नांगलोई इलाके में श्याम रसोई का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं, जहां भरपेट खाना मिलता है
कोरोना महामारी ने देश की अर्थव्यवस्था से लेकर आम लोगों की जेब पर भी असर डाला. बहुतों ने नौकरी गंवाई. इस बीच लोग ज्यादा से ज्यादा बचत की सोच रहे हैं, वहीं एक शख्स ऐसा भी है, जिसे इससे कोई सरोकार नहीं. प्रवीण कुमार गोयल नाम का ये शख्स लोगों को 1 रुपए में भरपेट स्वादिष्ट और पौष्टिक खाना खिला रहा है.
नांगलोई में है ये रसोई
ये किसी ग्रामीण इलाके की बात नहीं, बल्कि देश की राजधानी का किस्सा है. यहां नांगलोई इलाके में श्याम रसोई का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं. यहां रोज सैकड़ों लोग खाना खाने आते हैं. प्रवीण लोगों से केवल 1 रुपए लेते हैं, ताकि किसी को ये न लगे कि वो मुफ्त में खाना खा रहा है. पहले यहां 10 रुपये में एक थाली देते थे, लेकिन कोरोना के मुश्किल समय में थाली के दाम ₹10 से घटाकर महज एक रुपये कर दिए. लगभग 51 साल के प्रवीण इस काम के लिए अपना बिजनेस भी छोड़ चुके और पूरी तरह से इसी रसोई का प्रबंधन कर रहे हैं.
तड़के शुरू हो जाता है खाना पकना
नांगलोई के इस हिस्से में दिन की शुरुआत बर्तन-भगोनों के साफ होने और सब्जियों की महक से होती है. सुबह के 11 बजे से यहां खाने के लिए लोग आ चुके होते हैं. भारी भीड़ में किसी को ज्यादा इंतजार न करना पड़े, इसके लिए खाना पहले ही तैयार रखना होता है. लिहाजा तड़के ही कई रसोइये काम में जुट जाते हैं. सबके लिए काम तय हैं. कोई सब्जियां तराशता है तो कोई उसे पकाने का काम लेता है.
Delhi: ‘Shyam Rasoi’, near Shiv Mandir in Nangloi is serving food to people at Re 1.
Praveen Goyal, owner says “People donate in kind & help financially. Earlier the cost of food was Rs 10, but we reduced it to Re 1 to attract more people. At least 1,000 ppl eat here each day.” pic.twitter.com/QKJ3htAsQN
— ANI (@ANI) October 11, 2020
रोज हजार से ज्यादा खाने वाले आते हैं
सबके लिए मैनुअली रोटियां बनाना मुमकिन नहीं. इसे देखते हुए लोइयां (आटे का पेड़ा) बनाने के लिए कुछ महिला कर्मचारी लगी रहती हैं. एक-एक करके लोइयां रोटी बनाने वाली मशीन में डाली जाती हैं और दूसरी ओर से रोटियां गर्मागर्म लेकर थालियों में सजाई जाती हैं. सारा काम बिजली की तेजी से होता है क्योंकि बाहर पहले से ही लोग जमा हो चुके हैं.
कई तरीकों से खाना पहुंचा रहे हैं
केवल खाने के लिए आने वालों को ही भरपेट नहीं परोसा जाता, बल्कि प्रवीण या उनके कर्मचारी रिक्शा या ऑटो से आसपास के इलाकों जैसे इंद्रलोक और साईं मंदिर जाते हैं और वहां जरूरतमंद लोगों को खाना पहुंचाते हैं. यहां तक कि अगर कोई चाहे तो बीमार या किसी भी जरूरतमंद के लिए खाना पैक करवाकर भी साथ ले जा सकता है, हालांकि इसकी शर्त ये है कि केवल तीन लोगों के लिए एक साथ पार्सल होगा. इसका मकसद ये है कि खाने की बर्बादी रोकी जाए और जरूरतमंद तक खाना पहुंचे. बकौल प्रवीण, इस तरह से देखें तो श्याम रसोई से रोज 2000 लोगों का पेट भर रहा है.
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गुणवत्ता पर खास ध्यान देते हैं
खाना पकाने और परोसने के लिए एक गोदाम को खाली करके उसे रसोई और डायनिंग का रूप दिया गया. नीचे दरी बिछी होती है, जिसपर सब साथ बैठकर खाते हैं. रोटियां, दाल, सब्जी और हलवा रोज परोसा जाता है. हमेशा मौसमी सब्जियां ही पकाई जाती हैं. कुल मिलाकर पूरा खाना लगभग वैसा ही होता है, जैसे हम-आप घरों में खाते हैं, स्वादिष्ट और सेहतमंद.
लोग पैसों से लेकर राशन भी कर रहे दान
बिजनेस परिवार से ताल्लुक रखने वाले प्रवीण अपने बारे में खास जानकारी नहीं देते हैं लेकिन ये बात सामने आ गई कि वे अपना काम छोड़कर खुद को पूरी तरह से इस रसोई में समर्पित कर चुके. रसोई चलाने के लिए रोजना लगभग 40000 से 50000 का खर्च आता है.
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तो प्रवीण ये खर्च कहां से निकालते हैं?
इसके लिए लोग दान करते हैं. छोटी से लेकर बड़ी दानराशि खबर फैलने के बाद से आने लगी. यहां तक कि बहुत से लोग पैसों की बजाए सूखा अन्न पहुंचाते हैं ताकि दान का सही इस्तेमाल होने की तसल्ली रहे. अब कई राज्यों से सूखा राशन आने लगा है.
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जिनके पास 1 रुपए भी न हों, वे भी नहीं लौटते
साल के 365 दिन ये रसोई चलती है और किसी को भूखा नहीं लौटाया जाता. यहां तक कि अगर किसी के पास देने के लिए 1 रुपए भी न हो तो उसे भी प्रेम से बिठाकर परोसा जाता है. लोकप्रियता बढ़ने के साथ आसपास के लोग और कॉलेज के स्टूडेंट भी आकर खाना परोसने में मदद करने लगे हैं ताकि काम आसान हो सके.
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