नेपाल के आखिरी राजा ज्ञानेंद्र के दोबारा गद्दी संभालने की अटकलें लग रही हैं.
नेपाल में राजशाही की मांग को लेकर लोग सड़कों पर उतर आए हैं. इसी सिलसिले में 5 दिसंबर को हजारों की संख्या में लोगों ने प्रदर्शन करते हुए ओली सरकार को हटाने और राजशाही दोबारा कायम करने की मांग की. इस सालभर में मौजूदा सरकार के खिलाफ विरोध जिस तरह से गहराया है, उसमें मुमकिन है कि ऐसा हो भी जाए. तब नेपाल के राजगद्दी के वारिस ज्ञानेंद्र दोबारा राजा हो सकते हैं.
बांटी जा रही राजा के नाम की टीशर्ट
साल 2008 में नेपाल में राजशाही का आधिकारिक अंत हुआ था और ज्ञानेंद्र को अपदस्थ करते हुए देश को गणतंत्र घोषित कर दिया गया. हालांकि इस पूरे दौरान बीच-बीच में राजशाही के दोबारा लौटने की अटकलें लगती रहीं लेकिन मुख्यधारा की पार्टियों ने ऐसा होने नहीं दिया. अब दोबारा यही बात काफी जोरशोर से कही जा रही है और इस बार खुद आम लोग सड़कों पर ये मांग लेकर उतरे हैं.
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हालात यहां तक हैं कि सड़कों पर राजा ज्ञानेंद्र और महारानी कोमल की तस्वीर वाली टी-शर्ट भी बांटी जा रही है. और नेपाल का पुराना राष्ट्रगान (राजशाही के दौरान) गाया जा रहा है.
बदलते हालातों में ज्ञानेंद्र दोबारा चर्चा में
वैसे साल 1955 से 1972 तक नेपाल पर राज करने वाले महेन्द्र वीर बिक्रम शाह की संतान ज्ञानेंद्र वीर बिक्रम शाह का जीवन गद्दी के मामले में हमेशा से ही उथल-पुथल से भरा रहा. जब पहली बार उन्हें नेपाल का शासक घोषित किया गया, तब उनकी उम्र महज 3 साल थी. ये साल 1950 की बात है, जब राजनैतिक अस्थिरता के कारण बच्चे ज्ञानेंद्र को पूरे एक साल के लिए देश का राजा घोषित कर दिया गया. उनकी दूसरी पारी शाही परिवार की हत्या के बाद शुरू हुई, जो 2001 से लेकर 2008 तक चली. इस दौर को दुनिया के आखिरी हिंदू राजा का दौर माना जाता है जो नेपाल में लोकतंत्र के साथ ही खत्म हो गया.
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कैसे हुई ज्ञानेंद्र की परवरिश
ज्ञानेंद्र का बचपन काफी अकेलेपन में बीता. क्राउन प्रिंस महेंद्र की दूसरी संतान ज्ञानेंद्र के जन्म पर राजपरिवार के ज्योतिष ने राजा से कहा कि उनका इस संतान के साथ रहना दुर्भाग्य ला सकता है. ये सुनते ही शिशु ज्ञानेंद्र को नारायणहिति राजमहल से उसकी नानी के पास रहने के लिए भेज दिया गया. जब ज्ञानेंद्र 3 ही साल के थे, तब राजनैतिक हलचल के कारण पूरा राजपरिवार राजसी खानदान के इस अकेले बच्चे को छोड़कर भारत आ गया.
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Tags: Indo-Nepal Border Dispute, KP Sharma Oli, Nepal
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