कोरोना वैक्सीन की दौड़ के बीच हाल ही में कई देशों ने रूस पर आरोप लगाया कि वो उनकी रिसर्च को चुराने की फिराक में है. 16 जुलाई को ब्रिटेन के साइबर सिक्योरिटी सेंटर ने कहा कि रूस के हैकरों के एक समूह ने टीके पर हो रही उनके शोध की चोरी के लिए रिसर्च कर रहे लैब्स को टारगेट किया. इसी तरह का आरोप अमेरिका और कनाडा ने भी रूस के एक खास हैकर ग्रुप पर लगाया. जानिए, रूस पर इस तरह के आरोप क्यों लग रहे हैं.
क्या है पूरा मामला?
अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा की साइबर सिक्योरिटी फोर्स ने कहा है कि रूस का APT-29 समूह उनकी प्रयोगशालाओं से वैक्सीन का फॉर्मूला चुराने की कोशिश में है. इस समूह को कोजी बीयर भी कहा जाता है. सालों से दुनिया भर के देशों को शक है कि ये ग्रुप सरकार से अलग नहीं, बल्कि रूस खुफिया एजेंसी का हिस्सा है. दुनिया की सरकारों में हो रही बड़ी उलटफेर के लिए भी इस हैकर्स ग्रुप पर आरोप लगते रहे हैं.

दुनिया की सरकारों में हो रही बड़ी उलटफेर के लिए भी इस हैकर्स ग्रुप पर आरोप लगते रहे (Photo-pixabay)
कौन हैं कोजी बीयर?
साल 2008 में बने इस समूह से जुड़े हैकर्स काफी लो-प्रोफाइल रहते हैं और अब तक सावर्जनिक डोमेन में उनकी कोई पहचान नहीं हो सकी है. एबीसी में आई रिपोर्ट के मुताबिक एक्सपर्टस् को यकीन है कि हैकर्स रूस की घरेलू खुफिया एजेंसी फेडरल सिक्योरिटी सर्विस (FSB) का ही हिस्सा हैं. वैसे कुछ का ये भी मानना है कि हैकर्स इससे भी आगे की चीज हैं. वे रूस की फॉरेन इंटेलिजेंस सर्विस SVR के साथ काम कर रहे हैं ताकि दूसरे देशों के राजनैतिक मामलों में सेंध लगाई जा सके.
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दूसरे देशों के हैकर्स जैसे चीन और नॉर्थ कोरिया के हैकर्स आर्थिक चोरी के लिए बदनाम हैं, जबकि रूस का ये समूह थिंक टैंकों से आइडिया की चोरी करता है. साल 2014 में सबसे पहले अमेरिकी साइबर सिक्योरिटी फर्म क्राउडस्ट्राइक ने इस ग्रुप पर आरोप लगाया कि ये आइडिया की चोरी करता है. ये टारगेट पर वार करने के लिए अपने टूल्स और तरीके लगातार बदलता रहता है ताकि वो पकड़ में न आए.

फिलहाल कोरोना वैक्सीन बनाने के लिए इंटरनेशनल होड़ चल रही है (Photo-pixabay)
किसलिए हैं चर्चा में?
16 जुलाई को अमेरिका, कनाडा और यूके ने एक संयुक्त बयान जारी करके कहा कि उन्हें शक है कि रूस वैक्सीन से जुड़ी अहम जानकारियां चुराने की कोशिश कर रहा है. और वो इसके लिए इसी ग्रुप की मदद ले रहा है. फेडरल ब्यूरो ऑफ इनवेस्टिगेशन ने साफ कहा कि हैकर्स वैक्सीन से जुड़े हेल्थ डाटा, इलाज और फॉर्मूला चुराने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि बयान से ये साफ नहीं हुआ कि क्या डाटा चुराया भी जा चुका है. बयान में ये डर भी जताया गया कि दूसरे देश भी अब टारगेट हो सकते हैं. इसी कड़ी में गुरुवार को ऑक्सफोर्ड के वैज्ञानिकों ने इस बात पर हैरानी जताई कि वे जिस तरीके से वैक्सीन के लिए काम कर रहे हैं, रूसी वैज्ञानिकों ने भी अपने काम का वही तरीका बताया. ये इतना मिलता-जुलता तरीका है कि चोरी का शक अपने-आप हो जाए.
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क्यों है रूस पर आरोप?
माना जा रहा है कि रूस शायद कोरोना वैक्सीन के लिए दूसरे देशों और खासकर अमेरिका से मदद नहीं लेना चाहता इसलिए भी वो वैक्सीन से जुड़ी जानकारियां चुराने की कोशिश कर रहा है ताकि खुद अपनी वैक्सीन बना सके. ये भी हो सकता है कि दूसरे देशों से पहले रूस वैक्सीन बनाना चाहता हो ताकि उसे सबसे पहला टीका बनाने का श्रेय और बाकी फायदे मिलें. बता दें कि फिलहाल कोरोना वैक्सीन बनाने के लिए इंटरनेशनल होड़ चल रही है. इसके तहत 11 वैक्सीन्स पर काम चल रहा है, जबकि 23 वैक्सीन का ह्यूमन ट्रायल भी शुरू हो चुका है.

अमेरिका चीन और ईरान पर भी वैक्सीन से जुड़ी रिसर्च की चोरी की कोशिश के आरोप लगा चुका है (Photo-pixabay)
इस तरह से हो रही चोरी की कोशिश
संयुक्त बयान में तीनों देशों ने उन सारी लैब्स के बारे में नहीं बताया, जहां हैकर्स ने टारगेट किया. हालांकि कुछ मुख्य टारगेट थे ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और ब्रिटिश-स्वीडिश फार्मा कंपनी एस्ट्राजिनेका. हैकर्स ग्रुप वैक्सीन पर काम कर रहे लोगों के पास फर्जी ईमेल भेज रहा है ताकि उनके पासवर्ड में सेंध लगा सके और जानकारी चुरा सके. इससे पहले अमेरिका चीन और ईरान पर भी वैक्सीन से जुड़ी रिसर्च की चोरी की कोशिश के आरोप लगा चुका है.
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वैसे पिछले एक दशक में APT-29 समूह पर लगातार राजनैतिक बदलावों को लेकर अटैक करने के आरोप लगे हैं. अमेरिका में पिछले राष्ट्रपति चुनावों से पहले इस समूह ने डेमोक्रेटिक नेशनल कमेटी के सर्वर पर हमला किया और उन्हें हैक कर लिया. ये हैकिंग इतनी सफाई से हुई कि अब तक भी इसके प्रमाण नहीं मिल सके हैं. हैकर्स ने यूएस के अलावा, तुर्की, जॉर्जिया, युगांडा, नॉर्वे और नीदरलैंड्स में भी राजनैतिक समूहों के सर्वर पर हमला किया.
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FIRST PUBLISHED : July 17, 2020, 14:47 IST