पाकिस्तान में भी नहीं मिलती धर्म के आधार पर नागरिकता, जानें दुनियाभर में क्या है नियम

देश में नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर बहस जारी है
नागरिक संशोधन विधेयक (Citizenship Amendment Bill ) अगर कानून का रूप ले लेता है तो पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धार्मिक उत्पीड़न के कारण वहां से भागकर आए हिंदू, सिख, ईसाई, पारसी, जैन और बौद्ध धर्म मानने वाले नए बिल के आधार पर भारतीय नागरिकता पा सकते हैं.
- News18Hindi
- Last Updated: December 10, 2019, 4:23 PM IST
नागरिकता संशोधन विधेयक (Citizenship Amendment Bill ) लोकसभा (Lok Sabha) से पारित हो चुका है. सोमवार देर रात लोकसभा में इस विधेयक को पारित कर दिया गया. अब इस नए नागरिकता बिल को राज्यसभा में पेश किया जाएगा. इस बीच इस विधेयक पर बहस लगातार जारी है. नागरिकता संशोधन विधेयक को विपक्षी पार्टियां संविधान (Constitution) का उल्लंघन बता रही हैं. वो इसे धर्म के आधार पर भेदभाव का मामला मान रही हैं. जबकि सरकार का कहना है कि इस विधेयक से संविधान का किसी भी तरह से उल्लंघन नहीं होता है.
नए नागरिकता बिल में ये प्रावधान है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न की वजह से शरणार्थी बने गैर मुसलमान भारतीय नागरिकता पाने के लिए आवेदन कर पाएंगे. नागरिक संशोधन विधेयक अगर कानून का रूप ले लेता है तो पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धार्मिक उत्पीड़न के कारण वहां से भागकर आए हिंदू, सिख, ईसाई, पारसी, जैन और बौद्ध धर्म मानने वाले नए बिल के आधार पर भारतीय नागरिकता पा सकते हैं.
क्यों हो रहा है नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध?
बिल का इसलिए विरोध हो रहा है क्योंकि धर्म के आधार पर कुछ समुदायों को नागरिकता उपलब्ध करवाई जा रही है और इसमें मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया है. विपक्ष इसे धर्म के आधार पर भेदभाव का मामला बता रही है. देश के उत्तरपूर्व इलाकों में बिल का इसलिए विरोध हो रहा है क्योंकि वहां पिछले कुछ वर्षों में बांग्लादेश से बड़ी संख्या में हिंदू आए हैं. ऐसे में अगर नागरिकता वाला कानून बन गया तो कुछ समुदाय अल्पसंख्यक हो जाएंगे.नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर कई तरह के सवाल हैं. मसलन क्या किसी दूसरे देश में इस तरह का कानून है? दुनियाभर के बाकी देश किस आधार पर नागरिकता प्रदान करते हैं?

कैसे प्रदान की जाती है नागरिकता?
दुनियाभर में नागरिकता प्रदान करने के दो सिद्धांत हैं- पहला ज्यूस सैंग्यूनिस और दूसरा ज्यूस सोलि. ज्यूस सैंग्यूनिस में नस्ल या रक्त संबंध के आधार पर नागरिकता प्रदान की जाती है. इस कॉन्सेप्ट के हिसाब से माता-पिता की नागरिकता के आधार पर बच्चे को नागरिकता मिलती है. ज्यूस सोलि में जमीन के आधार पर नागरिकता मिलती है. बच्चा जहां की धरती पर पैदा होगा, उसे वहां की नागरिकता हासिल होगी.
इसके अलावा एक देश का नागरिक किसी दूसरे देश में जाकर वहां की नागरिकता ले सकता है लेकिन उसे नेचुरलाइजेशन की अवधि पूरी करनी होगी. ये अलग-अलग देशों में अलग-अलग है. मसलन इजरायल जैसे देश में ये कानून है कि वहां की नागरिकता को हासिल करने के लिए किसी भी व्यक्ति को नागरिकता के आवेदन से पहले कम से कम 5 साल तक स्थायी निवासी के तौर पर देश में रहा हो. इसमें वो 3 साल की अवधि तक देश में लगातार रहा हो.
इसी तरह की नियम कई दूसरे देशों में भी हैं. लेकिन धर्म के आधार पर नागरिकता देने का कोई उदाहरण नहीं मिलता. किसी देश का राष्ट्रीय धर्म हो सकता है लेकिन वो नागरिकता देने में धर्म की नियम शर्तें नहीं बनाते.
पाकिस्तान में भी नहीं मिलती धर्म के आधार पर नागरिकता
पाकिस्तान में भी धर्म के आधार पर नागरिकता देने का प्रावधान नहीं है. यहां तक कि बंटवारे के कुछ वर्ष बाद पाकिस्तान ने मुस्लिम शरणार्थियों को अपने यहां लेने से इनकार कर दिया था. बंटवारे के बाद पहले जो परमिट सिस्टम बना था, वो जल्द ही पासपोर्ट सिस्टम में बदल गया. पाकिस्तान ने दक्षिण एशिया के मुसलमानों को नागरिकता देने की कोई गारंटी नहीं ली.

