अपने साथी देशों की नाराजगी का खतरा लेकर भी अमेरिका ईरान पर पाबंदियां (America reimposes restrictions on Iran) हटाने को तैयार नहीं. बता दें कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने ईरान पर यूनाइटेड नेशन्स के लगाए प्रतिबंधों को रिन्यू करने का एलान कर दिया है. हालांकि वो इसमें अलग-थलग पड़ गए हैं क्योंकि यूएन के उनके मित्र देश भी पाबंदी हटाने के पक्ष में हैं. ट्रंप का तर्क है कि ईरान साल 2015 में हुए परमाणु समझौते का पालन नहीं कर रहा और इसलिए पाबंदी जरूरी है. इधर ईरान भी अमेरिका का खुला विरोध कर रहा है और जब मौका मिले, उसके खिलाफ जाने का एलान तक कर चुका. जानिए, आखिर क्या है अमेरिका और ईरान में दुश्मनी की वजह.
पहले थे अच्छे संबंध
पहले अमेरिका और ईरान के बीच अच्छे संबंध थे. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद दोनों के बीच तनाव की शुरुआत तेल को लेकर हुई. ईरान में भारी मात्रा में कच्चे तेल का भंडार मिला. इसे पाने के लिए अमेरिका और ब्रिटेन ने ईरान में अपनी पसंद की सरकार लानी चाही. वहीं ईरानी जनता की अपनी पसंद थी.
अमेरिका ने थोपी पसंद
ये देखते हुए साल 1953 में अमेरिका ने ब्रिटेन के साथ मिलकर ईरान में तख्तापलट दिया. जनता के चुने पीएम को हटाकर अमेरिका ने अपनी पसंद के शाह रजा पहलवी को सत्ता दे दी. दूसरे विश्व युद्ध के बाद ये पहला मौका था, जब अमेरिका ने अपनी ताकत के दम पर ईरानी सत्ता में सीधा दखल दिया.

अमेरिका ने अपनी ताकत के दम पर ईरानी सत्ता में सीधा दखल दिया
ईरान में क्रांति
अमेरिका के अपना नेता थोपने पर ईरानी जनता के भीतर गुस्सा उबलता रहा. आखिरकार इसे उसकी पसंद के नेताओं का साथ मिला और इसके साथ ही ईरान में क्रांति हो गई. आयतोल्लाह रुहोल्लाह खौमेनी बागी दल के अगुआ थे. उन्होंने अमेरिका की चुनी हुई सरकार के रहते हुए ही अपनी सरकार खड़ी कर दी. इस तरह से से ईरान में एक ही वक्त में दो प्रधानमंत्री हो गए.
लड़ाई में ईरानी जनता की जीत
ईरानी सेना खुद बागी नेता खौमेनी के साथ थी. आखिरकार ईरान में युद्ध हुआ, जो असल में अमेरिका और ईरान के बीच युद्ध था लेकिन दिखाई ये गृहयुद्ध की तरह दे रहा था. वो नेता हार गया, जिसे अमेरिका का सपोर्ट मिला हुआ था. और आयतोल्लाह रुहोल्लाह खौमेनी की जीत हुई.
बना इस्लामिक देश
साल 1979 में हुई इस लड़ाई के बाद ईरान एक इस्लामिक गणतंत्र हो गया. इसके बाद से ही वो ज्यादा रूढ़िवादी होता गया. खौमेनी की सरकार ने अमेरिका की किसी भी बात को मानने से इनकार कर दिया और पक्की कट्टरवादी सरकार बन गई. इस तरह अमेरिका से उसके संबंध खराब ही होते चले गए.

अमेरिका ईरान पर पाबंदियां हटाने को तैयार नहीं
अमेरिका ने दिया इराक का साथ
ये संबंध और बिगड़े, जब इराक और ईरान की लड़ाई में अमेरिका ने इराक का साथ दिया. ये साल 1980 की घटना है. लड़ाई लगभग 8 सालों तक चली. लेकिन अमेरिकी साथ के बाद भी इराक हारा और ईरान सबपर भारी पड़ा. इससे अमेरिका और ईरान के बीच खटास और बढ़ी.
परमाणु हथियार बनाने की शुरुआत
युद्ध में ईरान को भी भारी नुकसान हुआ था. अमेरिका और पश्चिमी देशों को हरदम अपने खिलाफ खड़ा देखकर उसने खुद को परमाणु हथियारों से लैस करने की मुहिम छेड़ दी. साल 2002 में पहली बार ईरान के परमाणु कार्यक्रम की भनक दुनिया को लगी. तब अमेरिका और भड़क गया. उसने दूसरे यूरोपियन देशों से बात करके ईरान पर व्यापारिक पाबंदियां लगा दीं.
क्या है प्रतिबंध
इसके तहत ईरान के साथ हथियार का व्यापार नहीं हो सकता है. खासकर वो हेलीकॉप्टर और फाइटर मिसाइलें नहीं खरीद सकता. कोई भी देश उसकी मदद करेगा तो उसे भी प्रतिबंधों का सामना करना होगा. साथ ही साथ पाबंदी के तहत ईरान के परमाणु कार्यक्रम में शामिल सभी वैज्ञानिकों के आने-जाने पर रोक है. यहां तक कि उनकी संपत्ति भी फ्रीज हो चुकी है.

ईरानी जनरल सुलेमानी की अमरीकी हमले में मौत के बाद से ईरान खुलकर गुस्सा दिखा रहा है
ओबामा की अगुवाई में सुलह
साल 2015 में ईरान ने परमाणु कार्यक्रमों को रोकने का वादा किया. बदले में संयुक्त राष्ट्र ने साल 2018 में उसपर लगी पाबंदियां हटाने का वादा दिया था. इस समझौते को ज्वाइंट कम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन (जेसीपीओए) कहा गया. तब ओबामा सरकार थी. साल 2017 में ट्रंप ने आते ही प्रतिबंध हटाने से मना कर दिया और उसे अक्टूबर 2020 तक बढ़ा दिया.
ट्रंप ने किया खारिज
अब ये प्रतिबंध इस महीने के बीतने के साथ खत्म होने को हैं. इसके बाद भी ट्रंप इसके लिए राजी नहीं. यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 15 सदस्यों में से 13 सदस्य ट्रंप की जिद को अमान्य ठहरा रहे हैं. यूरोपियन यूनियन ने शांति की बात करते हुए ईरान पर से पाबंदियां हटाने की बात की लेकिन ट्रंप ने इसे खारिज कर दिया. यानी ये भी हो सकता है कि अमेरिका एकतरफा पाबंदी लगाए रखे.
सुलेमानी की मौत से ईरान में बढ़ी अमेरिकी नफरत
दूसरी ओर ईरान भी अमेरिका से चिढ़ा हुआ है. खासकर जनरल सुलेमानी की अमरीकी हमले में मौत के बाद से ये देश परमाणु हथियारों बनाने में तेजी ला चुका है. यहां तक कि वो साल 2015 में हुए समझौते को भी नजरअंदाज कर रहा है. उसका खुला एलान है कि मौका मिलने पर वे अमेरिका से अपने जनरल की मौत का बदला लेंगे.
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Tags: America, Donald Trump, Iran
FIRST PUBLISHED : September 22, 2020, 13:12 IST