कोरोना संक्रमण अब पूरे विश्व में फैल चुका है. अब तक 41 लाख से ज्यादा आबादी इससे संक्रमित है, जबकि 2 लाख 80 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं. ईरान भी बुरी तरह से इसकी चपेट में है, जहां 1 लाख से ज्यादा लोग कोरोना पॉजिटिव हैं, वहीं मौत का आंकड़ा भी साढ़े 6 हजार से ऊपर है. ऐसे में भारत के भी पारसी समुदाय ने ईरान को मेडिकल हेल्प भिजवाई.
ये बात वहां के विदेश मंत्री जवाद जरीफ (Mohammad Javad Zarif) ने ट्वीट करके कही. 8 मई को किए इस ट्वीट में उन्होंने कहा कि भारत के पारसी जो बहुत पहले ईरान से ही भारत जा बसे थे, उनके दिल में आज भी ईरान के लिए प्यार है. उनकी ओर से ईरान के लिए भेजे गए कोविड-19 हेल्थ पैकेज के लिए धन्यवाद. हालांकि ये मदद कब और कैसे दी गई, इसका खुलासा नहीं हो सका है. वैसे ईरान की स्थानीय न्यूज एजेंसी फार्स के मुताबिक भारत से 2 कार्गो शिपमेंट ईरान पहुंचे थे.
वैसे भारत के पारसियों का ईरान से गहरा रिश्ता रहा है. ईरान में बसे पारसी, जिन्हें पर्शियन कहा जाता है, वे आज से लगभग 1200 साल पहले ईरान से भारत आ गए. इस बारे में जानकारी के बाद पहली बार साल 2017 में वैज्ञानिकों को इस बात के सबूत मिले कि भारत के पारसी की जेनेटिक्स प्राचीन Neolithic पीरियड के ईरानियों से काफी मिलती-जुलती है. साइंस जर्नल Genome Biology में ये स्टडी साल 2017 में प्रकाशित हुई थी. स्टडी के लिए खुदाई में मिले प्राचीन ईरानी समुदाय, जिसे Sanjan कहते थे, उनके जेनेटिक डाटा और अस्थियों की जांच हुई. इन्हें भारत और पाकिस्तान के भी कुछ हिस्से में बसे 174 पारसियों के मिलाया गया. जिसमे ये नतीजे दिखाई दिए.

ईरान में बसे पारसी, जिन्हें पर्शियन कहा जाता है, वे आज से लगभग 1200 साल पहले ईरान से भारत आ गए
जोरोएस्ट्रिनिइजम (Zoroastrianism) दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से है. इसकी शुरुआत जराथुस्ट्र (Zarathushtra) ने प्राचीन ईरान में लगभग 3500 साल पहले की थी. अगले हजार साल तक ये दुनिया के एक ताकतवर धर्म के रूप में रहा. 600 BCE से 650 CE तक ये ईरान का आधिकारिक मजहब था. इतिहासकारों के अनुसार 7वीं सदी में ईरान में इस्लाम को मानने वालों का आक्रमण हुआ. इससे वहां पर Sasanian Empire खत्म हो गया. ये पारसियों के साम्राज्य का अंत था. इस युद्ध को Battle of Qadisiyyah नाम से जाना जाता है.

पूरी दुनिया में इस समुदाय की आबादी काफी तेजी से कम हो रही है
इसके बाद अरब आक्रांताओं की वजह से काफी संख्या में पारसी आबादी किसी ऐसी जगह की तलाश में निकली, जहां वो अपने धर्म का आसानी से पालन कर सके. उनमें से एक टोली की खोज गुजरात आकर खत्म हुई. यहां पर उन्हें पारसी नाम मिला यानी पारस (पर्शिया) के लोग. वे यहीं बस गए, और यहां से भारत के दूसरे हिस्सों जैसे मुंबई और मप्र में भी फैलते गए. वैसे कथित तौर पर अपने सख्त नियम-कायदों के कारण उनकी आबादी लगातार कम हो रही है. साल 2011 में हुए सेंसस में उनकी आबादी 57, 264 रह गई.
वैसे फिलहाल ईरान में पारसियों की आबादी ठीक होने के बाद भी वहां उच्च पदों पर कम ही पारसी मूल के लोग नियुक्त हैं. सिर्फ माइनोरिटी के लिए आरक्षित पदों पर ही पारसी लोग नियुक्त किए जाते हैं. हालांकि हाल में ईरान को भारत के इस समुदाय से मिली मदद से हो सकता है, वहां की पारसी आबादी के साथ लोगों का रवैया ज्यादा बेहतर हो सके.
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FIRST PUBLISHED : May 10, 2020, 14:32 IST