बीते दिनों पुणे का ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिसॉर्ट सुर्खियों में रहा. यहां पर ओशो के ही कुछ अनुयायियों और पूर्व ट्र्स्टी ने मिलकर 3 एकड़ जमीन बेचने की पहल की. यहां तक कि बोलियां भी लगने लगीं. इसपर ओशो के भक्त आहत हो गए. उन्होंने पुणे के कोरेगांव पार्क में बने इस रिसॉर्ट को बेचने वालों को घेरे में लेते हुए आरोप लगा दिया कि ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन (ओआईएफ) विदेशी ताकतों के हाथ में है और स्विटजरलैंड ही उसे संचालित कर रहा है.
ट्रस्ट ने बेचने के पीछे क्या तर्क दिया
मार्च में ओशो के प्रेम का मंदिर बाशो के बारे में कहा गया कि ओआईएफ उसे बेचने को तैयार है. खुद ओआईएफ ने माना कि वो इसे बेचने की सोच रहा था लेकिन इसके पीछे कोरोना के कारण ओशो कम्यून को हुए नुकसान की भरपाई करना था. उनका कहना था कि कोरोना के कारण ओशो कम्यून को काफी नुकसान हुआ. इसके अलावा सीमाएं बंद होने के कारण विदेशी अनुयायी नहीं आ सके, जिससे नुकसान और बढ़ा. इसी वजह से उन्होंने प्रॉपर्टी बेचने की बात की. इसी बात पर बवाल मच खड़ा हुआ.
15 लोगों पर कैसे हुआ इतना खर्च
मसला ये था कि आश्रम के मेंटनेंस और वहां रहने वाले केवल 15 लोगों का खर्च चलाने में इतना बड़ा नुकसान कैसे हुआ, जिसकी भरपाई के लिए जमीन बेचने तक की नौबत आ गई. वो भी तब देशभर में लॉकडाउन था और कोई भारी आयोजन तक नहीं हुआ.

पुणे के बेहद पॉश इलाके में ओशो का इंटरनेशनल मेडिटेशन रिसॉर्ट बना हुआ है
विदेशी असर का आरोप
जिस प्रॉपर्टी को बेचने के बात हो रही थी, वो पुणे के बेहद पॉश इलाके में लगभग 9,836 वर्ग मीटर में फैली हुई है. इसपर 107 करोड़ की डील भी हो गई. ये सारा काम गुप्त तरीके से हुआ, तब जाकर बाकी अनुयायियों को इसकी भनक लगी. उन्होंने आरोप लगाया कि ये सब विदेशों में बैठे ताकतवर लोग कर रहे हैं, जो ओशो की विरासत को खत्म करना चाहते हैं ताकि उनका फायदा हो सके.
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ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन का ओशो के रिसॉर्ट से क्या संबंध है?
पुणे स्थित रिसॉर्ट का संचालन ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन करता है, जो स्विटजरलैंड का ट्रस्ट है. इस फाउंडेशन पर विदेशियों का ही कब्जा रहा. ये सब ओशो की मौत के बाद हुआ. उन्होंने ही अपनी वसीयत में ओशो की संपत्ति और प्रकाशन के सारे अधिकार ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन को ट्रांसफर करने की बात कही थी.

बौद्धिक विरासत की बात करें तो ओशो के हिंदी और अंग्रेजी में दिए गएृ प्रवचन लगभग 9 हजार घंटों के हैं (Photo- flickr)
रहस्यमयी मौत के बाद रहस्यमयी वसीयत मिली
मौत के 23 साल पर एकाएक ये वसीयत सामने आई, जिसके कारण अब भी ओशो के मानने वाले किसी साजिश का संदेह करते हैं. जो भी हो, फिलहाल फाउंडेशन में टॉप पदों पर स्विटजरलैंड और अमेरिका के ताकतवर लोग हैं.
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कितनी संपत्ति है फाउंडेशन के पास
ये फाउंडेशन रिसॉर्ट को देखता है. जो लगभग 10 एकड़ में फैला हुआ है. इसके अलावा उसके पास ओशो की बौद्धिक संपदा से भी काफी पैसे आते हैं. बता दें कि ओशो की बौद्धिक संपदा में उनकी किताबें, प्रवचन के वीडियो शामिल हैं. इनकी कीमत अरबों रुपयों की होगी. इसके अलावा हर साल दुनियाभर से बड़ी संख्या में विदेशी अनुयायी आश्रम आते और बड़े दान करते हैं. इसका पूरा आंकड़ा अब तक नहीं मिल सका है कि सालाना उन्हें कितना फायदा होता है.

ओशो की मौत के लगभग 23 साल बाद एकाएक वसीयत सामने आई, जिसमें स्विस संस्था को सारे हक मिले
हजारों ऑडियो-वीडियो और किताबें हैं
अकेले बौद्धिक विरासत की बात करें तो ओशो के हिंदी और अंग्रेजी में दिए गए प्रवचन लगभग 9 हजार घंटों के हैं. ये ऑडियो और वीडियो दोनों ही रूप में है. 600 से ज्यादा किताबें हैं, जो दुनिया की 60 से ज्यादा भाषाओं में ट्रांसलेट हो चुकी हैं. ओशो को पेंटिंग का भी शौक था. उनकी बनाई 800 पेंटिग्स भी हैं. इनके अलावा ओशो की निजी लाइब्रेरी में भी 70 हजार से ज्यादा किताबें हैं. ये सब मिलाकर अरबों रुपए की संपत्ति हैं.
ओशो सपोर्टरों का एक वर्ग मानता है कि ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन ने संपत्ति के लिए जाली विरासत बनाई. वसीयत में अपने असल नाम चंद्रमोहन जैन के नाम से कथित तौर पर ओशो ने लिखा कि वे अपनी संपत्ति समेत प्रकाशक के हक भी फाउंडेशन को देते हैं. चूंकि फाउंडेशन विदेशी है तो इससे मिली संपत्ति पर भी विदेशियों का अधिकार हो गया. इसे ही बाद में ओशो के कई अनुयायियों ने कोर्ट में चुनौती दी थी. इसपर कोई न कोई विवाद होता ही रहा.
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FIRST PUBLISHED : June 28, 2021, 14:13 IST