एक तरफ कोरोना की वैक्सीन के लिए पूरी दुनिया इंतजार कर रही है, वहीं एक तबका ऐसा भी है, जो वैक्सीन के खिलाफ है. ग्लोबल मार्केट रिसर्च कंपनी YouGov ने हाल ही में एक चौंकाने वाला डाटा जारी किया. ब्रिटेन में हुए इस सर्वे के मुताबिक हर 6 में से एक ब्रिटिश को टीका लगाने पर एतराज है. उन्होंने कहा कि कोरोना की वैक्सीन आने के बाद भी उसका टीका नहीं लेंगे. यानी यूके की लगभग एक तिहाई आबादी एक महामारी के खतरे में रहेगी. वैसे वैक्सीन के खिलाफ बोलने वाले लोगों का ये पहला मामला नहीं. दुनियाभर में बहुत से लोग टीका लगवाने के सख्त खिलाफ हैं. इन्हें एंटी-वैक्सर्स (anti-vaxxers) कहा जाता है.
कौन हैं एंटी-वैक्सर्स
ये वो लोग हैं, जो वैक्सीन होने के बाद भी खुद या अपने बच्चों या परिवार को उसका टीका नहीं दिलवाना चाहते. ऐसे लोगों को तादाद लगातार बढ़ रही है. यहां तक कि पिछले ही साल वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) ने वैक्सीन के खिलाफ बढ़ती सोच को दुनिया के 10 सबसे बड़े खतरों में गिना था. एंटी-वैक्सर्स मानते हैं कि वैक्सीन की दुनिया को जरूरत ही नहीं है, बल्कि सारी खतरनाक बीमारियों को इंसानी शरीर ऐसे ही हरा सकता है. वे यह भी मानते हैं कि वैक्सीन के कारण शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और कई दूसरी समस्याएं भी हो सकती हैं. यहां तक गर्भावास्था के दौरान मां को लगने वाली वैक्सीन्स पर भी ये समुदाय सवाल करता है. उसका तर्क है कि बच्चों में बढ़ती ऑटिज्म या कई तरह की मानसिक बीमारियां इसी की देन हैं.

कई जगहों पर वैक्सीन लगाना अनिवार्य करने के लिए कानून लाना पड़ा
काफी प्रभावशाली है ये समूह
टीकों का विरोध करने वाला ये तबका कितना शक्तिशाली है, इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि कई जगहों पर वैक्सीन लगाना अनिवार्य करने के लिए कानून लाना पड़ा. जैसे कैलिफोर्निया में 277 बिल लाया गया, वहीं ऑस्ट्रेलिया में इसके लिए कड़ा कानून लगा. No Jab, No Pay के तहत अगर कोई अपने बच्चे का वैक्सीनेशन नहीं कराता तो उस बच्चे को स्कूल में दाखिला तक नहीं मिलेगा. ऐसा ऑस्ट्रेलिया में वैक्सीन के खिलाफ बढ़ते अभियान को रोकने के लिए किया गया.
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कब हुई एंटी-वैक्सर्स अभियान की शुरुआत
अठरहवीं सदी में ही ये चलन दिखने लगा था. तब पॉक्स के इलाज के लिए काऊपॉक्स के इनएक्टिव तत्वों को लोगों में डाला जाता था ताकि उन्हें चिकन पॉक्स न हो. तभी कई लोगों को लगने लगा कि ये उनके धर्म के खिलाफ है. साल 1970 में डीटीपी की वैक्सीन पर भारी विरोध हुआ. लोगों को लगने लगा था कि इस वैक्सीन के कारण कई तरह की न्यूरोलॉजिकल बीमारियां हो सकती हैं. इससे डरे हुए लोगों ने ये वैक्सीन लेने से साफ मना कर दिया. नतीजा ये हुआ कि हर साल लाखों बच्चों की मौतें डिप्थीरिया और सांस से जुड़ी बीमारियों से होती रहीं. बाद की स्टडी में सामने आया कि इससे खतरे तो हैं लेकिन नहीं के बराबर. यानी करोड़ों में एकाध मामला ऐसा हो सकता है.

लोगों को लगने लगा था कि इस वैक्सीन के कारण कई तरह की न्यूरोलॉजिकल बीमारियां हो सकती हैं (Photo-pixabay)
क्या हैं उनके तर्क
एक और बात एंटी-वैक्सर्स को बढ़ावा देती थी वो है वैक्सीन से पूरी तरह की इम्युनिटी न मिलना. चूंकि वैक्सीन लगाने के बाद भी संक्रमण का खतरा रहता है इसलिए इसे लगाना बेकार है. जबकि सच तो ये है कि वैक्सीन काफी हद तक बीमारियों से सुरक्षित रखती है और अगर संक्रमण हो भी जाए तो वो काफी माइल्ड रहता है. सबसे ज्यादा बवाल MMR वैक्सीन को लेकर है. पेरेंट्स का कहना है कि इससे बच्चे में ऑटिज्म हो सकता है. इस आपत्ति को लेकर Centers for Disease Control and Prevention (CDC) ने काफी सारे बच्चों पर स्टडी की और पाया कि ये वैक्सीन भी पूरी तरह से सेफ है और ऑटिज्म का वैक्सीन से कोई संबंध नहीं.
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काफी गहरा है डर
पश्चिम में वैक्सीन को लेकर डर कितना ज्यादा है, ये इसी बात से समझ आता है कि वहां के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप तक ने एक बार कहा था कि वैक्सीन से ऑटिज्म हो सकता है. साउथ फ्लोरिडा के अखबार Sun-Sentinel से बात के दौरान ट्रंप ने एंटी-वैक्सर्स की तरह बयान दिया था. बाद में उन्होंने ये बात ट्विटर, टीवी और कई डिबेट में भी कही थी.

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप तक ने एक बार कहा था कि वैक्सीन से ऑटिज्म हो सकता है (Photo-pixabay)
अमेरिकी आबादी भी खतरे में
अब पश्चिमी देशों में एंटी-वैक्सर्स काफी सक्रिय हैं और काफी प्रभावशाली भी हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि ये लोग कोरोना वायरस के लिए आम लोगों को सोच पर असर डाल सकते हैं. मई की शुरुआत में अमेरिका में हुई एक रिसर्च के ट्रेंड डरावने हैं. इसके मुताबिक 23% से ज्यादा अमेरिकी कोरोना वायरस की वैक्सीन नहीं लेना चाहते हैं. एक और रिसर्च जो कि मॉर्निंग कंसल्ट ने की थी, उसके मुताबिक 14 प्रतिशत अमेरिकी जनता से वैक्सीन लेने से साफ इनकार किया, जबकि 22 प्रतिशत अभी पक्का नहीं हैं कि वे टीका लें या नहीं.
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FIRST PUBLISHED : July 17, 2020, 16:42 IST