1956 में पाकिस्तान इस्लामिक राष्ट्र बना और इस्लामिक राष्ट्र बनने के बाद भी पाकिस्तान में यही पॉलिसी चलती रही. पाकिस्तान ने सिर्फ इस्लाम धर्म के आधार पर किसी को नागरिकता देने का ऑफर नहीं दिया. ऐसी कोई पॉलिसी नहीं बनाई.
बांग्लादेश में भी पाकिस्तान जैसे नियम
बांग्लादेश भी इसी नक्शे-कदम पर चला. बांग्लादेश भी सिर्फ मुस्लिम होने के नाम पर किसी को नागरिकता नहीं देता है. नागरिकता देने में वो मुसलमानों को किसी भी तरह की वरीयता नहीं देता है. भारत में रहने वाले मुसलमानों को पाकिस्तान या बांग्लादेश जाने पर धर्म के आधार पर कोई राहत नहीं मिलती. नियम कायदों के मुताबिक उन्हें भी वीजा हासिल करना पड़ता है. वीजा मिलने के बाद ही भारतीय मुसलमान पाकिस्तान या बांग्लादेश जा सकते हैं.
ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान या बांग्लादेश मुसलमान होने के नाम पर अपने यहां व्यवधानरहित एंट्री दे रहे हैं. पाकिस्तान और बांग्लादेश मुस्लिम राष्ट्र हैं. लेकिन नागरिकता देने के सवाल पर वो मुसलमानों को वरीयता नहीं देते. ऐसा नहीं है कि मुस्लिम राष्ट्र होने के नाम पर वो किसी भी मुसलमान को अपने यहां की नागरिकता दे रहे हैं.
पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान अपने यहां इस्लाम को राष्ट्रीय धर्म मानते हैं. लेकिन वो मुस्लिम अल्पसंख्यकों की जिम्मेदारी नहीं लेते. लेकिन भारत गैर मुसलमानों के लिए ऐसा करने वाला है. नागरिकता संशोधन विधेयक के कानून बन जाने के बाद पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर मुस्लिम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता दी जा सकेगी. यही बड़ा सवाल है कि जब पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे मुस्लिम राष्ट्र मुस्लिम शरणार्थियों को अपने यहां की नागरिकता नहीं दे रहे हैं तो फिर भारत में ऐसा कानून क्यों लागू किया जा रहा है.
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नए नागरिकता बिल में ये प्रावधान है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न की वजह से शरणार्थी बने गैर मुसलमान भारतीय नागरिकता पाने के लिए आवेदन कर पाएंगे. नागरिक संशोधन विधेयक अगर कानून का रूप ले लेता है तो पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धार्मिक उत्पीड़न के कारण वहां से भागकर आए हिंदू, सिख, ईसाई, पारसी, जैन और बौद्ध धर्म मानने वाले नए बिल के आधार पर भारतीय नागरिकता पा सकते हैं.
क्यों हो रहा है नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध?
बिल का इसलिए विरोध हो रहा है क्योंकि धर्म के आधार पर कुछ समुदायों को नागरिकता उपलब्ध करवाई जा रही है और इसमें मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया है. विपक्ष इसे धर्म के आधार पर भेदभाव का मामला बता रही है. देश के उत्तरपूर्व इलाकों में बिल का इसलिए विरोध हो रहा है क्योंकि वहां पिछले कुछ वर्षों में बांग्लादेश से बड़ी संख्या में हिंदू आए हैं. ऐसे में अगर नागरिकता वाला कानून बन गया तो कुछ समुदाय अल्पसंख्यक हो जाएंगे.नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर कई तरह के सवाल हैं. मसलन क्या किसी दूसरे देश में इस तरह का कानून है? दुनियाभर के बाकी देश किस आधार पर नागरिकता प्रदान करते हैं?

