कुछ महीने पहले ये चर्चा पूरे देश में बड़े जोरों से फैली कि भारतीय करेंसी का प्रोडक्शन चीन में हो रहा है. सरकार को इसका खंडन देना पड़ा कि भारतीय करेंसी की छपाई चीन में नहीं हो रही है. लेकिन लंबे समय से ये बात चर्चाओं में बराबर रही है कि भारत अपनी करेंसी की छपाई के लिए विदेशों पर निर्भर है. मौजूदा दौर में तो सारी भारतीय करेंसी देश में ही छापी जा रही है लेकिन ये सही है कि इंडियन करेंसी को कई सालों तक बाहर छपवाकर मंगाया जाता था.
1997 में भारतीय सरकार ने महसूस किया कि ना केवल आबादी में इजाफा हो रहा है बल्कि आर्थिक गतिविधियां भी बढ़ रही हैं. इससे निपटने के लिए तुरंत और करेंसी की जरूरत थी. भारत के दोनों करेंसी छापाखाने बढ़ती मांग को पूरा करने में नाकाफी थे.
1996 में देश में यूनाइटेड फ्रंट की सरकार बनी थी. एचडी देवेगौडा प्रधानमंत्री बने थे. इसी दौरान इंडियन करेंसी को बाहर छापने का फैसला पहली बार लिया गया.
इन देशों में बेहद सस्ते में घूम सकते हैं भारतीय, रुपया है यहां डॉलर की तरह
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से मंत्रणा करने के बाद केंद्र सरकार ने अमेरिका, कनाडा और यूरोपीय कंपनियों से भारतीय नोटों को छपवाने का फैसला किया. इसके बाद कई साल तक भारतीय नोटों का एक बड़ा हिस्सा बाहर से छपकर आता रहा. हालांकि ये बहुत मंहगा सौदा था. भारत को इसके एवज में कई हजार करोड़ रुपए खर्च करने पड़े.

भारतीय मुद्रा के नए 2000 के नोट, जिसके बारे में दावा है कि इसका कागज, स्याही और छपाई सभी कुछ भारत में ही हो रहा है
बताते हैं कि भारत सरकार ने तब 360 करोड़ करेंसी बाहर छपवाने का फैसला किया था. इस पर 9.5 करोड़ डॉलर का खर्च आया था. इसकी बहुत आलोचना भी हुई थी. साथ ही देश की करेंसी की सुरक्षा के जोखिम में पड़ने की भी पूरी आशंका थी. लिहाजा बाहर नोट छपवाने का काम जल्दी ही खत्म कर दिया गया.
तब खोली गईं दो नई प्रेस
इसके बाद भारत सरकार ने सीख ली और दो नई करेंसी प्रेस खोलने का फैसला किया. 1999 में मैसूर में करेंसी छापाखाना खोला गया तो वर्ष 2000 में सालबोनी (बंगाल) में. इससे भारत में नोट छापने की क्षमता बढ़ गई.

भारतीय करेंसी छापने वाला देवास का छापाखाना
कहां से आता है करेंसी का कागज
करेंसी के कागजों की मांग पूरी करने के लिए देश में ही 1968 में होशंगाबाद में पेपर सेक्यूरिटी पेपर मिल खोली गई, इसकी क्षमता 2800 मीट्रिक टन है, लेकिन इतनी क्षमता हमारे कुल करेंसी उत्पादन की मांग को पूरा नहीं करती, लिहाजा हमें बाकी कागज ब्रिटेन, जापान और जर्मनी से मंगाना पड़ता था.
ब्रिटेन की करंसी पर छप सकती है भारतीय मूल की इस महिला की फोटो
खास होता है नोटों का कागज
हालांकि बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए होशंगाबाद में नई प्रोडक्शन लाइन डाली गई और मैसूर में दूसरे छापेखाने ने काम शुरू कर दिया. इसके बाद दावा किया जा रहा है कि हम अपने कागज की सारी मांग यहीं से पूरी कर रहे हैं. हमारे हाथों में 500 और 2000 रुपए के जो नए नोट आ रहे हैं, उनका कागज भारत में ही निर्मित हो रहा है.

कुछ समय पहले तक भारतीय नोटों में इस्तेमाल होने वाला कागज का बड़ा हिस्सा जर्मनी और ब्रिटेन से आता था
हालांकि इसका उत्पादन कहां होता है, इसका खुलासा आरबीआई ने नहीं किया है. नोट में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला खास वाटरमार्क्ड पेपर जर्मनी की ग्रिसेफ डेवरिएंट और ब्रिटेन की डेला रूई कंपनी से आता था, जो अब भारत में ही तैयार हो रहा है.
अब स्याही से लेकर कागज तक भारत में बन रहा है
90 साल पहले भारत में पहली करेंसी प्रिंटिंग प्रेस नासिक में शुरू हुई थी. तब अंग्रेजों ने यहीं करेंसी छापनी शुरू की थी. आजादी के बाद यहीं से भारत की सारी नोटों का मुद्रण होता था. हालांकि ये बात सही है कि करेंसी के कागज से लेकर स्याही तक का एक बड़ा हिस्सा हम विदेश से आयातित करते थे लेकिन अब सरकार का दावा है कि इन सब जरूरी सामान का उत्पादन देश में ही होने लगा है.
सरकार ने चीन में नोट छापे जाने वाली खबर पर दी सफाई!.
Tags: 1000-500 notes, A halt in printing of Rs. 200 and Rs. 500 denomination, Currency Note Press in Nashik, Hoshangabad S12p17, One Rupee
FIRST PUBLISHED : November 20, 2019, 12:33 IST