उस भयानक गैंग रेप केस की कहानी, जिसकी तकदीर निर्भया केस से बदली

न्यूज़18 क्रिएटिव
दिल्ली को शर्मसार करने वाले बलात्कार कांड की बरसी पर जानिए कि निर्भया कांड (Nirbhaya Gang Rape Case 2012) में सख़्त कार्रवाई न हुई होती तो एक और गैंग रेप केस (Ashiyana Case of Lucknow) कैसे हाशिये पर चला गया होता और दोषी आज़ाद घूमते?
- News18India
- Last Updated: December 16, 2020, 7:59 AM IST
क्या इसी ने बलात्कार (Rape) किया था? ये सवाल कोर्ट में पूछा जा रहा था और एक आदमी सामने खड़ा था जिसकी बड़ी मूंछें थीं, भरा हुआ चेहरा और गठा हुआ शरीर था. चेहरे पर रौब था. लड़की को याद आ रहा था कि जिसने बलात्कार किया था, उसकी न तो मूंछें थीं और न ही वो इतना तंदरुस्त था, लेकिन नैन-नक्श यही थे. तभी लड़की की नज़रें इस आदमी की आंखों पर गड़ीं और उसे एक झटके में वो डरावनी आंखें याद आ गईं. उसने पहचान लिया कि ये वही था. लड़की की आंखों के सामने वो मंज़र घूम गया और उसने कोर्ट में ही उल्टी कर दी, चक्कर खाकर लड़खड़ा गई. लड़की की हालत बिगड़ने पर फास्ट ट्रैक कोर्ट (Fast Track Court) में सुनवाई मुल्तवी कर दी गई.
कोर्ट में बेसुध हो चुकी नफीसा (अवास्तविक नाम) की आंख अपने घर के छोटे से अंधेरे कमरे में खुलीं. उसके आंखों में कई चेहरे घूम रहे थे. उसे सब कुछ याद आ रहा था कि दस साल पहले उसके साथ क्या हुआ था. इन दस सालों में नफीसा किसी पल के लिए भूल नहीं पाई थी साल 2005 की वो रात.
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कितनी सुहानी थी वो शाम?लखनऊ में 13 साल की नफीसा घरों में काम किया करती थी. बर्तन, झाड़ू वगैरह का काम करने के बाद 2 मई को उस देर शाम नफीसा को अपने घर लौटना था. नफीसा का घर इस कॉलोनी के मकानों से कुछ दूर बनी एक झुग्गी बस्ती में था. रोज़ की तरह वह शाम तक घर लौट जाना चाहती थी, लेकिन उस शाम अचानक बारिश के चलते उसने बारिश थमने का इंतज़ार किया.
नफीसा के साथ उस शाम उसका छोटा भाई भी था, जो बारिश में भीगना भी चाह रहा था. चुलबुली नफीसा भी बारिश में मस्ती के मूड में थी. बारिश थमती न देखकर, आंटी को बताकर नफीसा छोटे भाई के साथ बारिश का मज़ा लेती हुई आशियाना इलाके के उस रास्ते पर थी, जो उसके घर की तरफ जाता था. अंधेरा हो रहा था और बारिश के कारण वो रास्ता तकरीबन सुनसान था.

तभी, नागेश्वर मंदिर के पास उस रास्ते पर टिंटेड ग्लास वाली एक कार लाइट मारती हुई और हॉर्न बजाती हुई आई. नफीसा अपने भाई को लेकर रास्ते से हटकर साइड में हो गई. कार थोड़ी दूर जाकर रुकी और उसमें से दो लड़के नशे की हालत में बाहर निकले. दोनों ने नफीसा के भाई को झटककर दूर फेंका और नफीसा को जबरन कार में बिठा ले गए.
कितनी भयानक होने वाली थी वो रात?
