लाल बहादुर शास्त्री (फाइल फोटो)
कुछ ही दिनों पहले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल पर उनके मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू की किताब पर बनी फिल्म 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' का ट्रेलर रिलीज हुआ था. जिसके बाद फिल्म का विरोध होने लगा था और राजनीतिक हलके में काफी गर्मी हो गई थी. इसके बाद हाल ही में एक और फिल्म का पोस्टर रिलीज हुआ. फिल्म का नाम है 'द ताशकंद फाइल्स' और इसके डायरेक्टर हैं विवेक अग्निहोत्री.
यह फिल्म लाल बहादुर शास्त्री के जीवन में सबसे ज्यादा विवादास्पद घटना यानी उनकी मौत पर बन रही है. भारत से बाहर हुई उनकी मौत पर आज भी सवालिया निशान उठते रहते हैं. 11 जनवरी, 1966 को सोवियत रूस में लाल बहादुर शास्त्री की मौत हो गई थी. ऐसे में इस विषय पर बनने वाली फिल्म में क्या होगा, इसपर भी कयास लगने लगे हैं. लेकिन उनकी मौत के वक्त उनके होटल में ही मौजूद पत्रकार कुलदीप नैयर उनकी मौत को कैसे देखते हैं, यह जानने वाली बात है. कुलदीप नैयर के अनुसार कैसे घटित हुआ था यह मामला?
ताशकंद समझौते के बाद हो रही थी शास्त्री की आलोचना
1965 में भारत ने पाकिस्तान के कश्मीर पर हमले के बाद कच्छ की ओर से पाकिस्तान में सेना को भेजने का निश्चय किया और पाकिस्तान के अच्छे-खासे इलाके का अतिक्रमण कर लिया. लेकिन लाल बहादुर शास्त्री ने 1966 में हुए ताशकंद समझौते में पाकिस्तान को हाजी पीर और ठिथवाल के जीते इलाके वापस कर दिए. जिसके बाद यहां उनकी काफी आलोचना हो रही थी.
कुलदीप नैयर बताते हैं कि देर रात उन्होंने अपने घर पर फोन मिलाया. फोन उनकी सबसे बड़ी बेटी ने उठाया था. फोन उठते ही शास्त्री बोले, 'अम्मा को फोन दो.' शास्त्री अपनी पत्नी ललिता को अम्मा कहा करते थे. उनकी बड़ी बेटी ने जवाब दिया, अम्मा फोन पर नहीं आएंगीं. शास्त्री जी ने पूछा क्यों? जवाब आया क्योंकि आपने हाजी पीर और ठिथवाल पाकिस्तान को दे दिया है. वो बहुत नाराज हैं. शास्त्री को इस बात से बहुत धक्का लगा.
इसके बाद वो परेशान होकर अपने कमरे में चक्कर लगाने लगे. हालांकि कुछ ही देर में उन्होंने फिर से अपने सचिव वेंटररमन को फोन किया. वो भारत में नेताओं की प्रतिक्रिया जानना चाहते थे. उन्हें बताया गया कि अभी तक दो ही प्रतिक्रियाएं आई हैं, एक अटल बिहारी वाजपेयी की और दूसरी कृष्ण मेनन की. दोनों ने ही उनके इस कदम की आलोचना की है.
मृत शास्त्री को देखने आधी रात पहुंचे अयूब खान
कुलदीप बताते हैं कि उस समय भारत-पाकिस्तान समझौते की खुशी में होटल में पार्टी चल रही थी और चूंकि वे शराब नहीं पीते थे तो वे अपने कमरे में आ गए और सो गए. सपने में उन्होंने देखा कि शास्त्री जी का देहांत हो गया है. वे बताते हैं कि उनकी नींद दरवाजे की दस्तक से खुली. सामने एक रूसी औरत खड़ी थी, जो उनसे बोली, "यॉर प्राइम मिनिस्टर इज दाइंग."
कुलदीप नैयर बताते हैं कि वे तेजी से अपना कोट पहनकर नीचे आये. वहां पर रूसी प्रधानमंत्री कोसिगिन खड़े थे. और उन्होंने कुलदीप नैयर से कहा, शास्त्री जी नहीं रहे. वहां पर बहुत बड़े से एक पलंग पर शास्त्री जी का छोटा सा शरीर सिमटा हुआ पड़ा था. कुलदीप नैयर बताते हैं कि वहां पर जनरल अयूब भी पहुंचे और कहा, "हियर लाइज अ पर्सन हू कुड हैव ब्रॉट इंडिया एंड पाकिस्तान टुगैदर" (यहां एक ऐसा आदमी लेटा हुआ है, जो भारत और पाकिस्तान को साथ ला सकता था.)
यह एकमात्र दौरा था जब उनकी पत्नी नहीं गई थीं उनके साथ
लाल बहादुर शास्त्री के बेटे अनिल बताते हैं कि लंबे वक्त तक उनकी मां यह कहती रहीं कि अगर वे शास्त्री जी के साथ इस दौरे पर ताशकंद गई होतीं तो शास्त्री जी की मौत नहीं होती. वैसे यह अकेला दौरा था, जब उनकी पत्नी उनके साथ नहीं गई थीं. बाकि हर दौरे पर वे उनके साथ जाती थीं. हालांकि यह बहुत ही कूटनीतिक दौरा था तो विदेश मंत्रालय ने उन्हें न जाने का सुझाव दिया धा.
शास्त्री जी की मौत के बाद पत्नी ललिता ने उनकी अस्थियों को काफी वक्त तक संभाल कर रखा. जिसे बाद में इलाहाबाद के संगम में प्रवाहित किया गया. ललिता शास्त्री की इच्छा थी कि दिल्ली में शास्त्री जी की समाधि के पास ही उनकी भी समाधि बने, हालांकि उनकी यह इच्छा अधूरी ही रह गई. 1993 में ललिता जी का भी देहांत हो गया.
शास्त्री जी को 1966 में मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाज़ा गया था. आज भी लोग मानते हैं कि शास्त्री जी की मौत के बाद कई सवालों के उत्तर नहीं दिए जा सके हैं. कुछ लोग मौत के बाद उनके शरीर पर दिखने वाले निशानों और पंचनामा न कराए जाने की बात का जिक्र भी करते हैं. ऐसे में आज भी कई सारी शक की सुईयां उस दिशा में मंडराती रहती हैं. हालांकि विवेक अग्निहोत्री की फिल्म ताशकंद से ही उन मुद्दों के सवाल मिलने की संभावना बेहद कम ही है.
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