कहते हैं इतिहास की कुछ घटनाएं कई बार बहुत समय बाद प्रासंगिक हो जाती हैं. एकाएक उनकी अहमित जाग जाती हैं. भले ही घटित हो समय घटना अजीब या बेकार लगे, लेकिन बाद में यही घटना सही साबित होती है. आज के युद्ध के माहौल में शायद 24 साल पहले भारत (India) ने जो राजस्थान के पोखरण में हुए परमाणु परीक्षण (Pokhran 2) किए थे, उनके साथ भी यही बात लागू हो रही है. क्या आज रूस युक्रेन युद्ध से बने वैश्विक हालात यही इशारा कर रहे हैं कि भारत का ऑपरेशन शक्ति करने का फैसला पूरी तरह से सही ही नहीं बल्कि जरूरी भी था.
किन हालात में हुआ था परीक्षण
उस समय भारत अल्पमत की सरकारों के दौर से गुजर रहा था. यानि भारतीय राजनीति राजनैतिक स्थायित्व की तलाश में था. कांग्रेस को चुनावों में दो चुनावों से बहुमत मिला नहीं था. और उसी साल फरवरी में भारतीय जनता पार्टी चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी तो बनी थी लेकिन उसके सरकार बनाने के लिए कई दलों का सहयोग लेना पड़ा था. फिर अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस की सरकार बनीं. वाजपेयी सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोपरी रखने का मन बनाकर आई थी.
और अंतरराष्ट्रीय जगत
13 मई 1998 को दोपहर बाद भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ऐलान किया कि देश ने परमाणु परीक्षण सफलता पूर्वक कर लिए हैं और भारत परमाणु सम्पन्न देशों में आ गया है. भारत के इस कदम की जहां देश में तारीफ हुई तो अंततराष्ट्रीय जगत में इसकी आलोचना भी हुई. अमेरिका, जापान, कनाडा, ने भारत की आलोचना करते हुए उस पर प्रतिबंध लगाए तो वहीं ब्रिटेन फ्रांस और रूस ने भारत की आलोचना नहीं की. हां रूस ने इस पर दुख जरूर जताया.
और पाकिस्तान का पहलू
भारत पर आरोप लगे कि उसके इस कदम परमाणु निरस्त्रीकरण के प्रयासों को गहरा धक्का पुहंचाया है. भारत के परीक्षण के एक महीने के भीतर ही पाकिस्तान ने भी दो परमाणु परीक्षण कर दिए. इससे भारत का यह दावा भी सही साबित हो गया कि पाकिस्तान चुपके से परमाणु हथियार विकसित कर रहा है. क्योंकि पाकिस्तान जैसे देश के लिए एक महीने में परमाणु परीक्षण की तैयारी करना संभव ही नहीं था. यानि वह इसके लिए पहले से ही तैयार था.
क्या थी दुनिया में भारत की स्थिति
वहीं भारत का उद्देश्य खुद की सुरक्षा को मजबूत करना था. चीन से उसे 1962 से ही खतरा था और यह खतरा बढ़ता जा रहा था. पाकिस्तान से भारत का तनाव भी जगजाहिर था. वहीं रूस से भारत की दोस्ती भी ऐसी नहीं थी कि रूस भारत का हर विपरीत परिस्थिति में साथ देता जबकि अमेरिका विश्व पटल पर खुद को एकमात्र नेता के तौर पर स्थापित करने में लगा था. ऐसे में भारत की बढ़ती शक्ति उसके लिए खतरा ही थी.
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सुरक्षा के मामले में अकेला है भारत
उस समय भारत रूस, फ्रांस आदि देशों ने भारत का विरोध नहीं किया तो भारत का साथ नहीं भी नहीं दिया था. अमेरिका भारत से नाराज पहले से ही था क्योंकि वह परमाणु अप्रसार संधि पर भारत को सहमत नहीं करा सका था. इस तरह से सुरक्षा के मामले में भारत अकेला रह गया था. जबकि पाकिस्तान के पास काफी पहले से परमाणु हथियार आ चुके थे. पहले खुद अमेरिका यह मानकर मुकर चुका था.
नई सदी की शुरुआत में खतरे
लेकिन भारत का यह फैसला बहुत सही था. इस बात के संकेत वैश्विकभावी गतिविधियों में ही छिपे थे. 2001 में इस्लामिक आंतकवाद की हमला तो अमेरिका ने झेला जिससे भारत की आंतकवाद की आशंकाएं सही साबित हुई. लेकिन इससे भारत को अमेरिका का साथ नहीं मिला. 2003 में जब अमेरिका ने इराक पर हमला किया तब भी यह कहा गया कि अच्छा ही हुआ कि भारत ने परमाणु परीक्षण कर लिया क्योंकि अगर इराक परमाणु सम्पन्न होता तो अमेरिका उस पर हमले की जुर्रत ना कर पाता.
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और रूस यूक्रेन युद्ध
लेकिन भारत का परमाणु शक्ति बनने का फैसला हाल के रूसयूक्रेन युद्ध में एक बार फिर चर्चा में हैं. विशेषज्ञों का साफ तौर पर कहना है कि अगर यूक्रेन के पास परमाणु हथियार होते तो रूस यूक्रेन पर हमला नहीं कर पाता. या यूक्रेन को नाटो का सदस्य बनने की जरूरत नहीं होती और रूस को उस पर हमला करने से पहले सौ बार सोचना पड़ता. लेकिन एक समय यूक्रेन के पास वाकई परमाणु हथियार थे.
कहां गए वो हथियार
1991 में सोवियत विघटन के बाद बहुत से परमाणु हथियार सोवियत संघ से यूक्रेन के पास आ गए और वह दुनिया का तीसरा ऐसा देश बन गया जिसके पास सबसे ज्यादा परमाणु हथियार थे. उसके पास पूर्व सोवियत संघ के एक तिहाई परमाणु हथियार थे. लेकिन 1994 को यूक्रेन ने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किए और अपने हथियार नष्ट कर दिए.
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आज कई लोगों का मानना है कि यूक्रेन के हाल को देखते हुए साफ होता है कि भारत का परमाणु शक्ति बनने का कदम कितना सही था और ऐसा ना करने पर भारत भी दुनिया की शक्तियों के बीच पिस सकता था. पिछले साल गलवान में हुए भारत चीन सीमाविवाद में चीन भारत पर उसकीपरमाणु शक्ति के कारण ही हावी नहीं हो सका था.
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