सरपट दौड़ती कार में चीखती नफीसा को चुप कराने के लिए लड़कों ने उसे सिगरेट और लाइटर से जलाया. इसके बावजूद रोती चीखती नफीसा विरोध करती रही तो एक लड़के ने पिस्तौल दिखाकर उसे डराया, धमकाया. फिर भी चुप न हुई नफीसा को इन लड़कों ने बेइंतहा पीटा और दुष्कर्म किया. कुछ देर बाद सुनसान और खाली पड़े एक प्लॉट पर कार पहुंची, जिसमें नफीसा बिलख रही थी.
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बारिश में कमज़ोर पड़ चुकी नफीसा को घसीटकर प्लॉट के सूने हिस्से में ले जाकर वहां यूकेलिप्टस की झाड़ियों से नफीसा को बांधकर लड़कों ने पीटा. लकड़ी के एक लट्ठे पर बांध दी गई नफीसा के साथ बारी बारी इन लड़कों ने बलात्कार किया. इसके बाद लहूलुहान नफीसा को मरा जानकर डालीगंज पुल के पास फेंककर ये लड़के गायब हो गए. नफीसा को फेंककर भागने से पहले एक लड़के ने 20 रुपये 'मेहनताना' के तौर पर नफीसा पर उछालकरर फेंका भी था.
नफीसा का बाप सबरुद्दीन अपनी नन्ही सी बेटी को इस हाल में देखकर गुनाहगारों के खिलाफ सख्त एक्शन चाह रहा था. किस्मत कहें या हालात, पुलिस ने फौरन लड़की को डॉक्टर के पास भेजा. डॉक्टर ने लड़की को किसी लेडी डॉक्टर के पास परीक्षण के लिए ले जाए जाने की बात कही. अस्पताल में भर्ती किए जाने के हफ्तों तक नफीसा का खून बहता रहा.

यहां से केस में शुरू हुए पेंच
रेप के लिए की जाने वाली जांच में नफीसा के प्राइवेट पार्ट को क्षति होना भी पाया गया, इसके बावजूद जांच करने वाली डॉक्टर ने रिपोर्ट में लिखा कि बलात्कार की साफ पुष्टि नहीं की जा सकती. केस दर्ज करवाया जा चुका था, नफीसा के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ी जा रही थी और इलाज के बाद नफीसा घर की चार दीवारी में कैद हो चुकी थी. जिनके खिलाफ केस था, वो इलाके के दबंग थे, उस परिवार में कोई नेता था, कोई रसूखदार वकील तो कोई सरकारी मशीनरी का हिस्सा.
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कभी आरोपी की सेहत खराब होने तो कभी और बहानों से केस चलता रहा, आरोपी की पेशी टलती रही और तारीखें मिलती रहीं. सालों गुज़र रहे थे और दूसरी तरफ नफीसा की पढ़ाई रुक चुकी थी. जब हिम्मत जुटाकर नौवीं क्लास में एडमिशन लेकर स्कूल पहुंची तो वहां सब उसे 'रेप, रेप' कहकर चिढ़ाते थे. नफीसा स्कूल छोड़कर फिर घर में कैद हो चुकी थी.
दिल्ली के रेप केस के बाद बदले हालात
केस के दौरान आरोपी गौरव शुक्ला आरोपी को दसवीं की मार्कशीट के ज़रिये घटना के वक्त अवयस्क बताकर जुवेनाइल कोर्ट का मामला बनाने की कोशिश की गई. इधर, नफीसा और उसका परिवार इंसाफ की बाट जोह रहे थे, उधर आरोपी की शादी धूमधाम से हो चुकी थी. केस खिंचते जाने के बीच, साल 2012 में दिल्ली में चलती बस में कॉलेज की एक लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार की खबर ने पूरे देश को हिला दिया.
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निर्भया कांड सुर्खियों में इस तरह आया कि रेप से जुड़े कानून सख्त हुए, रेप मामलों की जल्द सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बने और कड़ी सज़ा के प्रावधान हुए. इन बदलावों के मद्देनज़र अब नफीसा और उसके परिवार को उनके केस में भी बदलाव आने की उम्मीद जगी.
