इमरान खान के कार्यकाल में बड़ी तेजी से सैन्य अधिकारी सरकारी पदों पर आए- सांकेतिक फोटो
पाकिस्तान में सेना के सरकार चलाने की बात नई नहीं. फिलहाल वहां लोकतंत्र तो है लेकिन इमरान खान के कार्यकाल में बड़ी तेजी से सैन्य अधिकारी सरकारी पदों पर आए हैं. फिलहाल देश के अहम पदों पर सेना का कब्जा है, जिसमें हवाई सेवा, ऊर्जा नियंत्रक और राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान जैसे पद शामिल हैं. आखिर क्या वजह है जो सेना सिविल पदों पर आ रही है? यहां समझिए.
सेना का कब्जा बढ़ा
पाकिस्तान के इतिहास में सेना अक्सर ही राष्ट्रीय नेतृत्व में रहती आई. बीते समय में इसमें विराम तो आया लेकिन अब एक नया ट्रेंड दिख रहा है. साल 2018 में इमरान सरकार के सत्ता में आने के बाद से सैन्य अधिकारी तेजी से सिविल पदों पर कब्जा कर रहे हैं.
हाई कोर्ट ने किया तलब
हाल ही में सेना के पूर्व ब्रिगेडियर बिलाल सैदुल्लाह खान को नेशनल डाटाबेस एंड रजिस्ट्रेशन अथॉरिटी में डायरेक्टर जनरल का पद मिला. इसके बाद से इस ट्रेंड पर खूब गौर किया जा रहा है. बीते गुरुवार को इस्लामाबाद हाई कोर्ट ने इन जनाब की नियुक्ति को लेकर विभाग से जवाब भी मांगा.
किन पदों पर है कौन
दो सालों में सरकारी पदों पर सेना का कब्जा हुआ है, जो अब तक नागरिकों के हाथ में थे. साल 2019 में जनरल असीम बाजवा की नियुक्ति चीन पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर के लिए चेयरमैन बतौर हुई. एयर मार्शल अरशद मलिक पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइन्स के प्रमुख हो चुके हैं. ऐसे कई पद हैं, जो धड़ाधड़ सेना के कब्जे में जा चुके हैं. यहां तक के विदेशों के लिए राजदूत के तौर पर भी सेना के अफसर आ रहे हैं. बता दें कि भारत विभाजन के बाद से राजदूत के तौर पर नागरिकों की ही नियुक्ति होती रही है.
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तब ये नया ट्रेंड क्यों दिख रहा है
विपक्ष लगातार इमरान खान पर इसे लेकर हमलावर है. उसका आरोप है कि खान का सत्ता में आना ही सेना की मर्जी से हुआ और अब उन्हें अहम पद देकर उन्हें इसका बदला चुका रहे हैं. माना जाता है कि सेना ने ही साल 2018 में इमरान को जीत दिलाई थी, हालांकि इमरान और सेना प्रमुख दोनों ही इस बात को अफवाह बताते रहे.
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सेना को है फ्री-हैंड
इस बीच इमरान की पार्टी के आने के बाद से एक के बाद सेना प्रमुख सिविल पदों पर दिखने लगे. इससे इन अफवाहों को दोबारा बल मिला. माना जा रहा है कि इमरान और सेना का ये मिला-जुला खेल है. इससे देश के लोगों को भी लोकतंत्र का भ्रम बना हुआ है. देश की छवि भी सैन्य राष्ट्र की तरह खराब नहीं हो रही. और सेना को भी इमरान सरकार के तहत फ्री-हैंड मिला हुआ है. वे मनमुताबिक पदों पर आ रहे हैं.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
इस बारे में डीडब्ल्यू में बात की गई है. इस मीडिया से बात करते हुए कराची के एक राजनैतिक विश्लेषक तौसीफ अहमद खान कहते हैं कि इमरान दरअसल और कुछ नहीं, बल्कि सेना का ही नागरिक चेहरा हैं. इमरान सत्ता में बने रहने के लिए सेना की मदद ले रहे हैं और बदले में सेना को मनमाने सरकारी पद हड़पने की छूट दे चुके.
