एडमिरल सरदारी लाल नंदा तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ
यह कहानी है भारतीय नौसेना के पूर्व एडमिरल एसएम नंदा के नेतृत्व में 1971 के भारत-पाक युद्ध में 'ऑपरेशन ट्राइडेंट' पाकिस्तान पर मिली सबसे बड़ी जीत था. इसी मिशन की याद में आज भारतीय सेना 'नौसेना दिवस' मनाती है. इस युद्ध में यह मिशन एक टर्निंग प्वाइंट बना. इसे प्लान करने वाले पूर्व एडमिरल नंदा का 11 मई, 2009 को निधन हो गया था. आज उनकी पुण्यतिथि पर पढ़ें उनके नेतृत्व में हुए भारतीय सेना के खतरनाक ऑपरेशन 'ऑपरेशन ट्राइडेंट' की कहानी-
1968 में भारतीय नौसेना ने ओसा-I नाम की मिसाइल नौकाएं तत्कालीन सोवियत यूनियन से खरीदी थीं. इन मिसाइलों नौकाओं की खासियत थी 'स्टिक्स' मिसाइलें. ये मिसाइलें बड़े से बड़े दुश्मन क्रूजर जहाज को भेदकर डुबा सकती थीं और उस वक्त के किसी भी रडार को चकमा देने में सक्षम थीं.
इस मिसाइल नौका की क्षमता पर इसलिए था नौसेना को विश्वास
साल 1971 की शुरुआत में ये नौकाएं भारत आ गईं लेकिन चूंकि मुंबई में इतनी बड़ी कोई क्रेन नहीं थे जो इन्हें उठा सके तो इन्हें कोलकाता भेजा गया जहां से वे समुद्री रास्ते से मुंबई आईं. इतना लंबा सफर तय करने के चलते नौसेना के अधिकारियों को इन नौकाओं की क्षमताओं के बारे में पता चल चुका था. यही कारण था कि जब पाकिस्तान से युद्ध हुआ तो एडमिरल एसएम नंदा इन नौकाओं के मुंबई से कराची तक जाने के प्रति आश्वस्त थे.
नौसेना को अपने इस विश्वास को आजमाने का अवसर भी मिला 3 दिसंबर, 1971 को. इस दिन पाकिस्तानी एयरफोर्स ने शाम को करीब पौने छह बजे भारत के आधे दर्जन एयरफील्ड्स पर एक साथ हमला कर दिया. इसी रात भारत के कैनबरा एयरक्राफ्ट भी पाकिस्तानी हवाईक्षेत्र में घुस गए, वहीं जमीनी लड़ाई तो हर इलाके में शुरू हो ही चुकी थी.
भारत-पाक युद्ध के बादल तो सालों से घिरे थे लेकिन 1971 में यह हो ही गया क्योंकि भारत ने पूर्वी पाकिस्तान यानि बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम में सहयोग करने का निर्णय किया था. बहरहाल जब यह युद्ध शुरू हुआ तभी भारतीय नौसेना की इन मिसाइल नौकाओं वाली किलर 'स्क्वाड्रन युद्ध' भी में शामिल हुई.
यूं अंजाम दिया गया 'ऑपरेशन ट्राइडेंट'
3 दिसंबर की रात, ओसा-I मिसाइल नौकाओं का एक समूह, जिसमें INS निपात, INS निर्घात और INS वीर शामिल थे, मुंबई हार्बर से निकल गईं. इन तीनों के कमांडर क्रमश: बीएन कवीना, आईजे शर्मा और ओपी मेहता थे. इस पूरी कमांड का नेतृत्व कर रहे थे कमांडर बीबी यादव. अगले दिन इस स्क्वाड्रन में दो और युद्धपोत जुड़े. ये थे INS कचल और INS किल्तन. इसके साथ ही ऑपरेशन ट्राइडेंट की पूरी टीम तैयार हो गई.
