जलवायु परिवर्तन (Climate Change) मौसम के तरीकों, मात्रा और प्रभावों में तो बदलाव ला ही रहा है. अब जलवायु और मौसम (Whether) में नई तरह की परिघटनाएं भी देखने को मिल रही हैं. इसमें एक नई तरह की मौसमी स्थिति भी शामिल हैं जिसे दुनिया के एक हिस्से में खास तौर से देखा गया है. ये संकुचित, धीमी गति से चलने वाली, नमी से समृद्ध तूफान हैं जिन्हें शोधकर्ता वायुमंडलीय ताल (Atmospheric Lake) कह कर पुकार रहे हैं. वैज्ञानिकों ने पाया है कि इस तरह के ताल पश्चिमी हिंद महासागरों में देखने को मिलते हैं.
अफ्रीका की ओर जाते हैं
ये तूफान पश्चिमी हिंद माहसागरों से अफ्रीका की ओर जाते हैं. आमतौर पर तूफान एक वायुमंडलीय भंवर से बनते हैं. लेकिन ये ताल पानी की वाष्प के एक जगह पर जमा होने से बनते हैं और इतने घने होते हैं कि इनसे बारिश होती है. ये वायुमंडलीय ताल वायुमंडलीय नदियों की तरह होते हैं. ये नदियां घनी नमी की पतली पट्टी होती हैं.
छोटे और अलग होते हैं ये ताल
यह अध्ययन अमेरिकी जियोफिजकल यूनियन की साल 2021 की फॉल मीटिंग में प्रस्तुत किया गया था. इसके मुताबिक वायुमंडलीय ताल छोटे, धीमी गति से चलने वाले खुद को मौसमी तंत्र से अलग कर लेते हैं जिससे वे बनते हैं. ये भाप के निकाय कई बार पश्चिम से आते हुए अफ्रीकी तटों पर आते और अर्द्ध शुष्क इलाकों में बारिश कर जाते हैं.
धीमी गति वाली हवा के इलाको में
अध्ययन में बताया गया है कि भाप वाली वायुमंडलीय नदियों बारिश स्रोत से लेकर बारिश के तटीय क्षेत्र के पास तक जुड़ी होती हैं, वहीं ये पानी की भाप के ये टूटे हुए हिस्से अलग हो जाते हैं इसी लिए इन्हें वायमंडलीय ताल कहा जाता है. ये ताल भूमध्यरेखीय इलाकों में बनते हैं जहां हवा की गति बहुत ही कम होती है इसीलिए ये ताल कहीं जाने में जल्दबाजी दिखाते हुए नहीं दिखते हैं.
भूमध्य रेखा के पास के अलावा भी
पिछले पांच साल के मौसमी आंकड़ों से पता चलता है कि इस तरह का सबसे लंबे तूफान कुल 27 दिनों तक टिक पाया है. पिछले पांच सालों में छह दिन से लंबे समय तक टिकने वाली 17 वायुमंडलीय तालों को खोजा गया है जो भूमध्यरेखा से 10 डिग्री अक्षांश के अंदर मिले थे. ऐसा लगता है कि ये ताल दूसरे इलाकों में भी बन सकते हैं जहां ये कई बार उष्णकटिबंधीय चक्रवातों में बदल जाते होंगे.
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कैसे बनते हैं ये, सबसे बड़ा सवाल
इस परिघटना के अध्ययन के लिए अलग से ही एक टीम को लगा दिया गया है. शोधकर्ता यह जानने का प्रयास करेंगे कि ये ताल खुद को उस तंत्र सेअलग कैसे और क्यों कर लेते जिनसे ये बने होते हैं. संभावना जताई जा रही है क ऐसे वायुमंडलीय पवन स्वरूपों की वजह से होता है या फिर आंतरिक रूप से बनकर बहने वाली हवाओं की वजह से बनते हैं.
एक बार में बहुत पानी गिराते हैं ये ताल
शोधकर्ताओं का कहना है कि इसमें जलवायु परिवर्तन का पहलू अहम है क्योंकि यदि बढ़ते हुए तापमान का असर इन तालों पर हो रहा है, तो ये अफ्रीका के पूर्वी तटों के वर्षण को प्रभावित कर सकते हैं. यदि इन तालों का एक बार में वर्षण हो गया तो व एक किलोमीटर लंबे और कुछ सेमीमीटर की पानी गिरा देंगे जो बहुत अधिक मात्रा का पानी है.
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वैज्ञानिकों के इनके अध्ययन के लिए स्थानीय स्तर पर और विस्तार से जानकारी चाहिए. यह ऐसे इलाके में होते हैं जहां जानकारियां महीने में एक बार ली जाती है ना कि रोजाना. शायद इसी लिए इन तालों के बारे में अब तक ज्यादा जानकारी नही मिल सकी है.
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