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जन्मदिन: PM नरसिम्हा राव, नब्बे के दौर में जिनके सख्त फैसलों ने देश को घाटे से उबारा

नरसिम्हा राव को ठंडे आंकड़ों के लिए ही नहीं बल्कि कई भाषाओं की जानकारी के लिए भी जाना जाता है (File photo)

नरसिम्हा राव को ठंडे आंकड़ों के लिए ही नहीं बल्कि कई भाषाओं की जानकारी के लिए भी जाना जाता है (File photo)

17 भाषाओं के जानकार पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव (former prime minister PV Narasimha Rao) के दौर को आर्थिक उदार ...अधिक पढ़ें

    देश में आर्थिक सुधारों का बड़ा श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव (Former Prime Minister PV Narsimha Rao) को दिया जाता है. अपने कार्यकाल में राव ने कई ऐतिहासिक फैसले किए, ताकि देश गरीबी से बाहर आ सके. बता दें कि वो ऐसा दौर था, जब देश को अपना सोना तक विदेशों में गिरवी रखना पड़ा था. इसके बाद राव ने देसी बाजार को खोल दिया था, जो उस दौर में तो आलोचना का शिकार हुआ, लेकिन आज जिसकी बदौलत हम टॉप देशों में हैं.

    ये वो समय था, जब हमारे पास विदेशी मुद्रा भंडार खत्म था
    तब केवल 2500 करोड़ रुपए का भंडार था, जो बमुश्किल 3 महीने तक चलता. ये तो हुआ राजनैतिक पहलू लेकिन इसका असर आम आदमी पर भी था. कंपनियां कम थीं और निजी नौकरियां थी ही नहीं. सरकारी दफ्तरों में काम मिले तो मिले, वरना पढ़े-लिखे लोग भी बेरोजगार रहते. अपने बिजनेस के लिए आसानी से न तो लाइसेंस मिलता और न ही बैंक लोन देने को तैयार रहते. इस दौर में पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने.

    राव का पीएम बनना भी काफी भूचालों के बाद तय हुआ
    साल 1991 की मई में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का एक बम विस्फोट में निधन हो गया. इसके बाद पीएम पद पर कौन बैठे, इसे लेकर काफी झमेला हुआ था. बाद में कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं के कहने पर राव को सत्ता मिली. हालांकि ये दौर सत्ता सुख भोगने नहीं, बल्कि कई सारी चुनौतियों से भरा हुआ था.

    pv narasimha rao birthday
    नरसिम्हा राव का पीएम बनना भी काफी भूचालों के बाद तय हुआ


    राव और सिंह की जोड़ी 
    नरसिम्हा राव ने तत्कालीन वित्तमंत्री और बेहद शानदार अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह के साथ काम शुरू किया. ग्लोबल कंपनियों के लिए भारत का बाजार खोल दिया गया. इससे विदेशी कंपनियां देश आने लगीं. इससे न केवल औद्योगिकीकरण को बढ़ावा मिला, बल्कि लोगों के लिए रोजगार भी जुटने लगा. इससे संपन्ना आने लगी.

    बढ़ता गया विदेशी भंडार 
    राजकोषीय घाटे को कम करना राव और मनमोहन की जोड़ी का बड़ा लक्ष्य था. राव ने कई सख्त फैसले लिए. शुरुआत में अखरने वाले वित्तीय फैसलों का असर अच्छा रहा. विदेशी भंडार भरने लगा. अगर आज की बात करें तो हमारा विदेशी राजकोष लगभग 600 अरब डॉलर है. ये लगभग डेढ़ साल के लिए काफी है, वो भी ऐसे समय में, जब कोरोना के कारण ज्यादातर अमीर देशों की भी इकनॉमी भरभरा रही है.