पहले यह टीम पश्चिम की ओर बढ़ी, फिर उत्तर की ओर बढ़ने लगी, जिससे सारी ओसा-I नौकाएं रात तक कराची के बंदरगाह तक पहुंच गईं तो पाकिस्तान का सबसे मजबूत नौसेना बेस था. मजेदार बात यह है कि इस टीम के सारे ही सदस्य रूसी भाषा में बात कर रहे थे ताकि उनकी बातों को समझना दुश्मनों के लिए आसान न हो.
रात में 10 बजकर 43 मिनट पर INS निर्घात के रडार ने पाकिस्तान के मशहूर युद्धपोत 'PNS खैबर' पर निशाना लगाया. यह पाकिस्तानी नौसेना पर बड़ी मार थी. लेकिन भारतीय नौसेना यहीं पर नहीं रुकी इसके बाद उसने पाकिस्तानी पोत 'PNS शाहजहां' और एक व्यापारी जहाज 'वीनस चैलेंजर' को निशाना बनाया. यह जहाज पाकिस्तानी सेना के लिए हथियार लेकर जा रहा था.
पूरे कराची पोर्ट को उड़ा दिया गया
अब बिना देरी किए ओसा-I नौकाओं ने सटीक निशाने लगाते हुए कराची पोर्ट पर एक के बाद एक स्टिक्स मिसाइलें दागीं. यह हमला इतना तेज था कि पाकिस्तानी नौसेना को समझ ही नहीं आया कि यह हुआ क्या है. वे यही समझते रहे कि यह हमला भारतीय एयरफोर्स ने किया है. वहीं भारतीय एयरफोर्स एक अलग ऑपरेशन में इसी दिन पाकिस्तान के केमारी ऑयल टैंक्स को निशाना बना रही थी. ऐसे में स्टिक्स मिसाइलों से निपटने के लिए पाकिस्तानी नौसेना ने एंटीक्राफ्ट बंदूकों का इस्तेमाल भी किया, जाहिर है इससे कोई फायदा नहीं होना था.
बल्कि PNS खैबर ने दो भागों में टूटकर डूबने से पहले एक सिग्नल भी दिया कि उसपर भारतीय एयरक्राफ्ट ने हमला किया है. इस वक्त तक भारतीय जहाजों ने अपनी नज़रें पाकिस्तान के इस बंदरगाह पर तेल रखने की जगहों पर जमा ली थी. उन्हें पता था कि इसपर हमले का क्या नतीजा होगा. इसके बाद इन नौकाओं ने लगातार तीन मिसाइलें लॉन्च कीं, जिससे पूरे बंदरगाह पर आग फैल गई. इसके बाद भारतीय नौसेना ने अपनी नौकाएं घुमाईं और पूरी गति से बम्बई रवाना हो गईं.
पाकिस्तान ने कर लिया एक और सेल्फ गोल
गजब बात यह थी कि जब भारतीय सेनाएं लौट रही थीं तभी पाकिस्तानी वायुसेना का एक एयरक्राफ्ट उन्हें निशाना बनाने के लिए भेजा गया. लेकिन उसने किसी भारतीय सेना को निशाना बनाने के बजाए धोखे से पाकिस्तानी युद्धपोत PNS जुल्फिकार को दुश्मन नौक समझ उड़ा दिया.
7 दिसंबर, 1971 को भारतीय स्क्वाड्रन हीरो की तरह बॉम्बे लौट आई. इसने तब तक 90 मिनट में 6 मिसाइलें छोड़ी थीं और दुश्मन के तीन बड़े युद्धपोत डुबा दिए थे. और सबसे गर्व की बात यह कि इस ऑपरेशन में एक भी भारतीय सैनिक मारा नहीं गया था.
इस ऑपरेशन के चार दिन बाद ही फिर एक ऐसे ही ऑपरेशन में भारतीय सेना ने अपनी इस सफलता को दोहराया और फिर से तीन शत्रु युद्धपोत डुबा दिए और उनके तेल के स्टोरेज को आग की भेंट कर दिया.
यह हमला 1971 के युद्ध का निर्णायक हमला माना जाता है क्योंकि इसके साथ ही पाकिस्तान की सैन्य क्षमता बेहद घट गई और वह घुटनों पर आ गया. बाद में उसे बांग्लादेश को स्वतंत्र घोषित करना पड़ा.
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