किसान आंदोलन (farmers' protest) की गूंज देशभर में फैल चुकी है. इस बीच कई बातों के बीच रह-रहकर एक आंदोलन का नाम आ रहा है. पगड़ी संभाल जट्टा नाम का ये आंदोलन लगभग 100 साल पहले पंजाब में ही चला था, जिसने तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत की जड़ें हिला दी थीं. पंजाब के घर-घर में लोग पगड़ी संभाल जट्टा गाते हुए हुजूम के हुजूम निकलने लगे थे.
दरअसल ये साल 1907 की बात है. तब अंग्रेजों ने एक के बाद तीन ऐसे कानून बना डाले थे, जो किसानों को पूरी तरह से गुलाम बना सकते थे. ये तीन कानून थे दोआब बारी एक्ट, पंजाब लैंड कॉलोनाइजेशन एक्ट और पंजाब लैंड एलियनेशन एक्ट. इन कानूनों के तहत नहर बनाकर विकास करने के नाम पर किसानों से औने-पौने दामों पर जबरन उनकी जमीन ली जाने लगी. साथ ही साथ कई तरह के टैक्स थोपे जाने लगे. तब भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह ने इसके खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया. हालांकि इस आंदोलन को पगड़ी संभाल जट्टा जैसा एकदम अलग-सा नाम एक पत्रकार ने दिया.
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मार्च 1907 को ल्यालपुर (तत्कालीन पाकिस्तान) में एक बड़ी रैली हुई. तब वहां एक अखबार चला करता था झांग स्याल. उसके एडिटर थे, बांके दयाल. उन्हीं ने ये गाना गाया- पगड़ी संभाल जट्टा, पगड़ी संभाल. बता दें कि पगड़ी पंजाबियों किसानों के लिए गर्व की बात होती है और गाने के बोल सीधे उनके सम्मान से जुड़ गए. जल्द ही ये गीत सबकी जुबान पर आ गया. फिर ऐसा हुआ कि आंदोलन का नाम ही पगड़ी संभाल जट्टा पड़ गया.

पगड़ी संभाल आंदोलन के जनक अजीत सिंह
आज जिस तरह से दिल्ली में किसान प्रदर्शन कर रहे हैं, वैसा ही भारी प्रदर्शन हुआ. इसमें किसानों ने पक्का किया कि वे प्रदर्शन से पहले बिल को पढ़कर सुनाएंगे ताकि प्रदर्शन का हिस्सा बनने जा रहा हरेक किसान कानून के नुकसान अच्छी तरह से समझ सके. अपनी आत्मकथा ‘Buried Alive’ में आंदोलन के जनक अजीत सिंह ने घटना का जिक्र किया है.
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वैसे तो पंजाब और हरियाणा के किसान इसमें शामिल थे लेकिन ल्यालपुर को प्रदर्शन का केंद्र बनाया गया. इसका कारण ये था कि इस हिस्से में दोनों ही राज्यों के किसान बसते थे. साथ ही साथ यहां मिलिट्री से रिटायर हो चुके फौजी भी थे. माना गया कि पूर्व फौजी मौजूदा फौजियों को अपने साथ ला सकेंगे. यानी पूरी तरह से पक्की योजना तैयार हुई.
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ये दिल्ली में हो रहे वर्तमान किसान आंदोलन से मिलता-जुलता है. किसानों का कहना है कि कृषि कानून उन्हें अपनी खेती की जमीनों को कॉर्पोरेट्स को बेचने पर मजबूर कर देंगे. ठीक उसी तरह जैसे नहर के नाम पर अंग्रेजों ने जमीन ली थीं.

जिस तरह से दिल्ली में किसान प्रदर्शन कर रहे हैं, वैसा ही भारी प्रदर्शन हुआ
योजनाबद्ध तरीके से किसानों के प्रदर्शन में अंग्रेजी हुकूमत से परेशान आम लोग भी जुड़े और इसका असर भी दिखा. उन्होंने कानून में हल्के-फुल्के बदलाव किए. साथ ही साथ आंदोलन का मुख्य चेहरा यानी अजीत सिंह को लगभग 40 सालों के लिए देश से निकाल दिया. बाद में अजीत सिंह अफगानिस्तान, ईरान, इटली और जर्मनी तक गए और अपनी लड़ाई जारी रखी. हालांकि इसका कोई बड़ा फायदा नहीं हो सका.
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इस बार किसान आंदोलन में भी कुछ ऐसे आसार दिख रहे हैं कि केंद्र सरकार उनसे बात करने की कोशिश कर रही है. हो सकता है कि आगे बातचीत से कोई रास्ता निकल सके.
पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन को चिंगारी अजीत सिंह ने दी थी लेकिन जल्द ही देश के प्रमुख क्रांतिकारी भी उसमें शामिल होने लगे. लाला लाजपत राय को पहले ही खबर लग गई थी कि डरे हुए अंग्रेज कानून में थोड़ी छूट देने वाले हैं. पहले तो उन्होंने आंदोलन को रोकने की बात की लेकिन फिर उन्हें भी अहसास हो गया कि ये आंदोलन किसानों तक ही सीमित नहीं रहेगा, बल्कि ब्रितानिया हुकूमत को देश से निकालने में मदद कर सकेगा.

मुल्तान में रेल कर्मचारी प्रदर्शन पर निकल पड़े थे (Photo-geograph)
साल 1907 में हुए किसान आंदोलन और मौजूदा आंदोलन में कई समानताएं होने के साथ ही एक बड़ा फर्क भी है. मौजूदा प्रदर्शन काफी हद तक शांतिपूर्ण है और हिंसा की कोई खबर नहीं फैली है. वहीं पगड़ी संभाल जट्टा के दौरान काफी हिंसा हुई थी. तब अंग्रेजों की लगातार ज्यादतियों से परेशान किसानों ने रावलपिंडी, गुजरावाला और लाहौल में हिंसक प्रदर्शन किए. अंग्रेजों को मारा-पीटा गया और अपमानित करने के लिए कीचड़ फेंकने जैसे काम भी हुए.
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छुटपुट मारपीट के अलावा बड़े स्तर की हिंसा भी हुई. जैसे अंग्रेजी के दफ्तर जलाने की कोशिश हुई और तार की लाइनें खराब कर दी गईं. लाहौल में एसपी को पीटा गया. मुल्तान में किसानों के सपोर्ट में रेलवे कर्मचारी हड़ताल पर चले गए और तभी लौटे जब कानून में बदलाव हुए. अंग्रेज अफसरों ने अपने परिवारों को मुंबई (तब बॉम्बे) भेज दिया ताकि हालात खराब होने पर उन्हें इंग्लैंड भेजा जा सके.
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आंदोलन के प्रणेता अजीत सिंह ने इन सारे वाकयों का जिक्र अपनी आत्मकथा में किया है. बाद में जाकर अंग्रेजों को समझ आया कि किसानों का गुस्सा और प्रदर्शन केवल एक कानून के चलते नहीं था, बल्कि उनकी हुकूमत के खिलाफ था. इस तरह से पगड़ी संभाल आंदोलन भी देश की आजादी के आंदोलनों का हिस्सा बना.
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Tags: Farmers Bill, Farmers Delhi March, Farmers Protest in India, Punjab and haryana
FIRST PUBLISHED : December 08, 2020, 08:38 IST