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    घोटालों का भी आरोप लगता रहा 
    वैश्विक इकनॉमी में भारत को बड़ा हिस्सा बनाने वाले राव के साथ कई आलोचनाएं भी जुड़ीं. जैसे स्टॉक मार्केट स्कैम में घिरे हर्षद मेहता ने आरोप लगाया कि उन्होंने पीएम को 1 करोड़ की रिश्वत दी थी. सूटकेस घोटाले के नाम से भी जाने जाते इस स्कैम के बाद राव पर शक की ढेरों अंगुलियां भी उठीं लेकिन सीबीआई ने जांच में इस आरोप को बेबुनियाद कहते हुए राव को क्लीन चिट दे दी थी. साल 1996 में तो एक के बाद एक कई घोटालों की बात चल पड़ी. हालांकि कुछ साबित नहीं हुआ लेकिन ये जरूर हुआ कि उस दौर के साथ घोटालों की भी धमक सुनाई देती है.

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    वैश्विक इकनॉमी में भारत को बड़ा हिस्सा बनाने वाले राव के साथ कई आलोचनाएं भी लगी रहीं


    भाषाएं सीखने का था जुनून
    नरसिम्हा राव को वैसे ठंडे आंकड़ों के लिए ही नहीं बल्कि कई भाषाओं की जानकारी के लिए भी जाना जाता है. कहा जाता है कि उन्हें कुल 17 भाषाएं आती थीं. इनमें भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेजी, स्पेनिश, जर्मन, ग्रीक, लैटिन, फारसी और फ्रांसीसी भाषा भी है. इतनी भाषाएं अब तक देश के किसी प्रधानमंत्री को नहीं आतीं.

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    कांग्रेस ने राव को महत्व नहीं दिया
    बड़े फैसले लेकर देश को आर्थिक तौर पर मजबूत बनाने वाले राव को अपनी ही पार्टी कांग्रेस में खास तवज्जो नहीं मिली. प्रधानमंत्रित्व काल के बाद कांग्रेस पार्टी ने उनसे किनारा कर लिया. खुद राव ने भी  10 जनपथ जाना लगभग बंद कर दिया था. साल 2004 में राव की मृत्यु के बाद कांग्रेस कमेटी के बाहर ही उनका शव रखा गया, न कि उसे अंदर रखने की इजाजत मिली. मृत्यु के बाद भी कांग्रेस ने अपनी कोई उपलब्धि गिनाते हुए राव का कभी जिक्र नहीं किया.

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    सोनिया गांधी ने बीते साल पहली ही बार राव को सार्वजनिक तौर पर याद करते हुए उनकी तारीफ की


    क्यों सोनिया गांधी ने राव पर लंबी चुप्पी साध रखी थी
    सोनिया ने बीते साल पहली ही बार राव को सार्वजनिक तौर पर याद करते हुए उनकी तारीफ की थी. कांग्रेस की आलाकमान और राव के रिश्ते सहज न होने की बात हमेशा हुई. माना जाता है कि सोनिया गांधी राजीव गांधी की हत्या की जांच को धीमा मानती थीं और इसकी नाराजगी वे राव पर उतारती थीं.

    किताब में है दोनों के बीच तनाव का जिक्र 
    इस बात का जिक्र कांग्रेस नेता केवी थॉमस ने अपनी किताब में भी किया है. 'सोनिया- द बीलव्ड ऑफ द मासेज' नाम की किताब में थॉमस ने लिखा है कि सोनिया और राव के बीच रिश्ते नॉर्मल नहीं थे. यहां तक कि राव ने कई बार उनसे शिकायत की थी कि सोनिया उनका अपमान करती हैं. कई बार 10 जनपथ में बुलाकर राव को काफी लंबा इंतजार करवाया जाता था.

    सेहत पर हुआ बुरा असर 
    थॉमस ने अपनी किताब में ये भी लिखा है कि राव ने खुद कहा था कि बार-बार जाकर इंतजार करना आत्मसम्मान पर चोट है और इसका असर उनकी सेहत पर हो रहा है. राव के कार्यकाल में रथयात्रा और बाबरी मस्जिद विवाद ने सिर उठाया. इसे लेकर भी पार्टी आलाकमान राव को आड़े हाथ लेता रहा. साल 1996 के चुनावों में कांग्रेस को भारी हार का सामना करना पड़ा. इसके लिए भी पार्टी आलाकमान ने राव को दोषी माना. इसके बाद से कथित तौर पर राव ने खुद भी पार्टी से दूरी बरतनी शुरू कर दी.

    Tags: BJP Congress, Congress, Rahul gandhi, Sonia Gandhi

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