नई दिल्ली: वैज्ञानिक खगोलीय पिंडों (Astronomical objects) के बारे में जानने के लिए टेलीस्कोप (Telescope) का प्रयोग करते हैं. ये टेलीस्कोप कई तरह के होते हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि ब्रह्माण्ड में पहले से ही कई प्राकृतिक टेलीस्कोप हैं. जी हां, ब्रह्माण्ड की गैलेक्सी और अन्य विशालकाय पिंड दूरस्थ पिंडों के लिए एक लेंस की तरह काम करते हैं. एक ताजा शोध में आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस तकनीक का उपयोग कर इसी तरह के सैंकड़ों लेंस को ढूंढ गया है. इनके प्रभाव को ग्रैविटेशनल लेंसिंग (Gravitational lensing) कहते है.
क्या होता है ग्रैविटेशनल लेंसिंग प्रभाव
यह एक प्राकृतिक घटना होती है जब बहुत अधिक मात्रा में पदार्थ, बड़ी गैलेक्सी या गैलेक्सी की समूह एक गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र बनाता है और उससे गुजरने वाले प्रकाश को बड़ा कर उसमें बदलाव कर देता है. लेकिन ऐसा उन विशालकाय पिंडों के पीछे के पिंडों की दृष्टिरेखा को बदले बिना होता है. और इसी प्रभाव को ग्रैविटेशनल लेंसिंग कहते हैं.
आइंस्टीन ने दी थी सबसे पहले इसकी अवधारणा
ग्रैविटेशनल लेंसिंग की अवधारणा सबसे पहले महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइंसटीन ने सौ साल पहले दी थी. इससे यह व्याख्या की जा सकती है कि प्रकाश कैसे मुड़ जाता है जब वह बहुत ही भारी पिंडों, जैसे गैलेक्सी या गैलेक्सी समूह के पास से गुजरता है.

अब तक ये लेंस बहुत ही कम मात्रा में ढूढे जा सके थे.
क्या काम करते हैं ये ग्रैविटेशनल लेंस
एक प्राकृतिक और ब्रह्माण्ड के लेंस की तरह होते हैं. ये लेंसिंग प्रभाव दो तरह के होते हैं. एक दुर्बल और दूसरे सशक्त. लेंस की शक्ति का संबंध किसी वस्तु के स्थान, उसके वजन (द्रव्यमान या Mass) और लेंस की प्रकाश के स्रोत से दूरी से होता है. शक्तिशाली लेंस का वजन हमारे सूर्य से सौ अरब ज्यादा गुना हो सकता है जो उसी मार्ग से आने वाले और ज्यादा दूरी से आने वाले प्रकाश को बड़ा कर बांटेंगे जिससे हमें एक से अधिक तस्वीरें या अलग अलग छल्ले या आर्क जैसे दिख सकें.
पहले बहुत कम दिखे थे ऐसे लेंस, लेकिन ...
शक्तिशाली लेंस के साथ समस्या यह है कि वे अब तक बहुत कम दिखे हैं. पहली बार 1979 में दिखने के बाद वे केवल कुछ सौ ही ऐसे देखे गए हैं. लेकिन अब हालात बदल रहे हैं इस महीने के शुरू में एस्ट्रोफिजिकल जर्नल में प्रकाशत अध्ययन से अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने 335 नए शक्तिशाली लेंसिंग दावेदारों का पता लगाया है. इसके लिए उन्होंने अमेरिका के ऊर्जा विभाग समर्थित एरिजोना के प्रोजोक्ट के आंकड़ों की मददली जिसो डार्क एनर्जी स्पेक्ट्रोस्कोपिक इंस्ट्रूमेंट (DESI) कहा जाता है. इस शोध में एक अंतरराष्ट्रीय विज्ञान प्रतियोगिता की विजयी मशीन लर्निंग एल्गारिदम की भी मदद ली.
खास जानकारी हासिल करने में हो सकते हैं उपयोगी
इस शोध में भाग लने वाले वरिष्ठ वैज्ञानिक डेविड स्कलेगल का मानना है कि इस तरह की चीजों को ढूंढना ग्लैक्सी के आकार के टेली स्कोप ढूंढना था. वे डार्क मैटर और डार्क एनर्जी को ढूंढने में शक्तिशाली उपकरण हो सकते हैं. ये ग्रैविटेशनल लेंस खास जानकारी हासिल करने में मददगार हो सकते हैं, जैसे विभिन्न गैलेक्सियों के बीच की सटीक दूसरी का अनुमान लगाने के लिए ये विशेष चिन्ह दे सकते हैं.

ये लेंस डार्क मैटर के रहस्य को सुलझा सकते हैं.
डार्क मैटर पर डाल सकते हैं ये रोशनी
इनसे सबसे ज्याद उम्मीद है न दिखाई दे पाने वाले डार्क मैटर के बारे में जानकारी देने में ये एक खिड़की की तरह काम कर सकते हैं. फिलहाल वैज्ञानिकों का मत है कि ब्रह्माण्ड का 85 प्रतिशत पदार्थ डार्क मैटर है. माना जा रहा है कि इस लेंसिंग प्रभाव के लिए अधिकाधिक जिम्मेदार डार्क मैटर ही है. डार्क मैटर, ब्रह्माण्ड का तेजी से होता विस्तार जो डार्क ऊर्जा की वजह से हो रहा है, ऐसे उन रहस्यों में से एक है जिसे भौतिकविद खोजने में लगे हैं.
सुपरकम्प्यूर की मदद से आंकड़ों का किया अध्ययन
शोधकर्ताओं ने एक सुपरकम्प्यूटर की मदद से आंकड़ों का अध्ययन किया और स्ट्रॉन्ग लेंस के दावेदारों को उनकी शक्ति के अनुसार तीन श्रेणी में बांटा. इन दावेदारों को न्यूरल नेटवर्क की मदद ढूंढा गया जो कि खास आर्टीफिश्यल इंटेलिजेनस का प्रोग्राम जो इन दावेदारों की पहचान करता है. इसके लिए शोधकर्ताओं ने हजारों तस्वीरों को व्यवस्थित कर कम्प्यूटर प्रोग्राम को दी जिससे वह दावेदारों की पहचान घंटों में कर सकता था.
प्रतियोगिता से हुई थी शुरुआत
इस तरह की डेटा माइनिंग में कार्य बहुत जटिल और विशाल होता जा रहा है क्योंकि आंकड़ों की मात्रा भी तेजी से बढ़ रही है. इस कार्यक्रम क शुरुआत एक प्रतियोगिता से हुई थी. कई शोधकर्ताओं की इस तरह के प्रोग्रामिंग चैलेंज प्रतियोगिताओं में भाग लेने में भी दिलचस्पी बढ़ रही है. ताजा शोध के सदस्यों का लक्ष्य अब 1000 स्ट्रॉन्ग लेंस ढूंढने का है.
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Tags: Artificial Intelligence, Research, Science
FIRST PUBLISHED : May 17, 2020, 11:55 IST