घरेलू नीतियों में भी सेना की पैठ
साल 1947 में भारत विभाजन के बाद अपने निर्माण से लेकर अब तक पाकिस्तान में 34 साल सैन्य शासन रहा. तीन अलग-अलग हिस्सों में पाक सेना के मिलिट्री जनरलों ने देश को संभाला. लेकिन तब सेना सबसे मजबूत होने के बाद भी केवल रक्षा और विदेश नीति पर कंट्रोल कर पाती थी. अब सैन्य अधिकार बढ़ गए हैं. वे हवाई सेवा से लेकर सेहत जैसे विभागों तक में घुसपैठ बना चुके. यानी घरेलू नीतियों में भी आ चुके हैं. ये सेना के लिए दोहरा फायदा है.
क्या तर्क है इमरान खान का
इधर बार-बार सवाल उठने पर इमरान सरकार ने मिलिट्री नियुक्तियों को जायज छहराया. उनका कहना है कि नेता और ब्यूरोक्रेट भ्रष्ट हो सकते हैं लेकिन सेना नहीं. यही देखते हुए वे योग्यता और ईमानदारी के आधार पर सेना को सिविल पद दे रहे हैं. इमरान की ये बात कुछ हद तक सही भी है. पिछले एक साल में National Accountability Bureau ने कई जांचें कीं, जिसमें सिविल ब्यूरोक्रेट्स को करप्शन में लिप्त पाया. हालांकि इससे इमरान के सेना को फायदा देने की बात खत्म नहीं होती है.
बिजनेस में भी सेना ने डाला हाथ
एक ओर सेना सभी अहम सरकारी पदों पर कब्जा कर रही है तो दूसरी ओर उसके पास देश के सबसे मुनाफा देने वाले सभी बिजनेस में शेयर हैं. यहां तक कि पाकिस्तानी आर्मी पूरी तरह से कॉर्पोरेट आर्मी में बदल चुकी है. क्वार्ट्ज.कॉम के अनुसार ये आर्मी साल 2016 में ही 50 से ज्यादा व्यापारिक संस्थानों की मालिक बन चुकी थी, जिसकी कीमत 20 बिलियन डॉलर से भी कहीं ज्यादा थी. ये कीमत अब और ऊपर जा चुकी है. पेट्रोल पंप, इंडस्ट्रिअल प्लांट, बैंक, स्कूल-यूनिवर्सिटी, दूध से जुड़े उद्योग, सीमेंट प्लांट और यहां तक कि सबसे ज्यादा मुनाफा देने वाली बेकरीज भी सेना के हिस्से हैं. देश के आठ बड़े शहरों में हाउसिंग प्रॉपर्टी में भी सेना का सबसे बड़ा शेयर है.
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चैरिटी के नाम पर किया बिजनेस
पाकिस्तानी सेना के हिस्से में आए ज्यादातर बिजनेस चैरिटी के नाम पर चलते हैं और उनकी टैग लाइन में कहीं न कहीं इसका जिक्र रहता है कि ये सेना द्वारा चल रहे हैं इसलिए ज्यादा ईमानदारी से काम करते हैं. सीधे सेना के जनरल इन उद्योगों से जुड़ते हैं ताकि शक की कोई गुंजाइश न रहे.
मुनाफा दिखाने से बचती है सेना
देश में सबसे अमीर बिजनेस समूह होने के बाद भी सेना ने मुनाफे दिखाने में अपारदर्शिता दिखाई. डेलीओ.इन के अनुसार इस बात का कोई पक्का डाटा नहीं है कि सेना को बिजनेस से कितना मुनाफा हो रहा है. साल 2007 में सैन्य मामले की जानकार डॉ आयशा सिद्दीका ने कहा था कि आर्मी के पास 20 बिलियन डॉलर से ज्यादा कीमत का बिजनेस है. यही डाटा साल 2016 में पाकिस्तानी संसद ने भी दिया. इससे साफ है कि कॉर्पोरेट में बदल चुकी पाक सेना बिजनेस प्रॉफिट छिपाकर रखना चाहती है.
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