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पुण्यतिथि : कैसा जीवन गुजारा सरदार पटेल की बेटी ने, जो आखिरी सांस तक उनके साथ रहीं

सरदार वल्लभ भाई पटेल और उनकी बेटी मनिबेन पटेल (फाइल फोटो)

सरदार वल्लभ भाई पटेल और उनकी बेटी मनिबेन पटेल (फाइल फोटो)

15 दिसंबर 1950 को देश के पहले उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री रहे कांग्रेस के दिग्गज नेता सरदार वल्लभ भाई पटेल का निधन हो ...अधिक पढ़ें

हाइलाइट्स

सरदार पटेल के साथ आखिरी समय तक रहीं मनिबेन राजनीति में सक्रिय हुईं, चुनाव भी लड़ा
गुजरात की राज्य सरकार में वह मंत्री भी बनीं और दो बार सांसद रहीं
बाद में कांग्रेस से नाराज होकर उन्होंने आपातकाल के बाद जनता पार्टी ज्वाइन की

लंबी बीमारी के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल का निधन मुंबई में 15 दिसंबर 1950 को हुआ. आखिरी सांस तक उनकी बेटी और निजी सहायक का काम देखती रहीं मनिबेन पटेल उनके साथ रहीं. वह ना केवल लगातार पिता के लिए ताउम्र समर्पित रहीं बल्कि पिता के निधन के बाद लंबा जीवन जिया. पिता की तरह वह सियासत में ऊंचे पायदान तक तो नहीं पहुंच पाईं लेकिन राजनीतिक पारी तो खेली ही. तीन बार लोकसभा में पहुंची और एक बार राज्यसभा में चुनीं गईं. हालांकि 70 के दशक में आपातकाल के बाद वह कांग्रेस से नाराज होकर जनता पार्टी में चली गईं.

पटेल की बेटी मनिबेन पटेल प्रखर और सक्रिय थीं. बेहद ईमानदार.आजीवन अविवाहित रहीं. वर्ष 1988 में अहमदाबाद में जब उनका निधन हुआ, तब वह 87 साल की उम्र से महज एक महीने दूर थीं.

पिता के निधन के बाद नेहरू को क्या दिया था
मनिबेन के बारे में अमूल के संस्थापक कूरियन वर्गीज ने अपनी किताब में विस्तार से जिक्र किया है, वो पढ़ने लायक है. दरअसल कूरियन जब आणंद में थे, तब मणिबेन से उनकी अक्सर मुलाकातें होती थीं, वह सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहती थीं. वह किताब में लिखते हैं,” मनिबेन ने उनसे बताया कि जब सरदार पटेल का निधन हुआ तो उन्होंने एक किताब और एक बैग लिया.
दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू से मिलने चली गईं. उन्होंने नेहरू को इसे सौंपा. पिता ने निर्देश दिए थे कि उनके निधन के बाद इसे केवल नेहरू को सौंपा जाए. इस बैग में पार्टी फंड के 35 लाख रुपए थे और बुक दरअसल पार्टी की खाताबुक थी.”

मनिबेन दिल्ली में पिता के साथ रहकर उनके निजी सचिव की भूमिका भी निभाती थीं. (sardar patel archieves)

सांसद बनीं और कई ट्रस्टों की पदाधिकारी रहीं
पटेल के निधन के बाद बिरला ने उनसे बिरला हाउस में रहने को कहा, लेकिन उन्होंने मना कर दिया. तब उनके पास ज्यादा धन भी नहीं था. वह अहमदाबाद में रिश्तेदारों के यहां चली गईं. वह बस या ट्रेन में तीसरे दर्जे में सफर करती थीं. बाद में कांग्रेसी नेता त्रिभुवनदास की मदद से सांसद बनीं. गुजरात कांग्रेस में असरदार पदों पर रहीं. कई संस्थाओं में आखिरी समय तक ट्रस्टी या पदाधिकारी भी रहीं.

जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीता
मनिबेन पहली लोकसभा के लिए गुजरात के दक्षिणी कैरा से सांसद चुनी गईं. दूसरी लोकसभा के लिए आणंद से सांसद बनीं. वर्ष 1964 से लेकर 1970 तक राज्यसभा की सदस्य रहीं. बाद में उन्होंने कांग्रेस छोड़कर मोरारजी देसाई के साथ स्वतंत्र पार्टी ग्रहण की. फिर कांग्रेस में आईं. आपातकाल के दौरान विरोधस्वरूप नाराज होकर उनकी कांग्रेस छोड़ दी. तब वह जनता पार्टी में चली गईं

मोरारजी देसाई उन्हें बहुत इंतजार कराते थे
1977 में उन्होंने जनता पार्टी के टिकट पर मेहसाणा से लोकसभा चुनाव लड़ा और निर्वाचित हुईं. उन्हें मोरारजी देसाई से बहुत उम्मीदें थीं लेकिन उन्होंने उनके साथ न जाने क्यों अजीबोगरीब व्यवहार किया. जब भी वह मिलने जाती थीं तो वह उन्हें बहुत इंतजार कराते थे.

युवावस्था गांधीजी के आश्रम में बीती
मनिबेन ने युवावय से ही खुद को कांग्रेस और महात्मा गांधी के प्रति समर्पित कर दिया था. वह लंबे समय तक उनके अहमदाबाद स्थित आश्रम में भी रहीं. बाद के बरसों में वह पटेल के साथ दिल्ली में रहने लगीं. वह पिता के रोजमर्रा के कामों को देखती और सचिव के रूप में उनकी मदद करती थीं. लिहाजा कांग्रेस के तकरीबन सभी नेता उन्हें अच्छी तरह जानते थे.

बाद में आंखें कमजोर हो गईं
आखिरी सालों में मनिबेन की आंख काफी कमजोर हो गई. अहमदाबाद की सड़कों पर वह पैदल अकेले चलती हुई दिख जाती थीं. अांखें कमजोर होने की वजह से एक दो बार उनके लड़खड़ाकर गिरने की भी खबरें आईं.

बेटे दाहिया भी दो बार रहे सांसद
पटेल के बेटे दहयाभाई पटेल का निधन 1973 में हुआ. वह पढ़ाई के बाद मुंबई की एक इंश्योरेंस कंपनी में काम करने लगे थे. उनके दो बेटे थे- बिपिन और गौतम. बिपिन पहली पत्नी से और गौतम दूसरी पत्नी से. दरअसल उन्होंने पहली पत्नी यसोदा के निधन के बाद उन्होंने दूसरी शादी की थी. दहयाभाई आजादी की लड़ाई में भी कूदे. जेल गए. आजादी के बाद उन्होंने 1957 का लोकसभा चुनाव लड़ा. 1962 में राज्यसभा सदस्य चुने गए.

Tags: Sardar patel, Sardar Vallabhbhai Patel

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