फैसले से पहले आए कई मोड़
दिल्ली से चले बदलाव को छोटे शहरों तक पहुंचने में ज़्यादा वक्त लगता है. दिल्ली के निर्भया कांड के बाद हंगामा हो चुका था और गौरव शुक्ला के खिलाफ केस को जल्द निपटाने की मांग भी. तमाम हलचलों के बाद 2015 में नफीसा रेप केस को फास्ट ट्रैक कोर्ट के सुपुर्द किया गया. यहां भी वही रवैया चला. गौरव शुक्ला के वकीलों ने कानूनी पैतरे अपनाते हुए तारीखें बढ़वाना शुरू किया.

चूंकि फास्ट ट्रैक कोर्ट में इतनी देर नहीं हो सकती थी इसलिए तफ्तीश और सुनवाई शुरू हुई. जैसे ही लगा कि नफीसा को इंसाफ मिलने ही वाला था, तभी बाज़ी पलटी. मई 2015 में गौरव शुक्ला के खिलाफ केस की तमाम कोर्ट फाइलें रहस्यमयी ढंग से गायब हो गईं. फिर महीनों गुज़र गए. दिसंबर 2015 में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने नफीसा से आरोपी गौरव की पहचान करने को कहा तो नफीसा के लिए एक और मुसीबत खड़ी हो गई.
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अप्रेल 2016 में यानी बलात्कार के अपराध के 11 साल बाद गौरव शुक्ला को कोर्ट ने गैंग रेप केस में दोषी करार देते हुए दस साल की सज़ा सुनाई. इससे पहले आशियाना गैंगरेप कांड के नाम से चर्चित हो चुके इस मामले में गौरव के साथियों भारतेंदु और अमन को सज़ा दी जा चुकी थी. बहरहाल, इस फैसले के बाद नफीसा ने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि वो जज बनना चाहती थी.
(यह कहानी 2018 में मूल रूप से प्रकाशित हुई थी, जिसे प्रासंगिकता के चलते कुछ संशोधनों के साथ दोबारा प्रस्तुत किया गया है.)
कोर्ट में बेसुध हो चुकी नफीसा (अवास्तविक नाम) की आंख अपने घर के छोटे से अंधेरे कमरे में खुलीं. उसके आंखों में कई चेहरे घूम रहे थे. उसे सब कुछ याद आ रहा था कि दस साल पहले उसके साथ क्या हुआ था. इन दस सालों में नफीसा किसी पल के लिए भूल नहीं पाई थी साल 2005 की वो रात.
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कितनी सुहानी थी वो शाम?लखनऊ में 13 साल की नफीसा घरों में काम किया करती थी. बर्तन, झाड़ू वगैरह का काम करने के बाद 2 मई को उस देर शाम नफीसा को अपने घर लौटना था. नफीसा का घर इस कॉलोनी के मकानों से कुछ दूर बनी एक झुग्गी बस्ती में था. रोज़ की तरह वह शाम तक घर लौट जाना चाहती थी, लेकिन उस शाम अचानक बारिश के चलते उसने बारिश थमने का इंतज़ार किया.
नफीसा के साथ उस शाम उसका छोटा भाई भी था, जो बारिश में भीगना भी चाह रहा था. चुलबुली नफीसा भी बारिश में मस्ती के मूड में थी. बारिश थमती न देखकर, आंटी को बताकर नफीसा छोटे भाई के साथ बारिश का मज़ा लेती हुई आशियाना इलाके के उस रास्ते पर थी, जो उसके घर की तरफ जाता था. अंधेरा हो रहा था और बारिश के कारण वो रास्ता तकरीबन सुनसान था.

