादा हो. जब इतिहास हमें आपस में जोड़ता है तो वर्तमान और भविष्य बांट कैसे सकता है?
नेटवर्क18 क्रिएटिव
...पाकिस्तान का अस्तित्व में आना मुझे लगता है कुदरती नहीं रहा. मैं आपको समझाना चाहता हूं कि हमारा मौजूदा नज़रिया क्या है. हम पर इल्ज़ाम हैं कि हम पाकिस्तान को कुचलकर उसे वापस भारत में मिलाना चाहते हैं. और ये इल्ज़ाम डर और पूरी तरह गलतफ़हमियों की वजह से हैं. मेरा विश्वास है कि कई कारणों से, भारत और पाकिस्तान को एक दूसरे के निकटतर आते ही रहना होगा वरना एक लगातार तनाव बना ही रहेगा. इसमें कोई बीच का रास्ता नहीं है. मेरा यह भी मानना है कि इस समय के विश्व को देखते हुए, भारत को अपने तमाम पड़ोसियों के साथ दोस्ती और सहयोग के रिश्ते पोसने होंगे. लेकिन, इसका मतलब यह नहीं है कि हम पाकिस्तान को दबाने या कुचलने की मंशा रखते हैं.
...आज की तारीख में अगर ऐसा अवसर आए कि भारत और पाकिस्तान फिर से एक हो जाएं तो कुछ स्वाभाविक कारणों से मैं इससे इनकार कर दूंगा. हम इस समय पाकिस्तान की समस्याओं का बोझ ढोना नहीं चाहते. हमारे पास अपनी समस्याएं ही काफी हैं... मैंने जान बूझकर पाकिस्तान की बात इसलिए की क्योंकि आपके मन में जिज्ञासा होगी कि पाकिस्तान को लेकर हमारा क्या नज़रिया है. हो सकता है कि आपके मन में मौजूदा हालात को लेकर कई तरह की बातें और अनिश्चितता हो. लेकिन हमें अपने मूलभूत विचार को लेकर स्पष्ट होना चाहिए. क्या हम हर धर्म, वर्ग आदि के लोगों को साथ लेकर चलने वाला एक सेक्युलर देश चाहते हैं या फिर हम धर्मतंत्र चाहते हैं?
...जहां तक भारत की बात है, मुझे लगता है निश्चित तौर पर हमें सेक्युलर विचार की तरफ जाना होगा और दुनिया के लिहाज़ से अपने राष्ट्रवाद को मज़बूत करना होगा. वर्तमान कुछ भी हो, भविष्य में भारत वैसा ही देश होगा, जैसा वो अतीत में रहा, जहां कई विश्वास और विचार सम्मान के साथ मिल जुलकर रहे... हमें अपने बड़े नज़रिये को खाद पानी देना चाहिए न कि अपनी संकीर्णताओं और दूसरों के बहकावे को.
सांप्रदायिकता का जह़र हम बहुत झेल चुके हैं और अब इससे निजात पाने का समय है. जहां तक मेरी बात है, मुझे यह सांप्रदायिक भावना कहीं मंज़ूर नहीं है, कम से कम शैक्षणिक स्थानों पर तो कतई नहीं. शिक्षा का मतलब ही मनुष्य की चेतना को आज़ाद करना है, कैद करना नहीं. मैं नहीं चाहता कि इस यूनिवर्सिटी को मुस्लिमों की ही यूनिवर्सिटी के तौर पर समझा जाए या बनारस की यूनिवर्सिटी को सिर्फ हिंदुओं की. सही यही होगा कि इस यूनिवर्सिटी को इस तरह समझा जाए कि यहां इस्लाम के विचार के खास पहलुओं पर खास फोकस के साथ अध्ययन होता है.
नेटवर्क18 क्रिएटिव
मैं चाहता हूं कि आप इन तमाम समस्याओं और पहलुओं पर सोचें और अपने निष्कर्ष पर खुद पहुंचे. जिस तरह के हालात हैं, उसके बावजूद आपको यहां खुद को बाहरी नहीं समझना है. आपको समझना है कि हर भारतीय के जो अधिकार हैं, वही आपके हैं. लेकिन अधिकार के साथ कर्तव्य भी सबकी तरह आपके लिए होंगे. मैं आपको आज़ाद हिन्दोस्तान के आज़ाद नागरिक के तौर पर आमंत्रित करता हूं कि आप भारत के दुखों को मिटाने और इसे एक महान देश के तौर पर हर तरह से बनाने और जिताने के लिए अपनी भूमिका निभाएं. आप इस निमंत्रण पर क्या कहेंगे?"
इस यादगार भाषण में नेहरू ने साफ तौर पर सहिष्णु और रचनात्मक राष्ट्रवाद पर ज़ोर देते हुए युवाओं से धर्मनिरपेक्ष और विकास के हामी भारत की तस्वीर बनाने का आग्रह किया था. गौरतलब है कि पांच दशकों बाद ऐसा होगा कि कोई प्रधानमंत्री एएमयू में बतौर मुख्य अतिथि पहुंचेगा. एएमयू के शताब्दी वर्ष के समारोह में पीएम नरेंद्र मोदी के भाषण पर सबकी निगाहें रहेंगी.