सिटीजनशिप अमेंडमेंट बिल ( Citizenship (Amendment) Bill, 2016) का सबसे ज्यादा विरोध नॉर्थ ईस्ट में हुआ. फोटो. पीटीआई
कैसे प्रदान की जाती है नागरिकता?
दुनियाभर में नागरिकता प्रदान करने के दो सिद्धांत हैं- पहला ज्यूस सैंग्यूनिस और दूसरा ज्यूस सोलि. ज्यूस सैंग्यूनिस में नस्ल या रक्त संबंध के आधार पर नागरिकता प्रदान की जाती है. इस कॉन्सेप्ट के हिसाब से माता-पिता की नागरिकता के आधार पर बच्चे को नागरिकता मिलती है. ज्यूस सोलि में जमीन के आधार पर नागरिकता मिलती है. बच्चा जहां की धरती पर पैदा होगा, उसे वहां की नागरिकता हासिल होगी.
इसके अलावा एक देश का नागरिक किसी दूसरे देश में जाकर वहां की नागरिकता ले सकता है लेकिन उसे नेचुरलाइजेशन की अवधि पूरी करनी होगी. ये अलग-अलग देशों में अलग-अलग है. मसलन इजरायल जैसे देश में ये कानून है कि वहां की नागरिकता को हासिल करने के लिए किसी भी व्यक्ति को नागरिकता के आवेदन से पहले कम से कम 5 साल तक स्थायी निवासी के तौर पर देश में रहा हो. इसमें वो 3 साल की अवधि तक देश में लगातार रहा हो.
इसी तरह की नियम कई दूसरे देशों में भी हैं. लेकिन धर्म के आधार पर नागरिकता देने का कोई उदाहरण नहीं मिलता. किसी देश का राष्ट्रीय धर्म हो सकता है लेकिन वो नागरिकता देने में धर्म की नियम शर्तें नहीं बनाते.
पाकिस्तान में भी नहीं मिलती धर्म के आधार पर नागरिकता
पाकिस्तान में भी धर्म के आधार पर नागरिकता देने का प्रावधान नहीं है. यहां तक कि बंटवारे के कुछ वर्ष बाद पाकिस्तान ने मुस्लिम शरणार्थियों को अपने यहां लेने से इनकार कर दिया था. बंटवारे के बाद पहले जो परमिट सिस्टम बना था, वो जल्द ही पासपोर्ट सिस्टम में बदल गया. पाकिस्तान ने दक्षिण एशिया के मुसलमानों को नागरिकता देने की कोई गारंटी नहीं ली.

असम में नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध
1956 में पाकिस्तान इस्लामिक राष्ट्र बना और इस्लामिक राष्ट्र बनने के बाद भी पाकिस्तान में यही पॉलिसी चलती रही. पाकिस्तान ने सिर्फ इस्लाम धर्म के आधार पर किसी को नागरिकता देने का ऑफर नहीं दिया. ऐसी कोई पॉलिसी नहीं बनाई.
बांग्लादेश में भी पाकिस्तान जैसे नियम
बांग्लादेश भी इसी नक्शे-कदम पर चला. बांग्लादेश भी सिर्फ मुस्लिम होने के नाम पर किसी को नागरिकता नहीं देता है. नागरिकता देने में वो मुसलमानों को किसी भी तरह की वरीयता नहीं देता है. भारत में रहने वाले मुसलमानों को पाकिस्तान या बांग्लादेश जाने पर धर्म के आधार पर कोई राहत नहीं मिलती. नियम कायदों के मुताबिक उन्हें भी वीजा हासिल करना पड़ता है. वीजा मिलने के बाद ही भारतीय मुसलमान पाकिस्तान या बांग्लादेश जा सकते हैं.
ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान या बांग्लादेश मुसलमान होने के नाम पर अपने यहां व्यवधानरहित एंट्री दे रहे हैं. पाकिस्तान और बांग्लादेश मुस्लिम राष्ट्र हैं. लेकिन नागरिकता देने के सवाल पर वो मुसलमानों को वरीयता नहीं देते. ऐसा नहीं है कि मुस्लिम राष्ट्र होने के नाम पर वो किसी भी मुसलमान को अपने यहां की नागरिकता दे रहे हैं.
पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान अपने यहां इस्लाम को राष्ट्रीय धर्म मानते हैं. लेकिन वो मुस्लिम अल्पसंख्यकों की जिम्मेदारी नहीं लेते. लेकिन भारत गैर मुसलमानों के लिए ऐसा करने वाला है. नागरिकता संशोधन विधेयक के कानून बन जाने के बाद पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर मुस्लिम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता दी जा सकेगी. यही बड़ा सवाल है कि जब पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे मुस्लिम राष्ट्र मुस्लिम शरणार्थियों को अपने यहां की नागरिकता नहीं दे रहे हैं तो फिर भारत में ऐसा कानून क्यों लागू किया जा रहा है.
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संविधान के इन अनुच्छेदों का हवाला देकर क्यों हो रहा है नागरिकता बिल का विरोध
नागरिकता संशोधन विधेयक से जुड़ी दस खास बातें, क्यों ये शुरू से विवादों में रहा
अब कर्नाटक के असली किंग बन गए हैं येडियुरप्पा, यूं उपचुनाव में जमाया रंग