न्यूज़18 क्रिएटिव
तभी, नागेश्वर मंदिर के पास उस रास्ते पर टिंटेड ग्लास वाली एक कार लाइट मारती हुई और हॉर्न बजाती हुई आई. नफीसा अपने भाई को लेकर रास्ते से हटकर साइड में हो गई. कार थोड़ी दूर जाकर रुकी और उसमें से दो लड़के नशे की हालत में बाहर निकले. दोनों ने नफीसा के भाई को झटककर दूर फेंका और नफीसा को जबरन कार में बिठा ले गए.
कितनी भयानक होने वाली थी वो रात?
सरपट दौड़ती कार में चीखती नफीसा को चुप कराने के लिए लड़कों ने उसे सिगरेट और लाइटर से जलाया. इसके बावजूद रोती चीखती नफीसा विरोध करती रही तो एक लड़के ने पिस्तौल दिखाकर उसे डराया, धमकाया. फिर भी चुप न हुई नफीसा को इन लड़कों ने बेइंतहा पीटा और दुष्कर्म किया. कुछ देर बाद सुनसान और खाली पड़े एक प्लॉट पर कार पहुंची, जिसमें नफीसा बिलख रही थी.
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बारिश में कमज़ोर पड़ चुकी नफीसा को घसीटकर प्लॉट के सूने हिस्से में ले जाकर वहां यूकेलिप्टस की झाड़ियों से नफीसा को बांधकर लड़कों ने पीटा. लकड़ी के एक लट्ठे पर बांध दी गई नफीसा के साथ बारी बारी इन लड़कों ने बलात्कार किया. इसके बाद लहूलुहान नफीसा को मरा जानकर डालीगंज पुल के पास फेंककर ये लड़के गायब हो गए. नफीसा को फेंककर भागने से पहले एक लड़के ने 20 रुपये 'मेहनताना' के तौर पर नफीसा पर उछालकरर फेंका भी था.
थोड़ी देर बाद कुछ औरतों को पास ही देखकर खून में नहाई, फटे चीथड़ों में नफीसा किसी तरह खड़ी हुई तो उस आड़ी तिरछी लड़की को देखकर औरतें नफीसा को चुड़ैल समझकर घबराने लगीं. जब कमज़ोर नफीसा धड़ाम से गिर पड़ी तब औरतों ने उसे पास जाकर देखा. फिर किसी तरह नफीसा की पहचान हुई और उसे पुलिस थाने ले जाया गया. नफीसा की हालत से अफसर आरकेएस राठौर को समझ आ गया था कि लड़की के साथ क्या सलूक किया गया था.
नफीसा का बाप सबरुद्दीन अपनी नन्ही सी बेटी को इस हाल में देखकर गुनाहगारों के खिलाफ सख्त एक्शन चाह रहा था. किस्मत कहें या हालात, पुलिस ने फौरन लड़की को डॉक्टर के पास भेजा. डॉक्टर ने लड़की को किसी लेडी डॉक्टर के पास परीक्षण के लिए ले जाए जाने की बात कही. अस्पताल में भर्ती किए जाने के हफ्तों तक नफीसा का खून बहता रहा.

न्यूज़18 क्रिएटिव
यहां से केस में शुरू हुए पेंच
रेप के लिए की जाने वाली जांच में नफीसा के प्राइवेट पार्ट को क्षति होना भी पाया गया, इसके बावजूद जांच करने वाली डॉक्टर ने रिपोर्ट में लिखा कि बलात्कार की साफ पुष्टि नहीं की जा सकती. केस दर्ज करवाया जा चुका था, नफीसा के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ी जा रही थी और इलाज के बाद नफीसा घर की चार दीवारी में कैद हो चुकी थी. जिनके खिलाफ केस था, वो इलाके के दबंग थे, उस परिवार में कोई नेता था, कोई रसूखदार वकील तो कोई सरकारी मशीनरी का हिस्सा.
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कभी आरोपी की सेहत खराब होने तो कभी और बहानों से केस चलता रहा, आरोपी की पेशी टलती रही और तारीखें मिलती रहीं. सालों गुज़र रहे थे और दूसरी तरफ नफीसा की पढ़ाई रुक चुकी थी. जब हिम्मत जुटाकर नौवीं क्लास में एडमिशन लेकर स्कूल पहुंची तो वहां सब उसे 'रेप, रेप' कहकर चिढ़ाते थे. नफीसा स्कूल छोड़कर फिर घर में कैद हो चुकी थी.
