लाखों की तादात में रोहिंग्या मुसलमानों ने म्यांमार छोड़कर पड़ोसी राज्य बांग्लादेश की शरण ली. हालांकि यहां भी वे सुरक्षित नहीं रह सके. अब बांग्लादेश सरकार खुद बड़ी संख्या में रोहिंग्याओं को एक निर्जन द्वीप पर भेज रही है. सरकार का तर्क है कि वो आबादी के सही बंटवारे के लिए ऐसा कर रही है. और साथ ही वो शरणार्थियों की अनुमति लेकर ये कदम उठा रही है. वहीं रोहिंग्याओं का कहना है कि आबादीशून्य द्वीप में जाने के लिए वे कतई तैयार नहीं.
बांग्लादेशी सरकार म्यांमार से भागे हुए रोहिंग्याओं की राहत के नाम पर उन्हें भाषण चार (Bhasan Char) द्वीप भेजने लगी है. सरकार का मकसद लगभग एक लाख लोगों को वहां बसाना है. इसके लिए द्वीप पर एक छोटा शहर बनाया गया. इसमें बाजार, स्कूल और मस्जिद भी हैं. इसके लिए सरकार ने वहां कथित तौर पर 270 डॉलर मिलियन खर्च किए.

लाल रंग की छतों से ढंका ये द्वीप तस्वीरों में तो काफी खूबसूरत दिखता है लेकिन असल में ऐसा है नहीं- (Photo-news18 English)
द्वीप पर लगभग 1 लाख लोग रह सकते हैं. इसके लिए यहां 120 शेल्टर बनाए गए हैं. हर शेल्टर यानी इमारत में 800 से 1000 लोग बसाए जाएंगे. और हरेक परिवार के लिए 12 फुट से 14 फुट की जगह होगी, जिसमें सोने के लिए बंक बेड यानी एक के ऊपर एक वाले बिस्तर भी लगाए जा चुके हैं.
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एक जैसी लाल रंग की छतों से ढंका ये द्वीप तस्वीरों में तो काफी खूबसूरत दिखता है लेकिन असल में ऐसा है नहीं. भाषण चार नाम का समुद्र से घिरा ये हिस्सा एकदम सूना है. बंगाल की खाड़ी में बसा ये द्वीप लगातार बाढ़ और साइक्लोन जैसी समुद्री आपदाओं में रहता आया है. यही कारण है कि द्वीप पर कभी कोई नहीं बसा. लेकिन अब बांग्लादेश के शरणार्थी कैंपों से लाकर रोंहिग्याओं को वहां छोड़ा जा रहा है.
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ज्यादातर शरणार्थी कॉक्स बाजार (Cox's Bazar) से हैं, जहां रोहिंग्या बसे हुए हैं. इस इलाके में बीते कुछ समय से मानव तस्करी जैसे मामले भी आने लगे. अब सरकार ने लगभग छुटकारा पाने की तर्ज पर इन लोगों को निर्जन द्वीप पर भेजना शुरू कर दिया है. ये द्वीप बांग्लादेश के तटीय इलाकों से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर है.

ज्यादातर शरणार्थी कॉक्स बाजार से हैं, जहां रोहिंग्या बसे हुए हैं (Photo-news18 English via AP)
द्वीप के बारे में सबसे खतरनाक बात ये है कि इसे अस्तित्व में आए लगभग 15 साल ही हुए हैं. तब बंगाल की खाड़ी से ये रेतीला टुकड़ा ऊपर आने लगा था. अब भी ये समुद्र तल से केवल 6 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और लगातार बाढ़ और तूफानों से घिरा रहता है. ऐसे में अनुमान ही लगाया जा सकता है कि द्वीप पर लोग कैसे रह पाएंगे. कभी भी किसी विनाशकारी तूफान में जानें जा सकती हैं. या ये भी हो सकता है कि समुद्र से इतनी कम ऊंचाई पर स्थित पूरा द्वीप समुद्र में समा जाए.
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इसके बाद भी बांग्लादेशी सरकार लगातार द्वीप पर रोहिंग्याओं को बसाने के अपने फैसले की वकालत करती दिखी. मानवाधिकार समूहों और इंटरनेशनल संस्थाओं के बार-बार कहने पर भी ये तर्क दिया गया कि बांग्लादेश के भीतर कॉक्स कैंप में रोहिंग्याओं की आबादी काफी ज्यादा है. ऐसे में उनपर नजर रखना आसान काम नहीं. कैंप में बढ़ते नशे और मानव तस्करी जैसे मामलों का हवाला देते हुए सरकार ने कह दिया कि ये और रोहिंग्याओं के लिए सेफ नहीं, लिहाजा उन्हें द्वीप पर भेजा जा रहा है.

बंगाल की खाड़ी में बसा ये द्वीप लगातार बाढ़ और साइक्लोन जैसी समुद्री आपदाओं में रहता आया है- सांकेतिक फोटो
इस बीच ये भी समझ लेते हैं कि आखिर शांतिप्रिय माने जाने वाले बौद्धों के देश म्यांमार से रोहिंग्या क्यों भागने लगे. घटना की शुरुआत साल 2012 में हुई. युवा बौद्ध महिला के बलात्कार और हत्या का आरोप रोहिंग्या मुसलमानों पर लगा. इसके बाद से दोनों धर्मों के बीच तनाव बढ़ने लगा.
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इसी दौरान बांग्लादेश से सटे रखाइन प्रांत में दोनों के बीच हिंसक टकराव हुआ, जिसमें रोहिंग्याओं का भारी नुकसान हुआ. इसके बाद से टकराव लगातार बना रहा और रोहिंग्या नदी के रास्ते बांग्लादेश जाते रहे. इसके अलावा वे मलेशिया और भारत की ओरर भी आए. फिलहाल खुद संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि रोहिंग्या दुनिया के सबसे सताए हुए अल्पसंख्यक हैं.
दूसरी तरफ म्यांमार सरकार अपने देश में हुई हिंसा से इनकार करती है. उसका कहना है कि सेना सिर्फ रोहिंग्या चरमपंथियों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है.
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Tags: Bangladesh, Myanmar, Refugee camp, Rohingya
FIRST PUBLISHED : December 06, 2020, 08:45 IST