केरल (kerala) केंद्र सरकार (Central Government) के बनाए नागरिकता संशोधन कानून (Citizenship Amendment Act) के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) जाने वाला पहला राज्य बन गया है. केरल ने संविधान के अनुच्छेद 131 (Article 131) का हवाला देकर सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है.
आर्टिकल 131 सुप्रीम कोर्ट को ये अधिकार देता है कि वो केंद्र और राज्यों के बीच के मामलों की सुनवाई करे और उसपर अपना फैसला दे. सुप्रीम कोर्ट में नागरिकता कानून को चुनौती देने वाली करीब 60 याचिकाएं दाखिल की गई हैं. लेकिन राज्य के तौर पर केरल ने सबसे पहले इसे कोर्ट में चुनौती दी है.
केरल ने अपनी याचिका में कहा है कि केंद्र का नागरिकता कानून संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत दिए समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है, संविधान के अनुच्छेद 21 के जीने के अधिकार और व्यक्तिगत आजादी के अधिकार का उल्लंघन करता है और अनुच्छेद 25 में वर्णित कोई भी धर्म चुनने के अधिकार का उल्लंघन करता है. केरल की याचिका में तर्क दिया गया है कि ये भेदभाव करने वाला है क्योंकि इसमें सिर्फ कुछ खास देशों के कुछ खास अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों को ही नागरिकता देने का प्रावधान है.
केरल की सरकार नागरिकता कानून के खिलाफ विधानसभा में एक प्रस्ताव पहले ही पारित कर चुकी है. केरल की विधानसभा ने इसे देश सेक्यूलर ढांचे के खिलाफ बताया है और इस कानून को केंद्र सरकार से वापस लेने की अपील की है.
क्या कहता है संविधान का अनुच्छेद 131
केरल की सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 131 का हवाला देकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है. संविधान का अनुच्छेद 131 सुप्रीम कोर्ट को ये अधिकार देता है कि वो राज्य बनाम राज्य या फिर राज्य बनाम केंद्र के मामलों की सुनवाई करे और उस पर फैसला दे.

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आर्टिकल 32 के जरिए भी सर्वोच्च अदालत किसी मामले में निर्देश जारी कर सकती है. लेकिन आर्टिकल 131 के जरिए सुप्रीम कोर्ट को एक्सक्लूसिव अधिकार हासिल हैं. इसी तरह से आर्टिकल 226 के जरिए हाईकोर्ट को ये अधिकार दिया गया है कि वो किसी मामले में निर्देश जारी कर सकती है.
आर्टिकल 131 के मुताबिक ये सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आता है कि वो- केंद्र सरकार बनाम एक या एक से अधिक राज्य, केंद्र सरकार बनाम कोई भी राज्य या राज्य का कोई भी पक्ष और दो राज्यों के बीच के मामले पर सुनवाई करे.
आर्टिकल 131 के दायरे में आते हैं किस तरह के विवाद
इस आर्टिकल के जरिए केंद्र और राज्यों के बीच हर तरह के विवाद को नहीं सुलझाया जा सकता. आर्टिकल 131 के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट इसके जरिए उन्हीं मसलों पर फैसला दे सकती हैं, जहां केंद्र और राज्यों के अधिकारक्षेत्र का मसला सामने आता है. सरकारों के बीच आपसी झगड़े और छोटे-मोटे विवाद का इस आर्टिकल से कोई लेना-देना नहीं है. साल 1977 में सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट ऑफ राजस्थान बनाम केंद्र सरकार के एक मामले में आर्टिकल 131 को लेकर यही साफ राय रखी थी.
केंद्र के कानून के खिलाफ आर्टिकल 131 के इस्तेमाल का पांचवा मामला
केंद्र और राज्यों के बीच के टकराव की स्थिति में आर्टिकल 131 के इस्तेमाल की घटनाएं कम ही देखने में आई हैं. नागरिकता संशोधन कानून को ऐसा पांचवा मामला बताया जा रहा है, जिसमें केरल की सरकार ने आर्टिकल 131 के इस्तेमाल के जरिए विवाद के निपटारे की अपील की है.
इस आर्टिकल के इस्तेमाल का पहला मामला 1963 में सामने आया था. इसमें बंगाल की सरकार ने केंद्र के बनाए एक कानून का विरोध किया था. पश्चिम बंगाल की सरकार ने कोयला पाए जाने वाले इलाकों के लिए बनाए गए केंद्र सरकार के कोल बियरिंग एरियाज़ एक्ट 1957 के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. पश्चिम बंगाल सरकार का तर्क था कि इस तरह के कानून बनाना केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है. कोल फील्ड्स पर राज्य सरकारों का अधिकार होना चाहिए. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने एक्ट की वैधानिकता बरकरार रखी थी.

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1977 में केंद्र से भिड़ गई थी कर्नाटक की सरकार
इस तरह का दूसरा मामला 1977 में कर्नाटक बनाम केंद्र सरकार के बीच आया. उस वक्त केंद्र सरकार ने कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए एक कमिटी गठित की थी. कर्नाटक सरकार इसके खिलाफ आर्टिकल 131 का सहारा लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई.
दरअसल कर्नाटक में उस वक्त डीएमके की करुणानिधि की सरकार थी. कहा जाता है कि डीएमके के प्रतिद्वंद्वी पार्टी एडीएमके के एमजी रामचंद्रण ने करूणानिधि सरकार के भ्रष्टाचारों की मोटी फाइल इंदिरा सरकार को सौंप दी. इसी के बाद 31 जनवरी 1976 को इंदिरा सरकार ने कर्नाटक की सरकार बर्खास्त कर दी और भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए सरकारिया कमिशन का गठन कर दिया.
ये केंद्र के बनाए कोई कानून का मसला नहीं था. इसमें कई बातें शामिल थी. आरोप लगाए गए कि केंद्र ने राजनीतिक दुर्भावना से प्रेरित होकर राज्य सरकार के खिलाफ कदम उठाया है. राजनीतिक दुश्मनी निकालने के लिए राज्य सरकार को निशाने पर लिया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट में ये मामला काफी उछला.
7 जजों की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई की. सबसे पहले सवाल यही उठा कि ये आर्टिकल 131 के दायरे में आता है या नहीं. हालांकि 3 के मुकाबले 4 जजों ने इसे आर्टिकल 131 के दायरे में माना लेकिन मेरिट के आधार पर याचिका खारिज कर दी गई.
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Tags: CAA, Citizenship Act, Citizenship bill, Kerala, Pinarayi Vijayan
FIRST PUBLISHED : January 15, 2020, 13:31 IST