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बड़े पदों पर रहकर भी समाज सेविका ही रहीं राजकुमारी अमृत कौर, गांधीजी की परीक्षा में हुई थीं पास

राजकुमारी अमृत कौर (Rajkumari Amrit Kaur) देश की पहली महिला कैबिनेट मंत्री थीं. (तस्वीर: Wikimedia Commons)

राजकुमारी अमृत कौर (Rajkumari Amrit Kaur) देश की पहली महिला कैबिनेट मंत्री थीं. (तस्वीर: Wikimedia Commons)

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम (Indian Freedom Movement) और आजादी के बाद के शुरुआती सालों में देश में राजकुमारी अमृत कौर (Ra ...अधिक पढ़ें

हाइलाइट्स

राजकुमारी अमृत कौर स्वतंत्रता सेनानी बनने से पहले ही समाज सेवा करती थीं.
महिलाओं के लिए उत्थान के लिए उन्होंने विशेष रूप से कार्य किए.
उनके कार्यों की दायरा देश से बाहर भी रहा जिससे विदेशों में भी उनकी कीर्ती फैली.

बात साल 1909 की है.  भारत (India) पंजाब में कपूरथला के राजा सर हरनाम सिंह के परिवार को अंग्रेजों ने सपरिवार पार्टी में आमंत्रित किया था जिसमें उनकी 20 साल की बेटी भी गईं जो हाल ही में इंग्लैंड से पढ़ाई पूरी कर लौटी थीं.  उस पार्टी  में एक अंग्रेज अफसर ने उन्हें अपने साथ डांस के लिए आमंत्रित किया, लेकिन राजा हरनाम सिंह की बेटी ने मना कर दिया जिसपर वह इनकार अंग्रेज अफसर इतना नाराज हो गया कि वह गुस्से यह कह गया कि भारतीयों को कभी आजादी freedom for India) नहीं देनी चाहिए, वे बिगड़ गए हैं. देशवासियों के लिए ऐसी बात सुनकर राजा हरनाम की बेटी बहुत आहत हुईं उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन में शामिल होने का फैसला कर लिया. ये कोई और नहीं राजकुमारी अमृत कौर (Rajkumari Amrit kaur) थीं जिनकी देश सेवा को कभी भुलाना नहीं जा सकता है.

पिता ने अपनाया था ईसाई धर्म
राजकुमारी अमृत कौर का जन्म 2 फरवरी 1889 को उत्तर प्रदेश के लखनऊ में को हुआ था. उनकी माता का नाम रानी हरनाम सिंह था. वे अपने सात भाईयों में अकेली बहन थीं. राजा हरनाम सिंह ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था. राजकुमारी की ऑक्सफोर्ड ले लौटने के बाद स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेना आसान नहीं था.

गांधी जी की परीक्षा
गोपाल कृष्ण गोखले से राजकुमारी के परिवार के अच्छे संबंध से थे. उन्हीं के जरिए राजकुमारी की जलियांवाला बांग नरसंहार के बाद महात्मा गांधी से जालंधर में मुलाकात हुई जिनसे उन्होंने अपनी इच्छा जताई. गांधी जी ने उनके सेवाभाव की परीक्षा लेते हुए उन्हें सेवाग्राम आश्रम में हरिजनों की सेवा करना और साफ सफाई का काम दिया.

गांधी जी के साथ
इस जिम्मेदारी को अमृत कौर ने अच्छे सेवाभाव से निभाया और गांधी जी की परीक्षा में कामयाब रहीं.  उनका यह सेवाभाव हमेशा ही कायम रहा. वे गांधी जी की शिष्या बन गईं और लगातार  16 साल तक उनकी सचिव रहीं. सरोजनी नायडू के साथ मिलकर उन्होंने ऑल इंडिया वुमन कांफ्रेंस की स्थापना की.

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राजकुमारी अमृत कौर 16 साल तक गांधी जी (Mahatma Gandhi) की सचिव रही थीं. (तस्वीर: Wikimedia Commons)

आजादी की लड़ाई में जेल
1930 में गांधी जी की दांडी यात्रा के दौरान वे जेल गईं और उसके बाद भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 1942 में अंग्रेजों ने उन पर देशद्रोह के आरोप में जेल में डाल दिया. अंबाला जेल में उनकी तबीयत काफी बिगड़ गई जिसके बाद अंग्रेजों ने उन्हें शिमला के मैनोर्विल हवेली में तीन साल के लिए नजरबंद कर दिया.

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केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री
राजकुमारी अमृत कौर पहली भारतीय महिला थीं, जिन्हें केंद्रीय कैबिनेट मंत्री बनने का मौका मिला था. इसके लिए खुद गांधी जी ने उनकी अनुशंसा की थी. जिसके बाद  वे पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में गठित पहले मंत्रिमंडल में वे शामिल हुईं  और 1957 तक स्वास्थ्‍य मंत्री के पद पर बखूबी कार्य किया और समाज सेवा को नए आयाम देती रहीं.

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राजकुमारी अमृत कौर (Rajkumari Amrit Kaur) ने कभी भी समाज सेवा का जज्बा नहीं छोड़ा. (तस्वीर: Wikimedia Commons)

एम्स के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयास भी
स्वास्थ्य के क्षेत्र में उन्होंने उल्लेखनीय काम किया. 1950 में उन्हें ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ का अध्यक्ष भी बनाया गया. ऐसा सम्मान हासिल करने वाली वे पहली महिला होने के साथ ही पहली एशियाई भी थीं. इसके बाद दिल्ली के आज के प्रतिष्ठित एम्स की स्थापना में भी उनकी बहुत अहम भूमिका रही. इसके निर्माण के लिए उन्होंने ऑस्ट्रेलिया, पश्चिम जर्मनी, स्वीडन, न्यूजीलैंड,  और अमरीका से मदद हासिल की थी.

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राजकुमारी अमृत कौर ने महिलाओं और हरिजनों के लिए कई कल्याणकारी कार्य किए. बाल विवाह और पर्दा प्रथा को लड़कियों की शिक्षा के लिए बहुत बड़ी बाधा मानती थीं. वे शिक्षा को निःशुल्क और अनिवार्य बनाना चाहती थीं. सच तो यह है कि राजनीति और स्वतंत्रता आंदोलन में आने से पहली ही वे समाज सेवा शुरू कर चुकी थीं और जीवन पर्यंत तमाम पदों पर रहते हुए भी उन्होंने अपनी इस सेवाभाव को नहीं छोड़ा.

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