दिल्ली के रेप केस के बाद बदले हालात
केस के दौरान आरोपी गौरव शुक्ला आरोपी को दसवीं की मार्कशीट के ज़रिये घटना के वक्त अवयस्क बताकर जुवेनाइल कोर्ट का मामला बनाने की कोशिश की गई. इधर, नफीसा और उसका परिवार इंसाफ की बाट जोह रहे थे, उधर आरोपी की शादी धूमधाम से हो चुकी थी. केस खिंचते जाने के बीच, साल 2012 में दिल्ली में चलती बस में कॉलेज की एक लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार की खबर ने पूरे देश को हिला दिया.
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निर्भया कांड सुर्खियों में इस तरह आया कि रेप से जुड़े कानून सख्त हुए, रेप मामलों की जल्द सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बने और कड़ी सज़ा के प्रावधान हुए. इन बदलावों के मद्देनज़र अब नफीसा और उसके परिवार को उनके केस में भी बदलाव आने की उम्मीद जगी.
फैसले से पहले आए कई मोड़
दिल्ली से चले बदलाव को छोटे शहरों तक पहुंचने में ज़्यादा वक्त लगता है. दिल्ली के निर्भया कांड के बाद हंगामा हो चुका था और गौरव शुक्ला के खिलाफ केस को जल्द निपटाने की मांग भी. तमाम हलचलों के बाद 2015 में नफीसा रेप केस को फास्ट ट्रैक कोर्ट के सुपुर्द किया गया. यहां भी वही रवैया चला. गौरव शुक्ला के वकीलों ने कानूनी पैतरे अपनाते हुए तारीखें बढ़वाना शुरू किया.

न्यूज़18 क्रिएटिव
चूंकि फास्ट ट्रैक कोर्ट में इतनी देर नहीं हो सकती थी इसलिए तफ्तीश और सुनवाई शुरू हुई. जैसे ही लगा कि नफीसा को इंसाफ मिलने ही वाला था, तभी बाज़ी पलटी. मई 2015 में गौरव शुक्ला के खिलाफ केस की तमाम कोर्ट फाइलें रहस्यमयी ढंग से गायब हो गईं. फिर महीनों गुज़र गए. दिसंबर 2015 में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने नफीसा से आरोपी गौरव की पहचान करने को कहा तो नफीसा के लिए एक और मुसीबत खड़ी हो गई.
एक बच्चे के बाप बन चुके उस आरोपी को नफीसा ने दस साल पहले एक लड़के के रूप में देखा था. फिर भी, नफीसा को वो डरावनी आंखें याद थीं और उसने गौरव को पहचाना तो कोर्ट में ही उसकी हालत बिगड़ गई. 2016 में शुक्ला खानदान को झटका तब लगा जब ये खुलासा हुआ कि गौरव की मार्कशीट फर्ज़ी थी जिसके आधार पर उसे घटना के वक्त यानी दस साल पहले नाबालिग बताया गया था.
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अप्रेल 2016 में यानी बलात्कार के अपराध के 11 साल बाद गौरव शुक्ला को कोर्ट ने गैंग रेप केस में दोषी करार देते हुए दस साल की सज़ा सुनाई. इससे पहले आशियाना गैंगरेप कांड के नाम से चर्चित हो चुके इस मामले में गौरव के साथियों भारतेंदु और अमन को सज़ा दी जा चुकी थी. बहरहाल, इस फैसले के बाद नफीसा ने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि वो जज बनना चाहती थी.
(यह कहानी 2018 में मूल रूप से प्रकाशित हुई थी, जिसे प्रासंगिकता के चलते कुछ संशोधनों के साथ दोबारा प्रस्तुत किया गया है.)